बुवाई के दौरान रखें इन 3 बातों का ध्यान, गन्ने का कैंसर' हो जाएगा गायब

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गन्ने

गन्ने की फसल

शाहजहांपुर: धान की फसल के बाद किसान शरदकालीन गन्ने की बुवाई करते हैं. शरदकालीन गन्ने की बुवाई का समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर तक होता है.आमतौर पर शरदकालीन गन्ने का औसत उत्पादन लगभग 20 फीसदी अधिक होता है. इसन दिनों शरदकालीन गन्ने की बुवाई हो रही है. गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग, जिसे ‘गन्ने का कैंसर’ भी कहा जाता है के लगने का खतरा ज्यादा होता है. इस रोग को रेड रॉट के नाम से भी जाना जाता है. यह रोग गन्ने की फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है. इसकी रोकथाम के लिए गन्ने की बुवाई के वक्त ही जरूरी उपाय कर लेना चाहिए.

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान के प्रसार अधिकारी संजीव कुमार पाठक ने लोकल 18 को बताया कि लाल सड़न रोग यानी रेड रॉट गन्ने की फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है. इस बीमारी की रोकथाम के लिए गन्ने की फसल की बुवाई के वक्त ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए.  किसान बुवाई के वक्त बीज उपचार करें और मृदा शोधन करने के बाद ही गन्ने की फसल की बुवाई करें. साथ ही लाल सड़न रोग ग्राही किस्म की बुवाई बिल्कुल भी ना करें. ऐसी किस्म की बुवाई करें जो रेड रॉट रोग प्रतिरोधी हो.

10 मिनट करें ये काम
संजीव कुमार पाठक ने बताया कि गन्ने की फसल की बुवाई करने से पहले बीज उपचार करें. बीज उपचार के लिए या थायोफिनेट मिथाइल 1 ग्राम प्रति लीटर में घोल बनाकर गन्ने के बीज के एक आंख या दो आंख के टुकड़ों को 10 मिनट तक के लिए डुबो दें. उसके बाद इस बीज को खेत में बुवाई कर दें. ऐसा करने से फंगस जनित रोगों से फसल को बचाया जा सकता है. खासकर रेड रॉट रोग से फसल सुरक्षित रहेगी.

कैसे करें मृदा शोधन ?
संजीव कुमार पाठक ने बताया कि गन्ने की बुवाई करने से पहले खेत की तैयारी अच्छे से करें. खेत की गहरी जुताई करने के बाद मिट्टी को जोतकर भुरभुरा बना लें. अंतिम जुताई से पहले 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को दो से तीन क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर पूरे खेत में बिखेर कर पाटा लगाकर समतल कर दें. उसके बाद वैज्ञानिक विधि से गन्ने की फसल की बुवाई करते हैं, लेकिन अगर कोई किसान गन्ने की बुवाई के वक्त मृदा शोध के लिए ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं, तो जब गन्ने की फसल 40 से 45 दिन की हो जाए और गन्ने का जमाव होने लगे उसके बाद लाइनों में गुड़ाई कर ट्राइकोडर्मा को गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर बिखेर दें.

इन किस्मों की करें बुवाई
संजीव कुमार पाठक ने बताया कि लाल सड़न रोग से बचने के लिए जरूरी है कि लाल सड़न रोग ग्राही किस्म की बुवाई भी ना करें. कोशा. 0238 की बुवाई बिल्कुल ना करें, यह किस्म लाल सड़न रोग ग्राही है. किसान ऐसी किस्मों की बुवाई करें जो लाल सड़न रोगग्राही ना हो. किसान नई किस्म कोशा. 13235, कोशा. 18231, कोशा. 14201 और को. 15023 और कोलख 16202 की बुवाई कर सकते हैं.

Tags: Agriculture, Local18, Shahjahanpur News, Uttar Pradesh News Hindi

FIRST PUBLISHED :

October 12, 2024, 13:48 IST

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