नई दिल्ली: तकनीक भले ही कितनी भी आगे क्यों ना बढ़ जाए जमीन की लड़ाई तो टैंक के जरिए ही लड़ी जानी है. दुशमन के इलाक़े में आमने सामने की जंग में मेन बैटल टैंक को ही आगे बढ़ना है. भारत दुनिया की सबसे ताकतवर सेना में से एक है जिसमें चीन जैसे विस्तार वादी देश के कदम को रोक दिया. पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना ने चीन को अपनी टैंक की एसी ताकत दिखाई कि उसे उल्टे पैर लौटना पड़ा. भारतीय सेना के T-72 और T-90 टैंक ने ये कारनामा कर दिखाया. ये टैंक भारतीय सेना की मसल पावर है और वैसा ही इन्होंने हाई एल्टीट्यूड एरिया में कर दिखाया. अब तो लाइट टैंक ज़ोरावर भी जल्द मोर्चा सँभालेगा फ्यूचर रेडी कॉम्बेट वेहिक्ल (FRCV) की तैयारी है.
फिलहाल अगर हम भारतीय सेना में टैंकों की तादाद पर गौर करें तो 1700 के करीब T-90 टैंक है, 1950 T-72 टैंक, 124 स्वदेशी MBT अर्जुन और 1100 के करीब बाकी दूसरे टैंक है. फ़िलहाल टैंक रेजिमेंट सिर्फ भारत पाकिस्तान की सीमा पर ही नहीं बल्कि चीन सीमा पर बड़ी तादाद में तैनात है. पाकिस्तान और चीन अपनी सैन्य ताकत में लागातार इजाफा करने में लगे है. भविष्य में युद्ध की तकनीक और हथियारों जिसकी उत्तम होगी परिणाम उसी की तरफ होगा. इस तरफ भारत ने भी अपने कदम तेज़ी से बढ़ा दिए है वो भी पूरी तरह से स्वदेशी तरीक़े से. नए आधुनिक टैंक के जरिए पुराने टैंकों को बदला जाएगा. फिलहाल भारतीय सेना के आर्मड रेजिमेंट में T-72, T-90, MBT अर्जुन है और जोरावर आने को है.
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T-72 टैंक होंगे सबसे पहले रिटायर
T-72 टैंक जो कि एलएसी की मोर्चे पर तैनात है उसकी उम्र हो चुकी है और जल्द फेजआउट की कगार पर आ जाएंगे. एसे में भारतीय सेना ने समय से पहले ही इन पुराने T-72 टैंक को रिप्लेस करने के लिये स्वदेशी फ्यूचर मेन बैटल टैंक को डेवलप करने के काम को तेज कर दिया है. 70 के दशक में भारतीय सेना ने अपने पुराने हो चले सेंचुरियन और विजयंत मेन बैटल टैंक को बदलने के लिए सोवियत संघ से लंबे ट्रायल के बाद T-72 टैंक की खरीद का फैसला लिया गया था.
1978 में T-72 के तीन वेरियंट T-72, T-72M और T-72 M1 की खरीद सोवियत संघ से की गई और 1980 में लाइसेंस लेकर इनका निर्माण चेन्नई में शुरु किया गया. पहले ऑर्डर में करीब 500 टैंक खरीदे गए. वजन में हलकी होने के चलते हाई ऑलटेट्यूड एरिया में में इसे ऑप्रेट करने बेहद आसान है. 40 से 45 टन वजनी ये टैंक चीनी सीमा पर ऑप्रेट करने के लिए पूरी तरह से मुफ़ीद है. सड़क पर ये 60 किलोमीटर प्रतिघंटा और उबड ख़बड या रेगिस्तान में से 35 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार पर जोड़ सकता है. और इसकी मारक क्षमता 4 से 5 किलोमीटर है और इस टैंक का बैरल प्लेन होने के चलते इससे रॉकेट भी फायर किया जा सकता है.
T-90 भीष्म कारगर हथियार फिर से हो गया नया
साल 2001 में भारत ने रूस से T सीरीज के सबसे आधुनिक टैंक T-90 जिसे भीष्म नाम दिया गया उसकी खरीद की. और 2003 से ही भारतीय सेना के मेन बैटल टैंक की के तौर पर शामिल है. इसे लाइसेंस प्रोडक्शन के तहत भारत में ही चेन्नई के हेवी व्हीकल फैक्ट्री में इसका निर्माण हुआ है. कोई भी टैंक की क्षमता तीन चीज़ों पर निर्भर होता है पहली फायर पावर , दूसरी मोबिलिटी और तीसरा प्रोटेक्शन और T-90 इन तीनों में ये T-72 से बेहतर है.
इसकी खासियत ये कि इसमें दूर तक देखने के बेहतर सिस्टम है और ऑटोमैटिक लोडर है यानी की राउंड लोड करने का सिस्टम ऑटोमेटिक है. हाल ही भी भारतीय सेना के वर्क शॉप में ही रूसी टैंक टी-90 का ओवरहॉल किया. किसी भी टैंक को ओवरहॉल करना एक जटिल प्रक्रिया है. इसमें टैंक के सभी पार्ट्स को खोला जाता है, पार्ट्स को बदलने की जरूरत है तो उन्हें बदला जाता है. इस तरह बेस ओवर हॉलके बाद टैंक फिर से नई लाइफ मिल जाती है और यह नए जैसा हो जाता है. सेना के पास अभी टी-90 टैंक की करीब 39 यूनिट हैं और हर यूनिट में करीब 45 टैंक होते हैं इस तरह सेना के पास 1700 से ज्यादा टी-90 टैंक हैं.
स्वदेशी MBT अर्जुन “ हंटर किलर”
भारत का स्वदेशी टैंक अर्जुन दुनिया के सबसे भारी टैंक में से एक है. इसका वजन तकरीबन 58 टन है. भारी होने के चलते इसके अलग अलग फायदे नुकसान भी है. फायदा ये से टैंक भारी होने के चलते इसकी फायर पावर और प्रोटेक्शन जबरदस्त है तो नुकसान ये कि इसके ट्रांसपोर्टेशन काफ़ी मुश्किल भरा है ये टैंक प्लेन और रेगिस्तान में हिट है लेकिन हाइ एल्टीट्यूड में ये फिट नहीं है. अब तक भारत सेना में 124 MBT शामिल हैं तो वहीं इसके एडवांस वर्जन अर्जुन मार्क 1A का ऑर्डर भी दिया जा चुका है. कुल 118 अर्जुन मार्क 1A लिए जा रहे है. इसके रेट ऑफ फायर की बात करें तो ये एक मिनट में 8 राउंड फायर कर सकता है ये 70 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है. इस टैंक में मशीन गन के अलावा एयरक्राफ्ट गन से लेस है. इसका डिजाइन 1986 में बनना शुरू हुआ 1996 में पूरा हुआ और 2004 से भारतीय सेना में शामिल है.
लाइट टैंक ज़ोरावर आने वाला है बहुत जल्द
हर जंग या विवाद से बहुत कुछ सीखने को मिलता है भारतीय सेना ने भी 2020 में हाई ऑलटेट्यूड एरिया में चीन के साथ विवाद में एक सबक सीखा और बना लिया लाइट टैंक का प्लान और टैंक का नाम दिया जोरावर. खास बात तो ये है कि महज 4 साल के अंदर ही इस टैंक का प्रोटोटाइप तैयार किया गया और ये ट्रायल भी. भारतीय सेना को 350 लाइट टैंक लेने हैं जो कि पुराने हो चुके T-72 टैंक की जगह लेंगे. प्लेन एरिया और रेगिस्तान के इलाके में इसके सफल परीक्षण किए जा चुके हैं और अब बारी है हाई एल्टीट्यूड ट्रायल जारी है. सभी इंटर्नल ट्रायल पूरे होने के बाद इस टैंक को सेना को यूज़र ट्रायल के लिए अगले साल तक दिए जा सकते हैं. इसकी खासियत ये है कि ये भारत का अब तक का सबसे हल्का टैंक है. इसका वजन 25 टन रखा गया है. और वजन के चलते ये हाई एल्टीट्यूड में ना सिर्फ पहुंचाना आसान है बल्कि विषम परिस्थितियों में आसानी से लड़ाई भी लड़ी जा सकती है. खास बात ये है कि जोरावर LAC के पास तैनात चीनी ZTQ -15 जिसे टाईप 15 भी कहा जाता है और इसका नाम चीन ने दिया है ब्लैक पैंथर दिया है उन टैंकों को धूल चटाने के लिये ही तैयार किए गए हैं. DRDO और L&T मिलकर इस टैंक को डेवलप कर रहे है.
FRCV होगा T-72 का रिप्लेसमेंट
भारतीय सेना ने समय से पहले ही T-72 टैंक को रिप्लेस करने के लिये स्वदेशी फ्यूचर मेन बैटल टैंक को डेवलप करने के काम को तेज कर दिया है. इस प्रोजेक्ट का नाम है फ्यूचर रेडी कॉम्बेट वेहिक्ल (FRCV) जो कि आने वाले दिनों में T-72 को रिप्लेस करेंगे. कुल 1800 के करीब टैंक को इस प्रोजेक्ट के तहत सेना में शामिल किया जाना है. जिस तरह से तकनीक बदल रही है उसी हिसाब से हर वक्त मॉर्डन तकनीक से लैस भारतीय सेना के पास टैंक हो लेहाजा इस प्रोजेक्ट को तीन हिस्सों में बांटा गया है. हर फेज में 590 FRCV लिए जाएंगे.
पहला हिस्सा है मौजूदा तकनीक के हिसाब से टैंक को तैयार करना. FRCV का दूसरा चरण होगा एडवांसड टेक्नोलॉजी और उसके बाद तीसरे चरण यानी फ्यूचर टेक्नॉलजी से लैस मेन बैटल टैंक की तरफ सेना आगे बढ़ेगी. जैसे जैसे समय बढ़ेगा भारतीय सेना के पुराने टैंक रिटायर होंगे तो आधुनिक टैंकों का भारतीय सेना में शामिल होने की प्रक्रिया जारी रहेगी. खास बात तो ये है कि सस्ते ड्रोन भारी भरकम टैंक के लिए मुसीबत बन रहे हैं. रूस यूक्रेन की जंग में ये साफ दिख गया. लेहाजा प्रोटेक्शन की तरफ भी ध्यान दिया जा रहा है एक अनुमान के मुताबिक एक टैंक की अमूमन उम्र 32 साल तक मानी जाती है और नए बदलाव के बाद ज़्यादा ज़्यादा 4 से 5 साल और इनको इस्तेमाल में लाया जा सकता है लेहाजा नए टैंक की जरूरत आ गई है.
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FIRST PUBLISHED :
November 28, 2024, 12:55 IST