Agency:News18 Madhya Pradesh
Last Updated:February 03, 2025, 21:20 IST
Cultivation of chickpea: इस फसल से किसान न केवल बिक्री करते हैं, बल्कि इसकी भाजी, साग, सुसका और सत्तू का भी भरपूर उपयोग करते हैं. यह फसल किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है.
चन फसल
हाइलाइट्स
- चना की खेती से किसानों को कई फायदे होते हैं।
- चना भाजी, साग, सुसका और सत्तू का उपयोग होता है।
- चना की फसल किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
चना खेती. छतरपुर जिले में हर साल बड़े पैमाने पर रबी सीजन के अंतर्गत आने वाली चना फसल की खेती की जाती है. चना की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि यह फसल जिले के किसानों के लिए वरदान है. क्योंकि चना की भाजी से लेकर चना साग,चना बहुरी, चना सुसका तक महीनों उपयोग में आता है.
किसान वैद्यनाथ बताते हैं कि जिले में ज्यादातर किसान सालों से चना की फसल लगा रहे हैं. उन किसानों में हम भी शामिल हैं, जब से हम पैदा हुए हैं तब से चना की खेती कर रहे हैं. यहां के किसान इस फसल को लगाना नहीं छोड़ सकते हैं. क्योंकि यहां के किसान इस फसल को सिर्फ बेचने के ही उद्देश्य से नहीं लगाते हैं, बल्कि इस फसल से उनको अनेकों फायदे होते हैं. हमारे यहां के किसान दीपावली के बाद से अभी तक चना भाजी खा रहे हैं.
3 महीने तक चना भाजी घरों में बनती है
किसान बताते हैं कि यहां के किसान खेतों से तीन महीने तक चना भाजी तोड़कर बनाते हैं. ये खाने में भी बेहद स्वादिष्ट होती है. साथ ही लोगों को बाजार से सब्जी भी नहीं खरीदनी पड़ती है.
1 महीने तक बनती है चना सब्जी
चना भाजी के बाद चना फलने लगता है जिसकी सब्जी बनाकर खाते हैं. इस सब्जी को जिले में निभवाना कहा जाता है. यह भी बेहद स्वादिष्ट होती है. एक महीने तक आसानी से यह मिलता है. फरवरी से लेकर मार्च खेतों में चना फल मिलता है.
चना भाजी सुखाकर सुसका भी बनाते हैं
किसान बताते हैं कि अभी चना भाजी खेतों में मिल रही है तो यहां के लोग इसे सुखाकर रख लेते हैं. इसे यहां की क्षेत्रीय भाषा में सुसका बोलते हैं. ठंड मौसम में जैसे लोग चना भाजी खा रहे हैं वैसे ही गर्मियों में चने की इस सूखी भाजी को आलू के साथ मिलाकर या बिना आलू के सब्जी बनाकर लोग खाते हैं. कई लोग तो चने की इस सूखी भाजी को बरसात के मौसम में भी सुरक्षित रखकर इसकी सब्जी बनाकर खाते हैं.
गर्मियों में सत्तू बनाकर खाते हैं
किसान बताते हैं कि जब चना फसल घरों में आ जाती है तो फिर इसे भूनकर खाया जाता है. जिसे यहां की क्षेत्रीय भाषा में बहुरी कहा जाता है. इसके बाद भुने हुए चने को पीसकर सत्तू (सितुआ) बनाया जाता है जिसे शक्कर या गुड़ के साथ खाया जाता है.
Location :
Chhatarpur,Madhya Pradesh
First Published :
February 03, 2025, 21:19 IST