Explainer : क्या 1971 से पहले के दौर की तरफ लौट रहा है बांग्लादेश, ISI का इतना दखल क्यों?

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बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है और कट्टरपंथी ताकतों का दबदबा फिर से देखने को मिल रहा है. बांग्लादेश में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की सक्रियता ने इस समस्या को और भी गहरा दिया है. सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान अब बांग्लादेश को अपने नजदीक लाने और भारत के खिलाफ इसका इस्तेमाल करने की फिराक में है. आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल असीम मलिक की हालिया बांग्लादेश यात्रा ने इस मामले को और स्पष्ट किया है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि पाकिस्तान का असली उद्देश्य क्या है?

पाकिस्तान का प्लान-6!
बांग्लादेश में पाकिस्तान के संभावित रणनीतिक उद्देश्य को लेकर एक चर्चा चल रही है, जिसे 'प्लान-6' कहा जा रहा है. पाकिस्तान का इरादा बांग्लादेश के उन क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी बढ़ाने का है जो बंगाल की खाड़ी के पास स्थित हैं, जैसे कि कॉक्स बाजार, उखिया, टेकनाफ, सिलहट, मौलवी बाजार, हबीगंज और शेरपुर. इन इलाकों में पाकिस्तान की मौजूदगी 1971 से पहले थी और यहां से पाकिस्तान भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय उग्रवादी समूहों को मदद पहुंचाता था. अब पाकिस्तान एक बार फिर इन इलाकों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है. ताकि भारत के लिए रणनीतिक रूप से परेशानी पैदा की जा सके.

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बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच बढ़ती दोस्ती
पाकिस्तान बांग्लादेश के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठा रहा है. हाल ही में, बांग्लादेश के एक सैन्य प्रतिनिधि मंडल ने पाकिस्तान का दौरा किया और इसके बाद दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. बांग्लादेश ने पाकिस्तान से 35,000 राइफलें भी मंगवाई हैं और पाकिस्तानी सेना बांग्लादेश की सेना को प्रशिक्षण देने की योजना बना रही है. इसके अलावा दोनों देशों के बीच अब सीधी हवाई सेवाएं भी शुरू हो चुकी हैं. इतना ही नहीं, पाकिस्तान के मालवाहन जहाज चटगांव तक पहुंचने लगे हैं.

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पाकिस्तान का सबसे बड़ा ध्यान बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों और सेना में मौजूद जमात-ए-इस्लामी समर्थक तत्वों पर है, जिनके साथ मिलकर वह भारत के खिलाफ अपनी साजिशों को अंजाम दे सकता है. पाकिस्तान जानता है कि इन संगठनों के समर्थन से वह बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और धार्मिक तनाव पैदा कर सकता है, जो उसकी रणनीतिक लाभ के लिए फायदेमंद हो सकता है.

बांग्लादेश की राजनीति में 1947 के बाद से दो प्रमुख विचारधाराएं मौजूद रही हैं. एक विचारधारा वह है, जो द्विराष्ट्र सिद्धांत और इस्लामिक राष्ट्रवाद की बात करती है  और दूसरी वह है, जो 1971 की स्वतंत्रता संग्राम और बंगाली संस्कृति की बात करती है. 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से बांग्लादेश की राजनीति में यह विचारधाराएं आपस में टकराती रही हैं. हालांकि, हाल के दिनों में बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें फिर से सक्रिय हो गई हैं.

संजय भारद्वाज

प्रोफेसर, जेएनयू


'हिंदू समुदाय के खिलाफ उग्र माहौल'

जेएनयू केप्रोफेसर संजय भारद्वाज ने कहा, 'बांग्लादेश की प्रमुख धार्मिक पार्टी, जमात-ए-इस्लामी, जो 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के खिलाफ थी. अब अपनी ताकत बढ़ाने में सफल हो गई है. बांग्लादेश में पाकिस्तान समर्थक विचारधारा वाले लोग, जिनमें जमात-ए-इस्लामी, अल-बदर, अल-श्याम रजाकार और इस्लामिक छात्र संगठन शामिल हैं. ये सभी अब सत्ता में महत्वपूर्ण स्थान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप, बांग्लादेश की सेकुलर और डेमोक्रेटिक पहचान को खतरा पैदा हो सकता है और हिंदू समुदाय के खिलाफ एक उग्र माहौल पैदा हो सकता है.

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जेएनयू केप्रोफेसर संजय भारद्वाज ने बताया कि बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार, जो 1971 की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है. हसीना के शासन के बाद राजनीतिक स्थितियों में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है. शेख हसीना की सरकार ने बांग्लादेश को आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सुधारने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे. बांग्लादेश ने विकास की दिशा में काफी प्रगति की थी और इसके सामाजिक और आर्थिक सूचकांक में कई देशों से बेहतर थे. लेकिन हालिया राजनीतिक अस्थिरता और कट्टरपंथी ताकतों के उभार ने बांग्लादेश की प्रगति को खतरे में डाल दिया है.

'भारत के लिए चिंता का विषय'
जेएनयू केप्रोफेसर संजय भारद्वाज ने कहा, 'बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति और राजनीतिक स्थिरता पर बढ़ते खतरे ने भारत के लिए चिंता का कारण बना दिया है. बांग्लादेश की सुरक्षा और राजनीतिक स्थिति से न केवल बांग्लादेश की जनता, बल्कि भारत भी प्रभावित हो सकता है. भारत ने बांग्लादेश में करीब 10 बिलियन डॉलर का निवेश किया है और अगर बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ती है, तो इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

सीमा पर तनाव भी बढ़ सकता है : संजय भारद्वाज
उन्होंने कहा कि साथ ही भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पर तनाव भी बढ़ सकता है. खासकर अगर पाकिस्तान बांग्लादेश की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता है. बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतें और पाकिस्तान का समर्थन इन मुद्दों को और भी जटिल बना सकता है.

बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और कट्टरपंथी ताकतों का उभार, पाकिस्तान की साजिशों के साथ मिलकर, एक गंभीर संकट का रूप ले सकता है. बांग्लादेश की सुरक्षा और आर्थिक प्रगति को खतरे में डालने के अलावा, यह भारत के लिए भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन सकता है. यदि बांग्लादेश में राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता बढ़ती है, तो इसका प्रभाव न केवल बांग्लादेश, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ेगा.

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