मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में लगने वाला पीरानपीर एवं शीतला माता मेला हिन्दू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सद्भावना की अनूठी मिसाल है. स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले इस मेले में लोग धर्म का भेद मिटाकर एकसाथ शामिल होते है. यहां मनोरंजन के अलावा कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते है. जिसमें दोनों समुदाय के लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते है. यह मेले का 118वां साल है. जिसका शुभारंभ 25 नवंबर से हो चुका है. 37 दिन तक मेला चलेगा.
यह मेला जिला मुख्यालय से करीब 80 km दूर सनावद में लगता है. जहां एक ही पहाड़ी पर पीरानपीर बाबा की दरगाह ओर शीतला माता का मंदिर एकसाथ बना है. इसीलिए दरगाह ओर मंदिर के नाम से ही मेले का नाम रखा गया है. हर साल नगर की कृषि मंडी प्रांगण में मेले का आयोजन होता है. यहां दूर दूर से लोग मेले का आनंद लेने शामिल होते है. जिले सहित पूरे मध्य प्रदेश में इस मेले की सांप्रदायिक सद्भावना और एकता की मिशाल के रूप में देखा जाता है.
31 दिसम्बर तक चलेगा मेला
सोमवार 25 नवंबर को क्षत्रिय विधायक सचिन बिरला एवं मेला समिति के पदाधिकारियों ने पीरानपीर बाबा की दरगाह पर संदल पेश किया तथा शीतला माता मंदिर में पूजन कर मेले का शुभारंभ किया, जो 31 दिसम्बर तक यह मेला चलेगा. नगर पालिका के प्रभारी सीएमओ एसएस चौहान के अनुसार नगर पालिका की देखरेख में मेले का संचालन होगा. मेले के दौरान पांच प्रमुख आयोजन होंगे. इसमें अखिल भारतीयकवि सम्मेलन, ऑल इंडिया कव्वाली, सरकारी देग, भगवती जागरण व आतिशबाजी शामिल है.
कवि सम्मेलन और कव्वाली
वहीं, 3 दिसंबर को शीतला माता यज्ञ व पूर्णाहुति होगी. 12 दिसंबर को सरकारी देग का आयोजन होगा. इसमें क्विंटल से प्रसादी बनाई जाएगी. जिसे लूटने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है. 14 दिसंबर को भगवती जागरण, 21 दिसबंर को कवि सम्मेलन, 28 दिसंबर को महफिले कव्वाली और 31 दिसंबर को आकर्षक आतिशबाजी के साथ मेले का समापन होगा.
1906 में हुई थी मेले की शुरुआत
इतिहासकारों के मुताबिक, इस मेले की शुरुआत साल 1906 मे हुई थी. उस समय पीरानपीर बाबा की दरगाह पर हजरत जमालुद्दीन शाह कादरी की बरसी पर फकीरों द्वारा मेला लगाया जाता था. फिर 1921 में होलकर रियासत में राजस्व मंत्री रायबहादुर नानकचंद ने कपड़ा मैदान में मेला लगाने के आदेश दिए थे. पहाड़ी के नीचे मां शीतला माता, बिजासनी माता व बजरंगबली का मंदिर भी स्थित है. एक पहाड़ी पर दोनों संप्रदायों की श्रद्धा होने के कारण ही करीब 35 वर्ष पहले सम्मिलित रूप से इस मेले को पीरानपीर-शीतलामाता मेले का नाम दिया गया.
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FIRST PUBLISHED :
November 26, 2024, 18:45 IST