बरसों से गोल टीले वैज्ञानिकों के लिए थे पहेली, अब खुला राज, किसने बनाया इन्हें

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Last Updated:February 07, 2025, 15:17 IST

ऑस्ट्रेलिया के विशाल गोलाकार टीले का रहस्य आखिरकार खुल गया है. वैज्ञानिकों ने खास अध्ययन कर बताया है कि इन्हें एलियन्स ने नहीं बल्कि वुरुंडजेरी वोई-वुरंग लोगों ने पवित्र समारोहों के लिए बनाए थे. ये टीले 590-140...और पढ़ें

बरसों से गोल टीले वैज्ञानिकों के लिए थे पहेली, अब खुला राज, किसने बनाया इन्हें

इस तरह की संरचनाओं पर एलियन के हाथ होने की भी कहानियां सुनाई जाती थीं.

ऑस्ट्रेलिया में संसार के सबे बड़े गोलाकार टीलों ने बड़ा कौतूहल मचा रखा था.  एक जमाने से मौजूद इस आकृतियों को देखकर हैरानी होती थी कि आखिर इसे कैसे और क्यों बनाया गया था. सदियों पहले बनाए गए इन टीलों को पूरे ऑस्ट्रेलिया में ही यहां वहां बनाया गया था और कई लोगों का यहां तक भी कहना था कि इन्हें एलियन्स के अलावा कोई इंसानों का समूह बना ही नहीं सकता है. लेकिन एक अध्ययन में इसके रहस्य का खुलासा हो ही गया. पता चल गया है कि ऑस्ट्रेलिया के कौन से लोगों ने  इन्हें बनाया था.

किस मकसद के लिए बनाया गया था इन्हें
अलग अलग आकार के इन छल्लों में से कुछ सैंकड़ों मीटर व्यास के हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि इन्हें स्थानीय वुरुंडजेरी वोई-वुरंग लोगों ने पवित्र समारोहों के लिए सनबरी क्षेत्र में बनाया था. वैज्ञानिकों ने कहा कि टीले पहली बार 590 से 1,400 साल पहले बनाए गए थे. माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया भर में कभी 400 से अधिक पृथ्वी के छल्ले मौजूद थे, लेकिन यूरोपीय उपनिवेशीकरण के दौरान कई नष्ट हो जाने के बाद, केवल 100 ही बचे हैं.

आज भी मायने रखते हैं ये
शोधकर्ताओं और वुरुंडजेरी वोई-वुरंग संस्कृति के बुजुर्गों का कहना है कि बचे हुए प्राचीन छल्ले विभिन्न आदिवासी भाषा समूहों के लिए बहुत मायने रखते हैं. ये कब्जे, उपनिवेशीकरण, आत्मनिर्णय, अनुकूलन और लचीलेपन के इतिहास को दर्शाते हैं. वहीं स्थानीय लोगों को  लिए भूमि, जल, आकाश, जानवर, पौधे, कलाकृतियाँ और सांस्कृतिक विशेषताएँ, यात्रा मार्ग, परंपराएँ, समारोह, विश्वास, कहानियाँ, ऐतिहासिक घटनाएँ, समकालीन संघ और पूर्वज सभी कुछ उनके देश में शामिल होता है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि ये टीले यहां के स्थानीय आदिवासियों ने बनाए थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pinterest)

सब कुछ जान पाना है बहुत ही मुश्किल
वैज्ञानिक मानते हैं कि इन संरचनाओं को पूरी तरह से समझना संभव नहीं है क्योंकि क्योंकि उन्हें बनाने वालों की संस्कृति, ज्ञान और नजरिये के बारे में बहुत कम जानकारी है. यह समझा जाता है कि इनका उपयोग पवित्र समारोहों के लिए किया जाता था. पिछले अध्ययन बताते हैं कि ये छल्ले समारोह के पवित्र स्थान हैं. लेकिन इनके बारे में सांस्कृति मूल्यों वगैरह के लिहाज जानकारी जरा कम है.

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आदिवासी लोगों ने पहले सावधानी से जमीन और पौधों को साफ किया था. इसके बाद मिट्टी और चट्टानों को खुरचकर छल्लेदार टीला बनाया गया था. इसके बाद आखिर में घेरे के पास चट्टानों की परतें व्यवस्थित की जाती थीं. ऑस्ट्रेलियाई पुरातत्व पत्रिका में किए गए अध्ययन में पाया गया कि इस इलाके के स्वदेशी लोग टीलों में कैम्पफायर जलाते थे और पत्थर के औजारों का उपयोग करके चीजों को इधर-उधर ले जाते थे.

First Published :

February 07, 2025, 15:17 IST

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