संगीत
सागर में भैरव मंदिरों में काल भैरव अष्टमी मनाई गई. बुंदेलखंड में ढांक संगीत से काल भैरव को प्रसन्न करने की परंपरा है. ढांक संगीत में अलग-अलग देवी देवताओं का बीरोठों के माध्यम से गायन किया जाता है. आल्हा ऊदल हरदौल के जमाने से इस संगीत को बजाने की शुरुआत मानी जाती है. वर्तमान में बहुत कम लोग इसका वादान कर पाते हैं.
यह मिट्टी के मटका पर कांसे की थाली रखकर चूड़ा से बजाया जाता है.मां जगदम्बा की असीम कृपा जब होती हैं तब ही ढांक बज पाती है. यहां भी ढांक बजती है. वहां सभी सिद्धियां अपने आप ही आ जाती है. हृदय संबंधी रोगी अगर कुछ दिन लगातार इस संगीत को सुन ले तो उनका वह रोग तक मिट जाता है.
ढांक संगीत परंपरा
काल भैरव मंदिरों में ढांक संगीत को परंपरा को आगे बढ़ाने वाले. उनके परम भक्त उमाशंकर सोनी ने बताया कि ढांक संगीत बुन्देखंड का प्राचीन संगीत है. दीपावली की रात्रि से ही ढांक बजने का श्री गणेश हो जाता है. कार्तिक मास से लेकर अगहन मास की पूर्णिमा तक ही ढांक बजाई जाती हैं. ढांक संगीत में मां जगदम्बा एवं उनके वीर श्री कालभैरव, हनुमानजी, वीर बैहानारसिंह कालेदेव, श्री वीर आल्हा राजा, जगदेव ध्यानु भगत, लाला हरदौल, बुंदेला राज गौड़, देव राजा पृथ्वीपत आदि की गाथाओं का बीरोठों के माध्यम से गायन होता है.
55 सालों से कर रहें है काम
68 साल के उमाशंकर सोनी को उनके पिता नारायण दास सोनी से ढांक बजवाने की परंपरा विरासत में मिली है. 12 साल की उम्र से वह अपने पिता के साथ बैठते थे. पिछले 55 सालों से इससे जुड़े हुए हैं. सोनी का कहना है कि माई की कृपा है. इस संगीत की वजह से ही इस उम्र में चल पा रहे हैं.रीड हड्डी के तीन ऑपरेशन हो चुके हैं. सागर के चकरा घाट, देव धनेश्वर मंदिर, बाईसा मुहाल,भैरव टेकरी बहरिया मसवासी, पहलवान बाबा मंदिर सहित जगहों पर भैरव मंदिर है. यहां पर जयंती पर ढांक बजाई गई है.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 14:33 IST