मंडी: पहाड़ के किसान भी अब पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर व्यावसायिक फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. प्रदेश सरकार द्वारा फ्लोरीकल्चर अर्थात फूलों की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई योजनाएं उनकी सहायक बन रही हैं. विशेषकर पहाड़ी इलाकों में जंगली गेंदे की खेती मुनाफे की फसल साबित हो रही है. इस खेती से किसान फूल बेचकर तो कमा ही रहे हैं, इसका तेल भी किसानों को मालामाल बना रहा है.
फ्लोरीकल्चर में प्रदेश सरकार द्वारा बागवानों को 85 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान की जा रही है. इसके अतिरिक्त महक योजना के तहत भी फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. योजना के तहत जंगली गेंदे के फूल के लिए एक हेक्टेयर पर 30 हजार रुपये उपदान दिया जा रहा है. उपमंडल पधर के दर्शन लाल ने बताया, उन्होंने 12 बीघा में जंगली गेंदे की खेती शुरू की है. सिऊन पंचायत के कचोटधार में बंजर भूमि पर लगभग 100 बीघा में गांव के अन्य लोग भी फूलों की खेती कर रहे हैं.
अब तेल निकालने दूर नहीं जाना पड़ता
आगे बताया, उद्यान विभाग से उन्हें महक योजना के तहत शेड बनाने के लिए 2.50 लाख रुपये सब्सिडी भी मिली, जिसमें वह जंगली गेंदे के फूलों का भंडारण करते हैं और बारिश से अब उनकी फसल भी खराब नहीं होती है. दर्शन लाल ने बताया, जंगली गेंदे की खेती वे पहले भी करते थे, लेकिन कटाई के बाद तेल निकालने के लिए फूल नेरचौक (मंडी) ले जाने पड़ते थे, जिसमें खर्च भी बहुत अधिक आता था. हाल ही में हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर द्वारा तेल निकालने की यूनिट सिऊन पंचायत के कचोटधार में निःशुल्क स्थापित की गई है, जिससे उनकी माल ढुलाई की लागत बच जाती है.
सालाना 2 लाख की कमाई
अब जो ग्रामीण आसपास जंगली गेंदे के फूल उगा रहे हैं, उनसे 23 रुपये प्रति किलो की दर से वहीं पर यह फूल भी खरीदे जा रहे हैं. इससे निकलने वाले तेल की कीमत बाजार में 12 से 15 हजार रुपये प्रति लीटर है. जंगली गेंदे की खेती से वह सालाना लगभग 2 लाख रुपये कमा लेते हैं.
जंगली गेंदे की खेती फायदे का सौदा
उद्यान विकास अधिकारी द्रंग कविता शर्मा ने बताया, उपमंडल पधर में किसान-बागवान अब जंगली गेंदे के फूल की खेती भी कर रहे हैं. विभाग की ओर से एक हेक्टेयर पर 30 हजार रुपये प्रति लाभार्थी, उपदान के तहत दो बागवानों को 60 हजार रुपये प्रदान किए गए हैं. जलवायु उपयुक्त होने से इस क्षेत्र में जंगली गेंदे की खेती की अच्छी संभावनाएं हैं. साथ ही इसमें पारंपरिक खेती की तरह बहुत ज्यादा मेहनत भी नहीं करना पड़ती. जंगली जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 19:15 IST