पृथ्वी में बहुत सारा पदार्थ है जिसकी वजह से उसका काफी भार हो जाता है और वह दूसरी चीजों को अपनी ओर खींचती हैं. खिंचाव की इस ताकत का एक दायरा है जिसे ग्रैविटेशनल फील्ड या गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र कहते हैं. लेकिन पृथ्वी पर ही एक जगह ऐसी है जहां पर यह फील्ड या क्षेत्र कमजोर हो जाती है. हिंद महासागर में मौजूद यह इलाका “गुरुत्वाकर्षण गड्ढे” के रूप में जाना जाता है. यह कैसे बना यह कई दशकों से रहस्य था, एक स्टडी ने इस बात का खुलासा किया है कि आखिर यह सब हुआ कैसे, उन्होंने पाया कि इसके बनने के कारण 18 करोड़ साल पहले की गतिविधियों में छिपा है जिसमें एक महासागर की मौत की वजह से यह गड्ढा बना है.
एक तरह की विसंगति
हिंद महासागर में स्थित यह गोलाकार क्षेत्र में समुद्र का स्तर पृथ्वी पर किसी भी दूसरी जगह की तुलना में 348 फीट कम है. यह कमजोर गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण जो असल में एक गुरुत्वाकर्षण विसंगति है. यहां पर गुरुत्व बल बहुत ही कमजोर हो जाता है. लेकिन इसकी वजह एक रहस्य ही रही थी.
76 साल पहले पता चल गया था इसका
भले ही इसकी खोज 1948 में हुई थी, लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह कैसे बना. पिछले साल एक अध्ययन ने यह समझने की कोशिश की गई. इसके नतीजों में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ. इसके अनुसार, टेथिस नाम का एक प्राचीन महासागर कभी लॉरेशिया और गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट के बीच मौजूद था. इसकी मौत के कारण हिंद महासागर में गुरुत्वाकर्षण छेद का निर्माण हुआ.
टेथिस सागर के खत्म होने से ही ग्रैविटी होल बनना शुरू हुआ था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
भारत के बहुत पास है ये गड्ढा
अध्ययन को जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित किया गया था. यह छेद 3.1 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला है और भारत से 1,200 किमी दक्षिण-पश्चिम में मौजूद है. शोधकर्ताओं ने पिछले 14 करोड़ सालों में पृथ्वी के मेंटल और टेक्टोनिक प्लेटों की गति का सिम्यूलेशन बनाया और जिससे उन्हें कई संभावनाओं का पता चला.
18 करोड़ साल पहले
अध्ययन के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि टेथिस 18 करोड़ साल पहले पृथ्वी की पपड़ी के एक हिस्से के साथ नीचे चला गया था. जब गोंडवाना टूटा, तो पपड़ी यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसक गई. जब ऐसा हुआ, तो पपड़ी के टूटे हुए टुकड़े मेंटल में गहराई तक डूब गए.
करोड़ों साल पहले टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधि की वजह से इस तरह कि गुरुत्वाकर्षण विसंगति बनी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
अफ्रीकी बुलबुला जो माउंट एवरेस्ट से भी ऊंचा है
लगभग 20 मिलियन वर्ष पहले, इन टुकड़ों ने मेंटल के सबसे निचले क्षेत्रों में पहुंचने के बाद उच्च घनत्व वाली सामग्री को अपनी जगह से हटा दिया था, जो एक बुलबले के रूप में नीचें फंसा रह गया. आज भी अफ्रीका के नीचे फंसे इस बुलबुले को अफ्रीकी ब्लॉब कहते हैं. यह माउंट एवरेस्ट से 100 गुना ऊंचा है और क्रिस्टलीकृत मैग्मा से बना है.
कैसे कमजोर हुई ग्रैविटी
जैसे-जैसे कम घनत्व वाले मैग्मा के गुच्छे ऊपर उठे, मैग्मा की उसकी जगह ले ली, क्षेत्र का कुल भार कम हो गया और इसकी ग्रैविटी कमजोर हो गई. हालांकि, छेद के नीचे कम घनत्व वाले प्लम के अस्तित्व को सत्यापित करने में मदद के लिए अभी भी भूकंप के आंकड़ों के साथ शोध की पुष्टि करने की जरूरत है.
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माना जाता है कि पृथ्वी के मैग्मा में कई ऐसे ही धब्बे मौजूद हैं, यहां तक कि उन जगहों पर भी जहां उन्हें नहीं होना चाहिए. यहां तक कि मंगल ग्रह की सतह के नीचे भी ऐसे धब्बे होने की सूचना है. पृथ्वी की सतह के नीचे क्या हो रहा है, यह समझने से वैज्ञानिकों को लाल ग्रह के बारे में और अधिक जानने में मदद मिलने की उम्मीद है.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 08:01 IST