विवाहेतर संबंध में यार के बच्चे की मां बनी बीबी, लेकिन पति ही होगा कानूनी पिता

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Last Updated:January 29, 2025, 08:07 IST

Adultery News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह के दौरान पत्नी के पराए मर्द के बच्चे की मां बनने के बावजूद कानूनी पिता पति ही होगा. यह एक अहम फैसला है. कोर्ट ने कहा कि इसकी शर्त इतनी है कि पति-पत्नी का विवाह जारी ...और पढ़ें

विवाहेतर संबंध में यार के बच्चे की मां बनी बीबी, लेकिन पति ही होगा कानूनी पिता

सुप्रीम कोर्ट ने विवाहेतर संबंध को लेकर एक अहम फैसला दिया है.

हाइलाइट्स

  • विवाह के दौरान पत्नी के प्रेमी के बच्चे का कानूनी पिता पति ही होगा.
  • यह नियम तभी लागू होगा जब पति-पत्नी का विवाह जारी रहे.
  • बिना मर्जी डीएनए परीक्षण नहीं करवाया जा सकता.

Adultery News: विवाहेतर संबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है. इसमें कहा गया है कि विवाहेतर संबंध में अगर पत्नी किसी दूसरे मर्द के साथ संबंध बनाती है और वह उस आदमी के बच्चे की मां बनती है, लेकिन उस बच्चे का कानूनी पिता महिला का पति ही होगा. शीर्ष अदालत का फैसला कई लोग पसंद नहीं कर सकते हैं. हालांकि कोर्ट ने इसके साथ एक और बात कही है कि यह बात तभी लागू होती है जब पति-पत्नी की शादी चल रही होती है और दोनों के बीच संबंध बना हुआ हो.

यह मामला केरल का है. शादीशुदा लाइफ में पत्नी एक दूसरे मर्द के संपर्क में आई. उसने उस मर्द के साथ संबंध बनाया और उसके बच्चे की मां बन गई. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पितृत्व और वैधता के बीच के जटिल सवाल पर विचार किया. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्ल भुइयां की बेंच ने कहा कि ब्रिटेन, अमेरिका और मलेशिया में भी ऐसा ही रुझान है, जहां वे वैधता की मान्यता को प्राथमिकता देते हैं, हालांकि जब पितृत्व पर संदेह होता है तो डीएनए परीक्षण की अनुमति भी दी जाती है.

धारा 112 का हवाला
जस्टिस सूर्यकांत ने फैसले में कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत यह एक मजबूत अनुमान है कि यदि विवाह के दौरान पत्नी किसी और के बच्चे की मां बनती है, तो भी पति ही बच्चे का कानूनी पिता होगा. इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी बच्चे की पैदाइश को लेकर अनावश्यक जांच न हो. यदि कोई व्यक्ति अवैधता का दावा करता है, तो उसे इसे साबित करने के लिए महिला से दूर रहने का प्रमाण देना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने ‘संपर्क में न रहने’ को भी परिभाषित किया है. ‘संपर्क में न रहने’ का मतलब है कि पति-पत्नी के बीच संबंध बनना असंभव था. इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति तब ही पितृत्व को चुनौती दे सकता है जब वह यह साबित कर सके कि उस समय उसे अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने का कोई उपाय नहीं था.

महिला ने स्वीकार किया- बच्चा उसके पति का नहीं
इस मामले में महिला ने स्वीकार किया कि उसने शादी के दौरान एक अन्य व्यक्ति से बच्चा पैदा किया था. बाद में उसने तलाक लिया और बच्चे का उपनाम बदलवाने के लिए कोचीन नगरपालिका से आवेदन किया. नगरपालिका ने इसे अदालत के आदेश के बिना करने से इनकार कर दिया. महिला ने अदालत में दावा किया कि उसके बच्चे का असली पिता वही आदमी है, लेकिन उस व्यक्ति ने इससे इनकार किया. इसके बाद महिला ने उस व्यक्ति से खुद और अपने बच्चे के लिए भरण-पोषण की मांग की.

केरल की अदालतों ने उस व्यक्ति को डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश दिया. उसने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी. वरिष्ठ वकील रोमी चाको ने कहा कि व्यक्ति को पितृत्व प्रमाणित करने के लिए डीएनए परीक्षण करने के लिए मजबूर करना भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 का उल्लंघन होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ओर जहां अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी व्यक्ति की गोपनीयता और सम्मान की रक्षा हो, वहीं दूसरी ओर अदालतों को यह भी देखना होगा कि बच्चे का वैध अधिकार अपने जैविक पिता को जानने का क्या है और क्या डीएनए परीक्षण की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी को जबरदस्ती डीएनए परीक्षण कराना पड़ता है तो यह उसकी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर सकता है, जो कि व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है. ऐसे में उसके पास यह अधिकार है कि वह अपनी गरिमा और गोपनीयता की रक्षा के लिए कुछ कदम उठाए, जिसमें डीएनए परीक्षण करने से मना करना भी शामिल है. अदालत ने व्यक्ति की अपील को स्वीकार करते हुए डीएनए परीक्षण कराने के आदेश को रद्द कर दिया.

First Published :

January 29, 2025, 08:07 IST

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