हेलीकॉप्टर से इस विलायत पेड़ की हुई थी खेती, किसानों के लिए वरदान और श्राप

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भारत में विलायत से लाया गया था यह खतरनाक पेड़

करौली:- राजस्थान की सरजमीं पर बहुतायत में उगने वाली एक कांटेदार वनस्पति ऐसी है, जिसे यहां हेलीकॉप्टर से बीज डालकर सालों पहले उगाया गया था. इस वनस्पति को भारत में विलायत से लाया गया था. इसीलिए इसे विलायती बबूल के नाम से पुकारा जाता है. जानकारों का कहना है कि सन 1930 में इस विलायती पेड़ को मेक्सिको से अंग्रेज भारत लेकर आए थे.

यह विलायती बबूल वैसे तो राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्र में सबसे ज्यादा पाया जाता है. लेकिन राजस्थान के करौली में भी यह विलायत से लाया गया कांटेदार पेड़ भारी तादाद में फैला हुआ है. यहां के स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि कई सालों पहले इस विलायती बबूल को हेलीकॉप्टर से बीच डालकर उनके सामने लगाया गया था.

अपने आप फैसला है ये पेड़
इस कांटेदार वनस्पति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जहां पर भी एक बार अपने पैर पसार लेती है, फिर वहां पर यह अन्य किसी पेड़ को टिकने नहीं देती है. यही वजह है कि करौली शहर में यह विलायती बबूल जहां पर भी फैला हुआ है, वहां पर इसके अलावा कोई अन्य प्रजाति का पेड़, दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता है. करौली में आज भी यह विलायती पेड़ शहरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा दिखाई देता है. देखने में यह विलायती बबूल एकदम हरा-भरा होता है, लेकिन इसमें भारी मात्रा में पाए जाने वाला कांटा बेहद खतरनाक होता है.

सबसे पहले दिल्ली में उगाई गई थी यह वनस्पति
करौली के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में वनस्पति शास्त्र के व्याख्याता डॉ. सीताराम खंडेलवाल लोकल 18 को बताते हैं कि विलायती बबूल भारत की प्रजाति नहीं है. इसे सन 1930 के अंदर अंग्रेज मेक्सिको से यहां लेकर आए थे. सबसे पहले इसे दिल्ली के सेंट्रल रिज रिजर्व फॉरेस्ट में प्लांट किया गया था. दिल्ली के सेंटल रिज फॉरेस्ट एरिया के एक कॉरिडोर में यह पेड़ लगभग 80% भूखंड पर उगाया जा चुका है. इस विलायती वनस्पति के फायदे कम दुष्प्रभाव ज्यादा हैं. इसलिए वहां के कोर्ट ने भी इस विलायती बबूल को हटाने के आदेश दे दिए.

सुखे क्षेत्र में भी कम पानी में उग जाती है यह वनस्पति
खंडेलवाल Local 18 को आगे बताते हैं कि करौली में भी यह प्रजाति काफी क्षेत्र में फैल चुकी है. खासतौर से इस प्रजाति को यहां इसलिए लाया गया था, क्योंकि यह प्रजाति शुष्क क्षेत्र (सूखे) में भी कम पानी में आसनी से उग जाती है. खासकर राजस्थान में इस प्रजाति को बंजर क्षेत्र में मिट्टी के कटाव (मृदा अपरदन) को रोकने के लिए सालों पहले उगाया गया था. डॉ. लाभदायक दृष्टि से देखा जाए, तो यह वनस्पति ग्रामीण लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध होने वाली जलाऊ लकड़ी है. इसके अलावा तमिलनाडु और कई जगह पर इसकी लकड़ी से कोयला बनाया जाता है.

किसानों का मित्र कम दुश्मन ज्यादा है यह पेड़
डॉ. सीताराम खंडेलवाल बताते हैं कि इस वनस्पति को किसानों का मित्र भी कहा गया है, क्योंकि इसकी जड़ों के अंदर नाइट्रोजन स्थलीकरण की मात्रा पाई जाती है. लेकिन इससे होने वाले नुकसान इतने हैं कि यह किसानों का मित्र कम दुश्मन ज्यादा है. जिस भी क्षेत्र में यह पादप पनपता है, वहां का भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है. इसलिए वहां पानी की समस्या भी इससे पैदा हो जाती है.

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इस वनस्पति में से निकलते हैं कई खतरनाक रसायन
डॉ. खंडेलवाल के मुताबिक, इस विलायती पेड़ का सबसे बड़ा प्रभाव एलेलोपैथी इफेक्ट है. इसका मतलब है कि इस प्रजाति में से कई ऐसे रसायन निकलते हैं, जो इसके आसपास अन्य प्रजातियों के पौधों को उगने भी नहीं देते हैं. यह विलायती बबूल हमेशा लंबे एरिया में फैलता है और अपने आसपास अन्य प्रजाति के पौधे को उगने भी नहीं देता है. इसीलिए कोर्ट ने भी इस खतरनाक प्रजाति को जल्द से जल्द हटाने के आदेश दे रखें हैं.

Tags: Agriculture, Local18, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED :

November 24, 2024, 10:13 IST

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