मल त्यागने में आ रही कठिनाई, आयुर्वेद से जानें इसका प्रभावी उपचार

2 hours ago 1

Agency:News18 Uttarakhand

Last Updated:February 05, 2025, 23:26 IST

Fissure attraction successful ayurved : फिशर एक आम लेकिन कष्टदायक समस्या है, जिसे नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है. आयुर्वेद में इसके प्रभावी उपचार बताए गए हैं.

X

आयुर्वेद

आयुर्वेद में फिशर का इलाज

हाइलाइट्स

  • फिशर एक आम लेकिन कष्टदायक समस्या.
  • आयुर्वेद में फिशर का प्रभावी उपचार उपलब्ध.
  • त्रिफला चूर्ण और एलोवेरा से पाचन में सुधार.

ऋषिकेश. फिशर (Fissure) या गुदा विदर एक सामान्य लेकिन दर्दनाक समस्या है, जिसमें गुदा क्षेत्र की त्वचा में छोटे-छोटे कट या दरारें आ जाती हैं. ये समस्या मुख्य रूप से कठोर या शुष्क मल त्याग, कब्ज या अत्यधिक दबाव के कारण होती है. कई लोग इसे मामूली समस्या मानकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन समय पर उपचार न करने से ये गंभीर हो सकती है. आयुर्वेद में फिशर का प्रभावी उपचार उपलब्ध है, जो न केवल इसके लक्षणों को कम करता है बल्कि इसकी पुनरावृत्ति को भी रोकता है.

लोकल 18 के साथ बातचीत में ऋषिकेश के ‘कायाकल्प हर्बल क्लीनिक’ के डॉ राजकुमार (आयुष) कहते हैं कि उन्हें आयुर्वेदिक उपचार से फिशर का इलाज करते हुए 35 वर्ष हो गए हैं. उन्होंने फिशर के कई मरीजों को आयुर्वेद की मदद से बिना किसी सर्जरी के ठीक किया है. फिशर एक आम लेकिन कष्टदायक समस्या है, जिसे नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है. आयुर्वेद में इसके प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं, जो न केवल इस बीमारी को ठीक करने में मदद करते हैं, बल्कि इसके दोबारा होने से भी बचाते हैं. सही खान-पान, जीवनशैली और आयुर्वेदिक औषधियों के संयोजन से फिशर को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है.

फिशर के कारण

फिशर होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

1. कब्ज (Constipation): कठोर मल त्याग करने से गुदा क्षेत्र में अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिससे वहां दरारें आ सकती हैं.

2. अधिक मसालेदार या अनियमित भोजन: अधिक तला-भुना या मसालेदार खाना खाने से पाचन क्रिया प्रभावित होती है, जिससे मल कठोर हो जाता है.

3. दस्त (Diarrhea): लगातार पतला दस्त आने से गुदा क्षेत्र की संवेदनशीलता बढ़ जाती है और वहां घाव बन सकते हैं.

4. गर्भावस्था और प्रसव: महिलाओं में प्रसव के दौरान गुदा क्षेत्र पर दबाव पड़ता है, जिससे फिशर हो सकता है.

5. लंबे समय तक बैठना: ज्यादा देर तक एक ही स्थिति में बैठने से रक्त संचार बाधित होता है, जिससे गुदा क्षेत्र कमजोर हो जाता है.

6. मांसपेशियों में तनाव: गुदा क्षेत्र की मांसपेशियों में अधिक तनाव होने से वहां दरारें आ सकती हैं.

फिशर के लक्षण

फिशर के लक्षण तुरंत नजर आ सकते हैं और इनमें शामिल हैं:

मल त्याग के दौरान या बाद में जलन और तेज दर्द. गुदा के आसपास हल्की सूजन और लालिमा. मल त्याग के समय हल्की रक्तस्राव की संभावना. खुजली और असहजता. कठोर या पतला मल त्यागने में कठिनाई.

आयुर्वेद में उपचार

आयुर्वेद में आंतरिक उपचार मुख्य रूप से पाचन को सुधारने और मल को नरम करने पर केंद्रित होता है. त्रिफला चूर्ण का नियमित सेवन पाचन को सही करता है और पेट साफ रखने में मदद करता है. एलोवेरा सूजन को कम करता है और ठंडक प्रदान करता है. नारियल का तेल प्रभावित हिस्से पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है और संक्रमण से बचाव होता है.

गुनगुने पानी से Sitz बाथ लेने से भी सूजन और दर्द कम होता है. इन सभी जड़ी बूटियों को सही पोर्शन में लेना बेहद जरूरी है. इस पूरे ट्रीटमेंट के लिए यहां हर महीने 6000 रुपये लिए जाते हैं. जिसमें दवाएं, ट्यूब, इंजेक्शन उपलब्ध कराई जाती है. ज्यादा जानकारी के लिए आप ऋषिकेश में राम झूला पर चंद्रभागा पुल पर स्थित कायाकल्प हर्बल क्लीनिक के आयुर्वेदाचार्य डॉ. राजकुमार से उनके मोबाइल नंबर +91 75794 17100 पर संपर्क कर सकते हैं.

Location :

Rishikesh,Dehradun,Uttarakhand

First Published :

February 05, 2025, 23:26 IST

homelifestyle

मल त्यागने में आ रही कठिनाई, आयुर्वेद से जानें इसका प्रभावी उपचार

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article