मनोज गुप्ता
Hazaribagh News: हजारीबाग के मनोज गुप्ता ने 2007 में जन वितरण प्रणाली के तहत वितरित तुलसी नमक में आयोडीन की कमी के खिला ...अधिक पढ़ें
- News18 Jharkhand
- Last Updated : November 19, 2024, 20:23 IST
हजारीबाग. यह कहानी हजारीबाग के मनोज गुप्ता की है, जिन्होंने झारखंड में जन वितरण प्रणाली की दुकानों में बांटे जा रहे नमक में हो रही अनियमितताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी. 2007 में झारखंड सरकार द्वारा जन वितरण प्रणाली की दुकानों के माध्यम से तुलसी नमक योजना के तहत लोगों को निःशुल्क नमक उपलब्ध कराया जा रहा था. लेकिन, इस नमक में आयोडीन की मात्रा शून्य थी.
भारतीय मानकों के अनुसार, नमक में आयोडीन अनिवार्य है. नमक में न्यूनतम 15 पीपीएम आयोडीन की मात्रा होनी चाहिए. प्रति किलोग्राम में 20 से 40 मिलीग्राम आयोडीन आवश्यक है. लेकिन जन वितरण प्रणाली की दुकानों पर दिए जा रहे तुलसी नमक में आयोडीन की मात्रा पूरी तरह से अनुपस्थित थी, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा था.
मनोज गुप्ता का संघर्ष
Local18 झारखंड से बातचीत करते हुए मनोज गुप्ता ने बताया कि 2007-08 में झारखंड में जन वितरण प्रणाली के तहत तुलसी नमक नि:शुल्क वितरित किया जा रहा था. इसके लिए झारखंड सरकार और अंकुर केमो फूड्स लिमिटेड के बीच अनुबंध हुआ था. अंकुर केमो फूड्स यह नमक बनाकर सरकार को उपलब्ध कराती थी, और फिर इसे जन वितरण प्रणाली के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता था.
मनोज गुप्ता ने कहा कि उन्हें लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि इस नमक में खराबी है और यह जल्दी जम जाता है. उन्होंने अपनी निजी खर्च पर नमक को जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा. जांच में पता चला कि इस नमक में आयोडीन की मात्रा शून्य है. इसके बाद उन्होंने सरकारी अधिकारियों को कई बार पत्र लिखे, लेकिन जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने झारखंड हाई कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दाखिल की.
अदालत में दो साल की लड़ाई
मनोज गुप्ता ने बताया कि मामला कोर्ट में जाने के बाद उन पर कई तरह के दबाव बनाए गए. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. उन्हें न तो किसी सामाजिक संगठन से मदद मिली, न ही किसी राजनीतिक सहयोग का सहारा. उन्होंने लगातार दो साल तक यह लड़ाई लड़ी. आखिरकार, दो साल बाद कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि इस अनुबंध को रद्द किया जाए और दोषी व्यक्तियों पर कार्रवाई की जाए.
सामाजिक बदलाव की मिसाल
मनोज गुप्ता का यह संघर्ष न केवल झारखंड में, बल्कि पूरे देश में सामाजिक बदलाव की मिसाल बन गया. उनकी इस लड़ाई ने दिखा दिया कि एक व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति किस तरह पूरे सिस्टम को बदल सकती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 20:23 IST