शालीवाहन महादेव मंदिर.
मां नर्मदा के पावन तट पर लाखों शिवालय है. इनमें से कई ऐसे है जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है. मध्य प्रदेश के खरगोन का शालीवाहन महादेव मंदिर भी उन्ही में से एक है, जो करीब दो हजार साल पुराना बताया जाता है. हर साल यहां लाखों श्रद्धालु भोले के दर्शन करने पहुंचते है. यहां विगत कई वर्षों से अन्न क्षेत्र भी संचालित हो रहा है. परिक्रमवासियों को रहने-खाने की निःशुल्क सुविधा मिलती है.
जिला मुख्यालय से 48 km दूर मां नर्मदा के दक्षिण तट स्थित ग्राम नावड़ातोड़ी में मंदिर की स्थापना शक राजवंश के महान शासक और शिव भक्त राजा शालीवाहन ने की थी. एक विशाल मंदिर का निर्माण भी कराया गया. नर्मदा की बाढ़ में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन शिवलिंग को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. बाद में होलकर शासन में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ.
यहां तक थी राजा शालीवाहन की राज सीमा
मंदिर के पुजारी मदनलाल दुबे ने लोकल 18 से कहा कि, यह मंदिर नर्मदा परिक्रमा मार्ग में आता है. नर्मदा पुराण, स्कंद पुराण के रेवा खंड आदि पुराणों में भी मंदिर का उल्लेख मिलता है. राजा शालीवाहन राजा के राज्य की सीमा का अंतिम छोर माना जाता है. यहां उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की है. नर्मदा के उत्तर तट पर राजा विक्रमादित्य का शासन था.
1950 साल पुराना है इतिहास
मंदिर के इतिहास से जुड़ी होलकर कालीन एक प्राचीन शिलालेख भी मंदिर में रखी है. जिसपर मंदिर पौराणिकता का वर्णन मिलता है. शिलालेख के अनुसार, लगभग 1950 वर्ष पहले यहां शिवलिंग की स्थापना हुई थी. सन 1908 में बापूरावजी होलकर ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. हालांकि, मंदिर का निचला हिस्सा आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है.
स्वयं की पूंजी से करवाया पुनर्निर्माण
बापुराव जी होलकर ने खुद की पूंजी से मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था. साथ में शिव परिवार भी स्थापना कर अन्नक्षेत्र प्रारंभ करवाया था. वहीं, पुराणों में शालीवाहन महादेव मंदिर को तीर्थ स्थल माना गया है. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन करने आने वाले भक्त शालीवाहन महादेव के दर्शन करने मंदिर जरूर आते है.
रहने-खाने की फ्री व्यवस्था
पुजारी मदनलाल ने यह भी बताया कि, मंदिर समिति द्वारा जनसहयोग से अन्नक्षेत्र संचालित हो रहा है. करीब में 1000 परिक्रमा वासियों से ठहरने की यहां व्यवस्था है. जो भी परिक्रमावासी यहां आता है, उसे रात्रि विश्राम, भोजन सहित मेडिकल सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 19:55 IST