भावनगर: सौराष्ट्र और गुजरात में लोग मवेशी पालन कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं. वे अच्छे नस्ल के जानवर रखते हैं. लेकिन गाय, भैंस जैसी मवेशियों में कई तरह की बीमारियां होती हैं, जिससे मवेशी की मृत्यु भी हो सकती है. इसके अलावा, जब जानवर बीमार होते हैं तो दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाती है, जिससे पशुपालक को आर्थिक नुकसान होता है. मेहनत फिर भी बेकार जाती है. इसलिए मवेशियों की बीमारियों का इलाज तुरंत किया जाना चाहिए.
मवेशियों की बीमारियों को नियंत्रित करने के उपाय
बता दें कि मवेशियों को रखने का स्थान साफ़-सुथरा रखना चाहिए. मवेशियों को समय-समय पर नहलाना चाहिए. अगर जानवर में किसी भी प्रकार का बदलाव दिखाई दे, तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. खासकर मवेशियों में कीड़े (वर्म्स) होते हैं, जो कई तरह की बीमारियों का कारण बनते हैं. इस बीमारी के कारण जानवर में कई बदलाव दिखने लगते हैं. उनका चमकदार चमड़ा फीका पड़ जाता है, और गोबर में भी बदबू आती है.
महुवा पशु अस्पताल के पशु चिकित्सक डॉ. के. सी. बलडानिया का बयान
डॉ. बलडानिया ने कहा, “मुख्य रूप से मवेशियों में कीड़े लगने की समस्या देखी जाती है. मवेशियों में कीड़े होने से उनका विकास पूरा नहीं हो पाता. उनके बाल रूखे और झड़ने लगते हैं. अगर आप दूर से उनके शरीर को देखें, तो उनकी त्वचा का चमक सही से दिखाई नहीं देता. साथ ही उनके गोबर में भी बदबू होती है. या ये कीड़े उनके शरीर के अन्य हिस्सों में भी पाए जाते हैं.”
कीड़े लगने से बचाव के उपाय
डॉ. बलडानिया ने बताया कि मवेशियों में कीड़े लगने से बचने के लिए सबसे पहली डोज़ गाय या भैंस के बछड़े को दूध छोड़ने के 21 दिन बाद देनी चाहिए. उसके बाद हर महीने तीन महीने तक, और अगर जानवर तीन महीने से बड़े हैं तो उन्हें छह महीने और साल के अंत में दे-वार्मिंग दवाइयां दी जानी चाहिए. इसके अलावा, एक साल से बड़े जानवरों को साल में दो बार दे-वार्मिंग देना चाहिए. ये दवाइयां सरकारी अस्पतालों में मुफ्त उपलब्ध होती हैं. इस दवाई से अन्य बीमारियों को भी नियंत्रित किया जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
November 28, 2024, 11:09 IST