पंचकोशी यात्रा
बक्सर: जिले के चरित्रवन में हर साल नवंबर में पंचकोसी मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में 5 दिनों में 5 कोस की यात्रा कर 5 अलग-अलग प्रकार के भोग लगाने की परंपरा है. एक मान्यता के अनुसार ये मेला भगवान श्रीराम से जुड़ा है. इस मेले का धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से काफी महत्व है.
भगवान श्रीराम को लिट्टी-चोखा का भोग
दरअसल 5 दिनों तक चलने वाले इस मेले का आज अंतिम दिन है. रामायण काल से चली आ रही मान्यता के मुताबिक 5वें और अंतिम दिन भगवान श्रीराम को लिट्टी-चोखा का भोग लगाया जाता है. इस परंपरा को निभाने के लिए देशभर से लोग चरित्रवन में जुटे हैं. झारखंड हाईकोर्ट के जज एएन पाठक भी प्रसाद के रूप में बंटने वाले लिट्टी-चोखा खाने पहुंचे.
पूरे बक्सर में लिट्टी-चोखा बनाने की है परंपरा
पंचकोसी मेला के अंतिम दिन पूरे बक्सर के घरों में लिट्टी-चोखा बनाने की परंपरा है. इसे शुभ माना जाता है. मंत्री से लेकर विधायक भी यहां आकर लिट्टी-चोखा बनाते हैं. भाजपा बिहार महिला प्रकोष्ठ की पूर्व अध्यक्ष नीलमणि देवी भी लिट्टी बनाते नजर आईं.
5 जगहों की होती है परिक्रमा
बता दें कि 24 नवंबर से शुरू इस मेले के पहले दिन अहिरौली, दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव और 5वें दिन चरित्रवन में लिट्टी चोखा-बना कर खाया जाता है. इस मेले की परिक्रमा में शामिल लोग इन पांचों स्थान पर जाते हैं. विधिवत दर्शन पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं. वेद-पुराणों के अनुसार यहां महर्षि विश्वामित्र मुनि का आश्रम था.
त्रेता युग से चली आ रही परंपरा
पंचकोसी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आए थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण की थी. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित 5 ऋषियों के आश्रम गए और आशीर्वाद प्राप्त किया.
मेले से जुड़ी मान्यता
यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के अहिरौली आश्रम पर भगवान राम पहुंचे, जहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया और उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाए. यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नादांव पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चूड़ा-दही, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में खिचड़ी और पांचवें एवं अंतिम पड़ाव चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी-चोखा का भोग लगाया, तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं.
बिहार और यूपी के पूर्वांचल को मिली नई पहचान
लिट्टी चोखा महोत्सव शुरुआत में केवल बक्सर तक ही सीमित था, लेकिन अब ये पूरे बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के घर-घर में बनाया जाता है. लिट्टी-चोखा ने बिहार और पूर्वांचल के खान-पान को नई पहचान दी है, अब ये बिहार और पूर्वांचल से निकलकर देश के अन्य इलाकों में भी अपनी पहचान बना रहा है.
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FIRST PUBLISHED :
November 25, 2024, 14:57 IST