नियुक्ति पत्र मिलने के बावजूद भी उत्तराखंड के इन कनिष्ठ अभियंताओं को नौकरी नहीं
देहरादून: अक्टूबर 2023 में उत्तराखंड ग्रामीण निर्माण विभाग के लिए कनिष्ठ अभियंता के 201 पदों पर भर्ती हुई. इसके लिए प्रदेश के युवाओं ने एग्जाम और साक्षात्कार दिया और चयन होने के बाद उन्हें नियुक्ति पत्र मिले. उनमें से 138 को नियुक्त मिली लेकिन 63 को नियुक्त नहीं किया गया. इनमें 47 लड़कियां हैं जो उत्तराखंड के दूर पहाड़ी जिलों से आती हैं. दिन-रात मेहनत करके जूनियर इंजीनियर के लिए तैयारी करने वाले युवाओं का चयन होने से उनके अंदर और अभिभावकों की आंखों में सरकारी नौकरी के सपने सजने लगे. प्रदेश के मुख्यमंत्री से नियुक्ति पत्र मिला लेकिन 63 जूनियर इंजीनियर को नौकरी नहीं मिल पाई.
लगा रही हैं दफ्तरों के चक्कर
इनमें रुद्रप्रयाग, खटीमा, चकराता, पौड़ी के पहाड़ी गांवों से आने वाली लड़कियों को देहरादून स्थित दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. गरीब तबके से आने वाले इन युवाओं को देहरादून में खर्चे पानी की भी दिक्कत हो रही है. इनमें कोई लड़की अनाथ है तो कोई किसान की बेटी है. इनमें से एक शादीशुदा महिला ने बताया कि अपने परिवार के साथ कितनी मेहनत की और आज बच्चों को छोड़कर अधिकारियों के पास भटकना पड़ रहा है.
मुश्किल से हुई तैयारी और नहीं आया कुछ हाथ
चयनित अभ्यर्थी प्रियंका ने बताया कि राज्य में ग्रामीण निर्माण विभाग ने सिविल प्राविधिक विद्युत के 201 कनिष्ठ अभियंता के पदों पर चयनित अभियंताओं की नियुक्ति नहीं की है. जबकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सितंबर 2024 में सभी नवनियुक्त अभियंताओं को नियुक्ति पत्र बांटे थे. उन्होंने निर्धारित समय पर दस्तावेजों का सत्यापन भी करवा लिया है लेकिन वह अब भी भटक रहें हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों और परिवार के साथ बड़ी मुश्किल से इसके लिए तैयारी की थी लेकिन अब वे निराश हैं.
परिवार उठा रहा परेशानी
खटीमा से आई मानसी ने बताया कि उनके पिता बतौर एजेंट एक छोटी सी प्राइवेट नौकरी करते हैं और उनकी उम्र 60 साल से ज्यादा हो चुकी है. वे सुबह अपने काम के लिए निकल जाते हैं और दिन भर बसों से सफर करते हैं. उनकी मां भी ठीक तरह से चल नहीं सकती. वे अपनी बीमार मां को छोड़कर देहरादून में भटक रही हैं. नहीं चाहती हैं कि उनके बुजुर्ग पिता को परेशानियां उठानी पड़ें.
चकराता से आई दीक्षा चौहान ने बताया कि उनके माता-पिता नहीं रहे और कोई भाई भी नहीं है. उनकी बड़ी बहन ने उन्हें पढ़ाने के लिए सात-आठ साल नौकरी करके मेहनत की, इस परीक्षा में चयनित होकर उन्हें लगा कि उन दोनों बहनों का भविष्य संवर जाएगा लेकिन उन्हें अब भी अंधेरा दिख रहा है.
भूखे- प्यासे भटकने को मजबूर लड़कियां
इशिता ने कहा कि वह पौड़ी से आई हैं और परिवार से दूर उनका देहरादून में कोई नहीं है. उन्हें यहां अपनी नियुक्ति के लिए अपने साथियों के साथ भटकना पड़ रहा है. वे लोग भूखे- प्यासे अधिकारियों के पास अपनी नियुक्ति का सवाल करते हैं तो उन्हें मंत्रियों से मिलने के लिए कहा जाता है. उनका कहना है कि अगर हमारी मंत्रियों से इतनी अच्छी बातचीत होती तो हम इस तरह भटक न रहे होते.
मिनी ने बताया कि उनके माता-पिता बीमार रहते हैं और वह उधार लेकर खर्च चला रही हैं. वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से गुहार लगा रहे हैं कि हमारी नियुक्ति जल्द ही करवाएं. इन बेटियों की समस्या का समाधान होना बहुत जरूरी है. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है इनका विश्वास डांवाडोल हो रहा है.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 09:50 IST