हाइलाइट्स
इस ट्रेन का संचालन और देखरेख भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) करता हैएक बार बीबीएमबी ने बढ़ती लागत के कारण किराया वसूलने पर विचार किया थायह केवल परिवहन का साधन नहीं है, बल्कि यह इतिहास और परंपरा का हिस्सा है
Bhakra-Nangal Train: भारत में दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. हर दिन 13,000 से ज्यादा ट्रेनें चलती हैं, जो रोजाना करीब 2 करोड़ 31 लाख यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं. भारत में रेलवे की कुल लंबाई 115,000 किलोमीटर है. भारतीय रेलवे की पहचान कम कीमत पर यात्रियों को सेवा प्रदान करने वाली एक सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के रूप में है. लेकिन आपको यह जानकर हैरत होगी कि एक ट्रेन ऐसी भी है जो पिछले 75 सालों से यात्रियों को मुफ्त सेवा दे रही है. इस ट्रेन में सफर करने के लिए टिकट खरीदने की जरूरत नहीं है. जो यात्री इस ट्रेन में सफर करना चाहते हैं, मुफ्त में कर सकते हैं. नहीं, यह कोई टाइपिंग एरर नहीं है, आप ठीक पढ़ रहे हैं. ये ट्रेन सभी यात्रियों को मुफ्त सफर कराती है.
यह है भाखड़ा-नांगल ट्रेन
इस ट्रेन सेवा को भाखड़ा-नांगल के नाम से जाना जाता है. यह 75 सालों से लगातार लोगों की सेवा कर रही है. यह ट्रेन पंजाब के नांगल और हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा के बीच केवल 13 किलोमीटर की दूरी तय करती है. इस पूरी यात्रा में यह केवल पांच स्टेशनों पर रुकती है. यह सतलुज नदी और शिवालिक पहाड़ियों के ऊपर से गुजरती है, जहां रास्ते में सुंदर नजारे देखने को मिलते हैं. इस ट्रेन का इस्तेमाल मूल रूप से भाखड़ा-नांगल बांध के निर्माण के लिए मजदूरों और सामग्री को ले जाने के लिए किया जाता था. इस ट्रेन की सीटें भले ही साधारण हों, लेकिन वे इसके लंबे इतिहास का हिस्सा हैं.
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डैम के निर्माण के समय बनी रेल लाइन
भाखड़ा-नांगल डैम के निर्माण के समय बड़ी मशीनें, लोहा, पत्थर समेत तमाम सामान ढोने के लिए इस रेल ट्रैक का निर्माण किया गया था. डैम निर्माण के समय काम में आसानी के लिए यह रेल लाइन बनाई गई थी. डैम निर्माण के बाद भी यहां के गांवों को जोड़ने के लिए यह रेल सेवा जारी रखी गई. खास बात यह है कि भाखड़ा-नांगल डैम के निर्माण के समय यह ट्रेन मशीनों, सामान को मुफ्त में ढोती थी. बाद में यह वैसे ही यात्रियों को भी मुफ्त सेवा देने लगी. यह ट्रेन 1948 से लगातार चल रही है. 1953 में, इसे एक बड़ा अपग्रेड मिला जब इसमें अमेरिका से आयातित डीजल इंजन लगाए गए.
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ट्रेन में चढ़ने के बाद यात्री लकड़ी के डिब्बों में लंबी बीम के आकार की बेंचों पर बैठते हैं. इस अजीबोगरीब डिजाइन की शुरुआत कराची से होती है, जहां पुराने औपनिवेशिक फर्नीचर को दोबारा उपयोग करके कोच बनाए गए थे.
क्यों नहीं लगाया टिकट
इस ट्रेन में टिकट नहीं लगाए जाने के कई कारण हैं. इसका संचालन और देखरेख भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) करता है. एक बार बीबीएमबी ने परिचालन लागतों के कारण इसका किराया वसूलने पर विचार किया था. क्योंकि ट्रेन चलने पर हर घंटे लगभग 18 से 20 गैलन ईंधन की खपत होती है. लेकिन ट्रेन की विरासत के सम्मान में इसे मुफ्त रखने का निर्णय लिया गया. यह केवल एक परिवहन का साधन नहीं है, बल्कि यह इतिहास और परंपरा का जीवंत हिस्सा है. टिकट नहीं लगने की वजह से इस ट्रेन में कोई टीटी भी नहीं होता है. इस ट्रेन के कोचों की खासियत यह है कि इनका निर्माण कराची में हुआ था. इसके अलावा, कुर्सियां भी अंग्रेजों के जमाने में मिलने वाली लकड़ियों से बनी हैं.
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रोज 800 लोग करते हैं सफर
रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रतिदिन 800 से अधिक लोग इस ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं. यह काफी लोगों के लिए यात्रा का एक लोकप्रिय और सुविधाजनक तरीका बना हुआ है. सबसे अच्छी बात यह है कि यात्री भारत के सबसे ऊंचे बांधों में से एक, भाखड़ा-नांगल बांध और सुंदर शिवालिक पहाड़ियों का नजारा देख सकते हैं. हर दिन सुबह 7:05 बजे, यह ट्रेन नांगल रेलवे स्टेशन से रवाना होती है और 8:20 बजे भाखड़ा पहुंचती है. वापसी यात्रा में, यह ट्रेन दोपहर 3:05 बजे नांगल से रवाना होती है और 4:20 बजे भाखड़ा रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को उतारती है.
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खींचता है 60 साल पुराना इंजन
भाखड़ा-नंगल बांध पूरे विश्व में सबसे ऊंचे बांध के रूप में जाना जाता है. इसकी वजह से पर्यटक दूर-दूर से इसे देखने आते हैं. जब भाखड़ा- नांगल बांध का निर्माण हो रहा था तो उस समय विशेष ट्रेन की जरूरत महसूस की गई. क्योंकि उस समय इन दोनों जगहों को जोड़ने के लिए परिवहन के कोई साधन उपलब्ध नहीं थे. शुरुआती दौर में यह ट्रेन स्टीम इंजन से चलती थी. लेकिन 1953 में अमेरिका से लाए गए तीन आधुनिक इंजनों ने उनकी जगह ले ली. तब से भारतीय रेलवे ने इंजन के मामले में काफी तरक्की कर ली है. लेकिन इस ट्रेन का अनूठापन यही है कि इसको आज भी 60 साल पुराने इंजन लाते ले जाते हैं. इस ट्रेन को एक बॉलीवुड फिल्म में भी दिखाया गया है. सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्म चलता पुर्जा में इसकी झलक दिखलाई गई थी.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 16:10 IST