प्रतीकात्मक तस्वीर
आशीष कुमार/पश्चिम चंपारण: बिहार के सोनपुर में आयोजित होने वाला सोनपुर पशु मेला, एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता है. यह मेला कार्तिक पूर्णिमा (नहान) के दिन गंडक नदी के तट पर शुरू होता है. पटना से लगभग 25 किमी उत्तर और पश्चिम चंपारण के बेतिया से करीब 175 किमी दक्षिण में स्थित यह मेला वैशाली और सारण जिलों की सीमा पर लगता है. इसकी भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कभी मध्य एशिया तक के व्यापारी यहां पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए आते थे.
मेले की शुरुआत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
करीब तीन दशकों से सोनपुर मेला कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार मिश्र बताते हैं कि इसे “हरिहर क्षेत्र मेला” और “छत्तर मेला” भी कहा जाता है. इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व गज और ग्राह (हाथी और मगरमच्छ) के बीच हुए युद्ध से जुड़ा है, जिसे भगवान विष्णु ने समाप्त कर हाथी की रक्षा की थी. तभी से यहां हाथियों को शुभ मानते हुए उनकी खरीद-बिक्री का सिलसिला शुरू हुआ, जो समय के साथ एक बड़े पशु मेले में बदल गया.
एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला क्यों?
अजय के अनुसार, सोनपुर मेले की ख्याति का प्रमुख कारण यहां बिकने वाले जंगी हाथी थे. यह मेला कभी जंगी हाथियों की खरीद-बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र था. मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और मुगल बादशाह अकबर जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्व भी इस मेले से हाथी खरीद चुके हैं. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक वीर कुंवर सिंह ने भी यहां से घोड़े और हाथी खरीदे थे. भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ मध्य एशिया से व्यापारी यहां आते थे.
सुई से करोड़ों के जानवरों तक उपलब्ध
कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर लगभग 32 दिनों तक चलने वाले इस मेले में एक रुपए की सुई से लेकर करोड़ों रुपए के पशुओं तक की खरीद-बिक्री होती है. मेले में दुनिया भर से पशु-पक्षियों की दुर्लभ और आकर्षक प्रजातियां लाई जाती थीं. हालांकि, मेले की पहचान बन चुके विशालकाय हाथी अब इस मेले से लगभग गायब हो चुके हैं.
रॉबर्ट क्लाइव ने बनवाया था अस्तबल
सन 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर मेले में घोड़ों के लिए एक बड़ा अस्तबल बनवाया था. यहां देश-विदेश से लाए गए घोड़ों के बीच रेस कराई जाती थी, जिससे उनकी ताकत और फुर्ती का आकलन किया जाता था. इसके बाद उन्हें ऊंची कीमत पर बेचा जाता था.
थियेटर का प्रारंभ और आज का स्वरूप
अजय बताते हैं कि पुराने समय में व्यापारियों के मनोरंजन के लिए नृत्य-गान का आयोजन किया जाता था, जो वर्तमान में थियेटर के रूप में देखा जाता है. अफसोस की बात यह है कि जिस सोनपुर मेला का विस्तार कभी सैकड़ों एकड़ में हुआ करता था, वह अब मात्र 20-25 एकड़ में सिमटकर रह गया है.
मेले की घटती भव्यता
आज यह मेला अपनी ऐतिहासिक भव्यता खोता जा रहा है. जहां कभी यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हुआ करता था, वहीं अब यहां व्यापारियों और पशुओं की संख्या में गिरावट देखी जा रही है. फिर भी, यह मेला आज भी बिहार की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को जीवित रखे हुए है.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 13:50 IST