मुंबईः मुंबई से मात्र 70 किमी उत्तर में कई एकड़ में फैला वसई गांव का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है. पहले के समय में यह पुर्तगालियों का ठिकाना हुआ करता था. आपको यहां बहुत पुरानी बैप्टिस्ट र्चर्च के साथ-साथ वसई का उपनगरीय शहर भी देखने को मिलेगा. इतिहास में इसे बेसिन या बाकाइम के नाम से जाना जाता है, यह 300 से अधिक वर्षों तक भारत में पुर्तगालियों का सबसे बड़ा राजनीतिक, सैन्य और नौसैनिक केंद्र था. यह उत्तरी कोंकण क्षेत्र में उनकी राजधानी और गोवा के बाद यह उनका दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान बन गया.
वसई में पिछले 15 साल से रहने वाले निखिल दुबे Local 18 से बताते है कि वे बचपन से इस किले को देखते आ रहे है. अपने स्कूल के दिनों में कई बार इस किले में जा चुके है. यहां हर रोज कोई ना कोई घूमने आता रहता है. इस किले का इतिहास कुछ ऐसा है कि, पुर्तगालियों ने 1534 में गुजरात के सुल्तान से इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और शुरू में फोर्टालेजा डी साओ सेबेस्टियाओ डी बाकाइम या वसई के सेंट सेबेस्टियन के किले का निर्माण किया. इस किले के चारों ओर एक बड़ा शहरी केंद्र विकसित हुआ जो पीढ़ियों तक फलता-फूलता रहा. अंदर पुर्तगाली रईसों की शानदार हवेलियां, सात चर्च, कॉन्वेंट, मंदिर, अस्पताल और प्रशासनिक केंद्र थे. पुर्तगाली गवर्नर भी जब इस क्षेत्र का दौरा करते थे तो किले को अपने आधिकारिक निवास के रूप में इस्तेमाल करते थे.
पुर्तगालों से मराठवाओ ने जीत लिया वसई
पुर्तगाली शासन के दौरान मराठों ने वसई किले पर कब्जा करने के लिए दो साल तक कोशिश की. लेकिन पहुंच नहीं सके. अंत में वे वसई के उत्तर में अर्नाला किले पर विजय प्राप्त करने के बाद पुर्तगालियों की भोजन और व्यापार आपूर्ति में कटौती करके उन्हें कमजोर करने में कामयाब रहे. आखिर में युध जीतने के बाद मराठों ने 12 मई, 1739 को वसई पर कब्जा कर लिया.
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FIRST PUBLISHED :
September 23, 2024, 18:26 IST