उदयपुर में राज परिवार
उदयपुर के मेवाड़ राजवंश का नाम दुनिया के सबसे पुराने राजवंशों में से एक माना जाता है जिसकी स्थापना करीब 1300 वर्ष पुरानी बताई जाती है. बप्पा रावल जैसे शासक जिसने पूरी दुनिया पर अपनी धाक जमाई थी. आज उन्हीं के वंशजों में संपत्ति को लेकर महाभारत जैसा युद्ध देखने को मिल रहा है. दोनों राजघरानों के बीच की लड़ाई धूणी दर्शन पर टिकी है. लेकिन राजनीतिक और संपत्ति की हित की लड़ाई कुछ महाभारत जैसी ही प्रतीत हो रही है, जिसमें कुछ पक्ष के लोग एक और तो दूसरे पक्ष के लोग दूसरी ओर नजर आ रहे हैं.
1300 वर्ष पुराना है इतिहास
मेवाड़ राजवंश का इतिहास करीब 1300 वर्ष पुराना है जब बप्पा रावल ने मेवाड़ के गुहिल वंश की स्थापना की. इसके बाद गुहिल वंश में महाराणा कुंभा, महाराणा संग्राम सिंह और महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा का नाम आज भी याद किया जाता है, आपको बता दें कि महाराणा संग्राम सिंह के छोटे बेटे उदय सिंह द्वितीय ने मेवाड़ में उदयपुर की स्थापना की थी उन्होंने वर्ष 1540 से 1572 तक मेवाड़ में राज्य किया, इसके बाद उनके बेटे महाराणा प्रताप ने इस राजनीति को आगे बढ़ाया जब पूरी दुनिया अकबर के आगे सर झुकाए खड़ी थी तब उन्होंने इन राजमहलों को त्याग कर वन वन भटकना, ज्यादा गर्व महसूस किया. इसका गवाह आज भी हल्दीघाटी का मैदान है.
राज परिवार का चल रहा है यह विवाद
महाराणा प्रताप के बाद 19 शासक हुए जिन्होंने मेवाड़ की कमान अपने हाथों में ली. इसके बाद वर्ष 1930 से 1955 तक महाराणा भूपाल सिंह आजादी के समय सबसे पहले अपनी रियासत की आहुति दी थी जिससे उन्हें आजीवन राज प्रमुख पद भी दिया गया था महाराणा भूपाल सिंह के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने भगवत सिंह मेवाड़ को गोद लिया. महाराणा भगवत सिंह के तीन बच्चे थे जिनमें महेंद्र सिंह मेवाड़, अरविंद सिंह मेवाड़ और बेटी योगेश्वरी मेवाड़, राजघराने की संपत्ति लीज पर दिए जाने के कारण पिता भगवत सिंह और महेंद्र मेवाड़ के बीच विवाद उत्पन्न हुआ जिससे मामला इतना बढ़ा कि पिता ने अपनी संपत्ति से महेंद्र सिंह मेवाड़ को बेदखल कर दिया.
क्या है धूणी दर्शन का महत्व
दरअसल, उदयपुर शहर में धूणी वह जगह है जहां बाबा गोरखनाथ पूजा किया करते थे. इसी जगह पर महाराणा उदय सिंह द्वितीय को मेवाड़ की नई राजधानी उदयपुर स्थापना करने की बात कही गई थी. वहीं इसी स्थान से ही राजमहल बनने की शुरुआत हुई थी जो राजमहल का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. मेवाड़ के जितने भी महाराणा हुए उन्हें यहां दर्शन करना जरूरी बताया गया.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 14:47 IST