90 घंटे काम करने के बाद अब मजदूरों को लेकर की टिप्पणी... पढ़ें L&T चेयरमैन के किस बयान की अब हो रही है चर्चा

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नई दिल्ली:

लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एसएन सुब्रह्ममण्यम एक बार फिर सुर्खियों में छाए हुए हैं. इस बार उन्होंने सरकारी स्कीमों का जिक्र करते हुए कुछ ऐसा कह दिया कि चर्चा गरमा गई. दरअसल, चेन्नई में मंगलवार को उन्होंने कहा कि वेलफेयर स्कीमों की वजह से कंस्ट्रक्शन लेबर काम करने से बचने लगी है. सीआईआई साउथ ग्लोबल लिंकेजेस समिट में उन्होंने कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री मजदूरों की कमी पर चिंता जताई है. 

कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को लेकर बोले एसएन सुब्रह्ममण्यम

उन्होंने कहा कि कंस्ट्रक्शन के काम के लिए आजकल मजदूर पलायन करने के लिए तैयार नहीं होते हैं क्योंकि वो अपने घरों से दूर नहीं जाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मनरेगा जैसी स्कीम या फिर जनधन आदि अलग-अलग वेलफेयर स्कीमों के कारण मिलने वाले सीधे फायदों की वजह से वो कहीं जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं. उन्होंने कहा कि मजदूर यहां मौका मिलने पर पलायन करने के लिए तैयार नहीं है. हो सकता है कि वो अपनी कमाई से खुश हैं या फिर हो सकता है कि वो अलग-अलग वेलफेयर स्कीमों की वजह से कहीं बाहर जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं. 

भारत के निर्माण पर होगा इसका असर

उन्होंने कहा कि श्रमिकों की कमी से भारत के बुनियादी ढांचे के निर्माण पर असर पड़ेगा. एसएन सुब्रह्ममण्यम ने यह भी कहा कि भारत को माइग्रेशन की अजीबोगरीब समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जहां एलएंडटी को 4 लाख कर्मचारियों की जरूरत है लेकिन उसे 16 लाख लोगों को भर्ती करना पड़ रहा है. उन्होंने इंफ्लेशन के अनुरूप श्रमिकों के लिए वेतन में संशोधन की जरूरत पर भी जोर दिया. उन्होंने बताया कि मध्य पूर्व में श्रमिकों की संख्या भारत की तुलना में 3.5 गुना अधिक है. 

पिछले महीने भी अपने बयान से विवाद में आए थे एलएंडटी चीफ

एलएंडटी के चेरयमैन ने कहा कि पिछले महीने वह चाहते थे कि उनके कर्मचारी रविवार को भी काम करें. उन्होंने कहा था, "आप घर पर बैठ कर क्या करते हैं? आप कितनी देर तक अपनी पत्नी को देख सकते हैं? चलिए ऑफिस आइए और काम कीजिए." 

कई उद्योगपतियों ने वर्क लाइफ बैलेंस की जरूरत पर की थी बात

इस बहस में अदार पूनावाला, आनंद महिंद्रा और आईटीसी के संजीव पुरी जैसे कई उद्योगपतियों ने वर्क लाइफ बैलेंस की जरूरत के बारे में बात की थी. यह मामला संसद तक तब पहुंचा जब सरकार ने पिछले हफ्ते संसद को बताया कि वह अधिकतम कार्य घंटों को बढ़ाकर 70 या 90 घंटे प्रति हफ्ता करने के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है.

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