Last Updated:February 05, 2025, 17:13 IST
भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.4975 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. इस गिरावट के कारणों में ग्लोबल ट्रेड वार, डॉलर का मजबूत होना और व्यापार घाटा शामिल हैं. इसका असर आम जनता पर आयात महंगाई, विदेश...और पढ़ें
Dollar vs Rupee : पिछले कुछ हफ्तों से लगातार गिरते हुए भारतीय रुपये ने बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.4975 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छू लिया. सुबह के कारोबार में रुपया 87.1263 पर खुला, जो पिछले दिन के बंद भाव 87.0762 से 5 पैसे कम था. फॉरेन करेंसी ट्रेडर्स का कहना है कि ग्लोबल ट्रेड वार और अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ को लेकर चल रही तनातनी के कारण रुपया दबाव में है. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से किसी भी हस्तक्षेप से रुपये को सहारा मिल सकता है.
2025 की शुरुआत से अब तक रुपया 1.5 फीसदी से अधिक गिर चुका है. लेकिन यह गिरावट सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ने वाला है. आइए समझते हैं कि रुपये की यह गिरावट आपके लिए क्या मायने रखती है.
आप पर क्या असर पड़ेगा?
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आम आदमी की जिंदगी पर पड़ता है. भारत कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसी चीजों के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है. रुपया गिरने से इन आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे उत्पादों और सेवाओं के दाम भी ऊपर जा सकते हैं. इसका मतलब है कि आपको रोजमर्रा की चीजों के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं.
महंगाई भी बढ़ने की आशंका है. जब आयात महंगा होता है, तो व्यापारी इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं. इससे आपकी खरीदारी की क्षमता कम हो सकती है और घर का बजट बिगड़ सकता है.
अगर आप विदेश जाने की योजना बना रहे हैं या फिर विदेश में पढ़ाई करने का सपना देख रहे हैं, तो रुपये की गिरावट आपके लिए और भी महंगी साबित हो सकती है. ट्यूशन फीस, रहने का खर्च और यात्रा लागत सब कुछ बढ़ जाएगा, जिससे विदेशी अनुभव और भी महंगा हो जाएगा.
हालांकि, इस गिरावट का एक पॉजिटिव पहलू भी है. एक्सपोर्ट करने वालों को इससे फायदा हो सकता है. भारत के आईटी और फार्मा सेक्टर की आय का एक बड़ा हिस्सा निर्यात से आता है. रुपया कमजोर होने से उनके उत्पाद वैश्विक बाजार में सस्ते हो जाते हैं, जिससे उनकी मांग बढ़ सकती है.
रुपया क्यों गिर रहा है?
हमारी सहयोगी अंग्रेजी वेबसाइट न्यूज़18 ने नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी के हवाले से लिखा, रुपये की यह गिरावट अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के कारण है. उन्होंने कहा कि वैश्विक अनिश्चितता के इस दौर में भारत को रुपये-युआन की दर पर भी ध्यान देना चाहिए. विरमानी ने पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि आरबीआई की नीति किसी विशेष विनिमय दर को लक्षित करने की नहीं है, बल्कि वह बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए हस्तक्षेप करती है.
विरमानी ने कहा, “जब हम रुपये-डॉलर की दर की बात करते हैं, तो इसमें दो तत्व होते हैं. पहला, अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना… और जो कुछ भी आप देख रहे हैं, वह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण है. यह हमारे नियंत्रण में नहीं है और न ही हमारे नीति निर्माताओं को इसकी चिंता करनी चाहिए.”
दूसरा तत्व, विरमानी के अनुसार, सूचकांक के मुकाबले रुपये का डी-वेल्यूएशन है. इसे मापने का एक तरीका यह है कि इसकी तुलना अन्य देशों के साथ की जाए, क्योंकि रुपये की सामान्य मजबूती का असर सभी पर पड़ता है. उन्होंने कहा, “हाल ही में किसी ने सुझाव दिया था कि हमें रुपये-युआन की दर पर करीब से नजर डालनी चाहिए. यह एक अच्छा सुझाव है. इस अनिश्चितता के दौर में हमें अपने प्रतिस्पर्धियों को भी ध्यान में रखना होगा.” रुपये की गिरावट के पीछे व्यापार घाटे का बढ़ना और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 2025 में ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम होने जैसे कारण भी हैं.
आरबीआई क्या कदम उठा रहा है?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरबीआई ने बुधवार को रुपये को सहारा देने के लिए हस्तक्षेप किया. ट्रेडर ने बताया कि सरकारी बैंकों ने 87.24 से 87.26 के स्तर पर डॉलर की सप्लाई की अथवा बेचा, जो संभवत: आरबीआई की ओर से था. इससे रुपये की गिरावट को रोकने में मदद मिली.
आरबीआई के शुक्रवार को होने वाली पॉलिसी मीटिंग में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों के साथ-साथ आयातकों की डॉलर मांग ने भी रुपये पर दबाव डाला है. इस बीच, डॉलर इंडेक्स 0.2% गिरकर 107.8 पर आ गया, जबकि एशिया की ज्यादातर करेंसीज़ मजबूत रहीं.
Location :
New Delhi,New Delhi,Delhi
First Published :
February 05, 2025, 17:13 IST