सजी महाबुलिया की फोटो
विकाश कुमार/ चित्रकूट : बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में आज भी पुरानी परंपरा बखूबी से निभाई जाती है. इस परंपरा को आज भी पितृ पक्ष के समय में पाठा क्षेत्र की बालिकाएं कांटे की लकड़ी में फूलों को सजाकर और गाना गाते हुए तालाबों में विसर्जन करती है. जिसको लोग महाबुलिया के नाम से जानते हैं. बता दें कि आधुनिक दौर में यह सब परंपराएं धीमे-धीमे लुप्त होती जा रही हैं, लेकिन पाठा क्षेत्र में आज भी यह परंपराएं गावों में पूरे रीति रिवाज से निभाई जा रही हैं.
श्री कृष्ण ने की थी परंपरा की शुरुआत
हम बात कर रहे हैं चित्रकूट जिले के पाठा क्षेत्र की, जहां आज के इस डिजिटल दौर में गांव के लोग पुरानी परंपरा महाबुलिया का त्योहार बहुत ही बखूबी से मनाते हैं. लेकिन यह अनोखी परंपरा अब कुछ गांवों तक ही सीमित रह गई है.अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में एक पखवाड़े तक पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में इस परंपरा की शुरुआत की थी और उन्होंने कंस द्वारा हत्या किए गए बच्चों का श्राद्ध किया था और कहा जाता है कि पहले महबुलिया नाम की एक वृद्ध महिला भी थी, जिसने इस पूजा की शुरुआत की थी.
कांटे की झाड़ी को रखकर सजाए जाते हैं फूल
बता दें कि इस दौरान जिले के अधिकांश गांवों में बालिकाओं के द्वारा महाबुलिया सजा कर शाम को बालिकाएं विभिन्न प्रकार के फूल एकत्र करके एक कांटे की झाड़ी को रखकर उसमें अनेक प्रकार के फूल लगाकर महाबुलिया के गीत गाते हुए गांव के तालाबों में ले जाकर रोजाना विसर्जित करती हैं. यह परंपरा आज सदियों से चली आ रही है, जिसको वह लोग बखूबी से निभा रहे हैं. इस परंपरा से पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रदर्शन होता है और सृजन का भाव निहित होता है. इस परंपरा से बच्चों में धार्मिक और सामाजिक संस्कार पैदा होते हैं. इस परंपरा से बेटियों के महत्व को प्रतिपादित किया जाता है. इसलिए इस त्यौहार को आज भी लोग पितृ पक्ष के दौरान निभाते हैं.
गांव के बुजुर्ग ने दी जानकारी
वहीं इस परंपरा के बारे में गांव के व्यक्ति ने जानकारी देते हुए बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस परंपरा के तहत आज भी हमारे गांव की बालिकायें शाम होते ही फूल को इकट्ठा करके एक कांटे की लकड़ी में सजाकर गाने के साथ उसकी गांव के तालाब में ही विसर्जित करती हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 11:42 IST
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