इस साल उत्पन्ना एकादशी का व्रत 26 नवंबर दिन मंगलवार को रखा जाएगा. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है. जिन लोगों को एकादशी व्रत का प्रारंभ करना होता है, वे उत्पन्ना एकादशी से इसकी शुरूआत करते हैं क्योंकि इस दिन ही देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी. वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष या अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. इस दिन पूजा के समय उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा अवश्य पढ़ते हैं. इससे व्रत पूर्ण होता है और उसका महत्व भी पता चलता है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा, मुहूर्त और पारण समय के बारे में.
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में मुर नाम का एक दैत्य था. वह बड़ा ही बलवान और भयानक था. उसने अपने पराक्रम से इंद्र समेत अनेक देवताओं को पराजित कर दिया और उनको स्वर्ग से भगा दिया. मुर के आतंक से परेशान सभी देवी-देवता भगवान शिव की शरण में गए और उन्होंने उनसे रक्षा का अनुरोध किया. भगवान शिव ने कहा कि आप सभी जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाएं.
भगवान शिव के वचन को सुनकर सभी देवी और देवता क्षीर सागर में भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे. भगवान विष्णु से निवेदन करने लगे और कहा कि वे मुर से हमारी रक्षा करें. हम सब आपकी शरण में आए हैं. भगवान विष्णु ने इंद्रदेव से पूछा कि कौन ऐसा दैत्य है, जो सभी देवताओं को जीत लिया है? उसका नाम क्या है? वह कहां रहता है? आप बताओ.
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इंद्रदेव ने कहा कि मुर नामक राक्षस चंद्रावती नगरी में रहता है, वह नाड़ीजंघ नामक राक्षस का बेटा है, वह बड़ा ही पराक्रमी और विख्यात है. इंद्रदेव की बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि वह जल्द ही मुर का संघार करेंगे, तुम सभी उसकी नगर चंद्रावती पहुंचो. श्रीहरि का आदेश पाकर सभी देवी और देवता चंद्रावती नगरी के तरफ चल दिए.
कुछ दूरी चलने पर मुर राक्षस अपने सैनिकों के साथ धरती पर जोर-जोर से गरज रहा था. उससे डर के सभी देवी और देवता चारों दिशाओं में भागने लगे. तब श्री हरि विष्णु उससे युद्ध के लिए आगे बढ़े. उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्रों से उसकी सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया. भगवान विष्णु और मुर के बीच में लगभग 10 साल तक युद्ध होता रहा. फिर भी मुर नहीं मारा गया. भगवान विष्णु थककर बद्रीकाश्रम चले गए.
वहां पर भगवान विष्णु हेमंत नमक सुंदर गुफा में विश्राम करने लगे. यह गुफा 12 योजन तक लंबी थी और उसमें सिर्फ एक ही प्रवेश द्वार था. भगवान विष्णु वहां पर योग निद्रा में थे. उनका पीछा करते हुए मुर भी वहां पर आ गया. भगवान विष्णु को योग निद्रा में पाकर उन पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा.
तभी भगवान श्री हरि विष्णु के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं. उन्होंने मूर के साथ युद्ध किया और उसका संघार कर दिया. युद्ध बीत जाने के बाद भगवान विष्णु जब योग निद्रा से बाहर आए, तब उन्होंने देवी को देखा. उन्होंने कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, इसलिए आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से जानी जाएगी. जो लोग आपकी पूजा करेंगे, वह हमारे भी भक्त होंगे.
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भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से यह कथा सुनाते हुए कहा कि जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है, उसके पाप मिट जाते हैं, दुख दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे परम गति की प्राप्ति होती है. भगवान भगवान विष्णु के श्रीचरणों में स्थान पाता है. उसे मोक्ष मिल जाता है.
उत्पन्ना एकादशी 2024 मुहूर्त और पारण समय
उत्पन्ना एकादशी की तिथि का प्रारंभ: 26 नवंबर, मंगलवार, 1 बजकर 1 एएम से
उत्पन्ना एकादशी की तिथि का समापन: 27 नवंबर, बुधवार, तड़के 3 बजकर 47 मिनट पर
उत्पन्ना एकादशी व्रत पारण समय: 27 नवंबर, दोपहर में 1:12 बजे से 3:18 बजे तक
द्विपुष्कर योग: 27 नवंबर, प्रात: 4 बजकर 35 मिनट से सुबह 6 बजकर 54 मिनट तक
Tags: Dharma Aastha, Lord vishnu, Utpanna ekadashi
FIRST PUBLISHED :
November 25, 2024, 06:16 IST