मछली पालक राजीव लोचन की तस्वीर
शशांक शेखर/ जहानाबाद: देश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर किसानों और आम लोगों को सहयोग कर रही हैं. यह एक लाभदायक व्यवसाय साबित हो सकता है, यदि इसे सही तरीके से किया जाए. जहानाबाद के एक किसान, राजीव लोचन पिछले तीन सालों से बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर रहे हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं. उनके पास सात बायोफ्लॉक टैंक हैं, जिनमें वे मछली का जीरा तैयार करते हैं और बड़ा होने पर उन्हें तालाब में छोड़ते हैं. राजीव ने उत्तराखंड के पंतनगर और पटना से मछली पालन की ट्रेनिंग ली थी, साथ ही जिला मत्स्य विभाग से भी मार्गदर्शन प्राप्त किया.
बायोफ्लॉक तकनीक से बढ़ी कमाई
राजीव लोचन ने बताया, पिछले तीन साल से बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कर रहा हूं, जिससे काफी लाभ हो रहा है. पहले हम पारंपरिक तालाब में मछली पालन करते थे, लेकिन बायोफ्लॉक तकनीक अपनाने के बाद उत्पादन और कमाई में बढ़ोतरी हुई है. सबसे पहले मैंने सिंघी मछली का उत्पादन किया, हालांकि, इसके महंगे होने के कारण स्थानीय बाजार में मांग कम थी, फिर भी 5-6 क्विंटल मछली का उत्पादन हुआ और अच्छी कमाई हो गई.
पंगेशियस मछली का जीरा उत्पादन
सिंघी मछली के बाद राजीव ने पंगेशियस मछली का जीरा उत्पादन शुरू किया. उन्होंने पहले एक टैंक में प्रयोग किया, जिसके सफल परिणाम के बाद सभी टैंकों में पंगेशियस मछली का उत्पादन शुरू किया. वर्तमान में उनके पास तीन टैंकों में पंगेशियस मछली का जीरा है और चार टैंकों में बड़ी मछलियों का उत्पादन हो रहा है. राजीव बताते हैं कि जब मछलियां थोड़ी बड़ी हो जाती हैं, तो उन्हें तालाब में डाल दिया जाता है, जिससे वे जल्दी तैयार होती हैं और उनका वजन भी बढ़ता है.
बायोफ्लॉक सिस्टम कैसे काम करता है
राजीव लोचन बताते हैं कि बायोफ्लॉक सिस्टम के लिए सबसे पहले पानी की आवश्यकता होती है. उन्होंने सौर ऊर्जा से संचालित 3 एचपी का बोरवेल तैयार किया है, जो उन्होंने 2016 में सरकारी योजना के तहत स्थापित कराया था. पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ब्लोअर मशीन का उपयोग किया जाता है, जो पानी में ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है और अमोनियम जमा नहीं होने देता है. इससे पानी शुद्ध बना रहता है और मछलियों का विकास बेहतर होता है.
खर्च और सब्सिडी की जानकारी
राजीव के अनुसार, सरकार का 7 लाख रुपए का एक प्रोजेक्ट है, जिसमें सामान्य वर्ग को 40%, महिला को 60% और एससी/एसटी वर्ग को 75% तक सब्सिडी मिलती है. उन्होंने 7 बायोफ्लॉक टैंकों की स्थापना पर 4-5 लाख रुपए खर्च किए थे, जिसमें बोरवेल पहले से ही तैयार था. उन्होंने बताया कि अगर आप एक टैंक में 5000 मछलियां डालते हैं और उनमें से 1000 मछलियां खराब हो जाती हैं, तो भी लाभकारी रहता है. बायोफ्लॉक में तैयार की गई मछलियां जल्दी बढ़ती हैं और कम समय में अधिक वजन हासिल कर लेती हैं, जिससे उत्पादन और लाभ दोनों में वृद्धि होती है.
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 13:37 IST