बुलबुले बनाया करती है ये खास छिपकली, नई रिसर्च ने किया अजीब वजह का खुलासा

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एक अनूठी खोज मे वैज्ञानिकों ने इस बात का कारण पता लगा लिया है कि स्कूबा डाइविंग करने वाली छिपकलियां पानी के अंदर बुलबले किस खास मकसद के लिए बनाती हैं. अमेरिकी वैज्ञानिकों के इस  नए शोध से पता चलता है कि स्कूबा डाइविंग करने वाली छिपकलियां, पानी के अंदर सांस लेने और शिकारियों से बचने के लिए बुलबुले का इस्तेमाल करती हैं.  इन छिपकलियों को “जंगल की चिकन नगेट्स” कहा जाता है

वाटर एनोल्स नाम की यह प्रजाति कोस्टा रिका के उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाई जाने वाली एक प्रकार की अर्ध-जलीय छिपकली है. यह उनका शिकार करने वाले पक्षियों और सांपों से बचने के लिए इस अनूठी तकनीक का इस्तेमाल करती हैं.न्यूयॉर्क के बिंगहैमटन विश्वविद्यालय की डॉ. लिंडसे स्विएर्क ने पहले पानी के अंदर बुलबुले का इस्तेमाल करते हुए इस प्रजाति का जानकारी जुटाई थी.

डॉ. स्विएर्क कहना है कि जब छिपकलियों को किसी शिकारी से खतरा महसूस होता है, तो वे पानी के अंदर गोता लगाती हैं और सांस लेने के लिए अपने सिर के ऊपर एक बुलबुला बनाती हैं. उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि वे बहुत लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं.”

उन्हें नहीं पता था कि श्वसन में इस बुलबुले की वास्तव में कोई खास भूमिका थी या नहीं. यह जांचने के लिए कि क्या बुलबुला सांस में कोई सक्रिय भूमिका निभाता है या केवल एक बायप्रोडेक्ट है, डॉ. स्विएर्क ने छिपकलियों की त्वचा की सतह पर एक पदार्थ लगाया जो बुलबुले बनाना रोक देता है.

डॉ. स्विएर्क ने यह रिकॉर्ड किया कि ये छिपकलियां कितने बुलबुले बना पाती हैं और वे कितनी देर तक पानी के अंदर रह सकती हैं. उन्होंने उनकी तुलना एक समूह की छिपकलियों से की जिन्हें सामान्य रूप से सांस लेने की अनुमति दी गई थी. नतीजों से पता चला कि नियंत्रण समूह की छिपकलियां बुलबुला बनाने में परेशानी झेलने वाली छिपलकलों की मुकाबले 32% अधिक समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं.

जर्नल बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक एनोल्स जंगल के चिकन नगेट्स की तरह हैं. पक्षी उन्हें खाते हैं, सांप उन्हें खाते हैं. इसलिए पानी में कूदकर, वे अपने कई शिकारियों से बच सकते हैं, और वे पानी के नीचे बहुत शांत रहते हैं. वे तब तक पानी के नीचे रहती हैं जब तक कि खतरा टल न जाए. कम से कम 20 मिनट तक पानी के नीचे रह सकती हैं, लेकिन शायद ज्यादा समय तक.

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FIRST PUBLISHED :

September 24, 2024, 07:51 IST

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