Last Updated:February 02, 2025, 08:01 IST
इंसानों के बहारी कान एक तरह से निष्क्रिय ही होते हैं. लेकिन एक अध्ययन में पाया गया है कि ध्यान से सुनने की कोशिश में कान की कुछ मांसपेशियां सक्रिय होने की कोशिश करती हैं जबकि तब भी कान प्रभावी रूप से हिल नहीं ...और पढ़ें
जब भी हम इंसान के कान की बात होती है तो आम तौर पर लोग सिर पर बगल में लगे अंगों के बारे में सोचने लगते हैं. जबकि उनका आज हमारे सुनने की प्रक्रिया से लगभग कोई लेना देना नहीं है. इन्हें वैज्ञानिक बाहरी कान कहते हैं. जानवरों के बाहरी कान उनकी सुनने के प्रक्रिया काफी मदद करते हैं. वे उनके जरिए आवाज की दिशा पहचानने से साथ सुनने पर ध्यान लगाने में सहायक होते हैं. पर नए स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया है कि इंसान के बाहरी कान पूरी तरह बेकार नहीं हैं, बल्कि वे सुनने की कोशिश में हिलते हैं.
कान हिलते नहीं कोशिश करते हैं?
ये सच है कि आमतौर पर जब भी कोई इंसान कोई आवाज सुनता है कि उसके कान हिलते हुए दिखाई नहीं देते हैं. लेकिन जर्मनी के सारलैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं अपने अध्ययन में पाया है कि आवाज सुनते समय इंसान के कान हिलने की कोशिश करते हैं. वहीं अब तक वैज्ञानिक मानते आ रहे थे कि हमारे पूर्वज ही अपनी मर्जी से कान हिला सकते थे.
पूर्वजों का सिस्टम आज भी कायम
एंड्रियास स्क्रोअर और उनकी टीम के अध्ययन का कहना है कि हमारे पूर्वजों में कान को घुमाने का सिस्टम था जिससे इस तरह की गतिविधि आज भी इंसानों के बहारी कान की मांसपेशियों में हरकत करती है. स्क्रोअर कहते हैं कि उनका मानना है कि हमारे पूर्वजों ने अपने कान को हिलाने की क्षमता करीब 2.5 करोड़ साल पहले ही खो दी थी. ऐसा क्यों है, इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है.
कई जानवर सुनते समय कान को हिला सकते हैं जो उन्हें आवाज की दिशा पहचानने में मदद करता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
उपोयगी नहीं पर अब भी सक्रिय मांसपेशियां
स्क्रोअर बताते हैं कि उनकी यह दिखा पाई कि कान में न्यूरल सर्किट तो आज भी किसी स्वरूप में मौजूद हैं. हमारा दिमाग कुछ ऐसी संरचनाएं अब भी संजोए हुए है, जो कानों को हिला सकती हैं. ये अलग बात है कि ये अब उपयोगी नहीं रह गई हैं. शोधकर्ताओं ने पहले यह पाया था कि इन मांसपेशिया का हिलना डुलना तब होता है जब इंसान आवाज कि दिशा पर ध्यान देने की कोशिश करता है. लेकिन अब उन्होंने यह पाया है कि ऐसा तब होता है जब इंसान आवाज को ज्यादा ध्यान से सुनने की कोशिश करता है.
20 लोगों पर किया प्रयोग
रिसर्च में टीम ने 20 ऐसे वयस्कों पर प्रयोग किया जिन्हें सुनने की किसी भी तरह के समस्या नहीं थी. उनहोंने एक ऑडियोबुक सुनने कोकहा गया जिसे स्पीकर पर चलाया गया लेकिन उसी समय कुछ दूरी पर एक पोडकॉस्ट भी चलाया गया. प्रयोग के लिए टीम ने तीन तरह के माहौल बनाए. सबसे सरल स्थिति में पोडकॉस्ट की आवाज ऑडियोबुक से धीमी थी. और दोनों की आवाज के पिच में भी काफी अंतरत था. दूसरे माहौल में दो पोडकॉस्ट को एक साथ चलाया गया जिसमें दोनों की मिली हुई आवाज ऑडियोबुक से ज्यादा तेज थी.
वैज्ञानिकों ने पाया है कि केवल ध्यान से सुनने पर ही बाहरी कान की मांसपेशियां कुछ सक्रिय होती हैं लेकिन उससे कान हिलता नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
तीन तरह के हालात
तीसरी स्थिति में एक पोडकॉस्ट उसी पिच पर चला जो ऑडियोबुक का था, जबकि दूसरा पोडकॉस्ट उसी पुरानी पिच पर ही चलाया गया. शोधकर्ताओं ने बताया कि वे इस बात में अधिक दिलचस्पी रखते थे कि कोशिश करके सुनने के दौरान क्या इंसान का वह ऑरिक्यूलोमोटर सिस्टम अपनी संदेनशीलता दिखाता है या नहीं.
अलग अलग महौल की आवाज
अध्ययन के नतीजे समझाने के लिए स्क्रोअर ने बताया कि यह बिलकुल वैसे ही है कि ऐसा आप पहले खाली रेस्टोरेंट में कुछ सुनते हैं और उसी रेस्टोरेंट में शोर के बीज वहीं आवाज को समझने की कोशिश करते हैं. हर प्रतिभागी को हर माहौल में दो बार आवाजें सुनवाई गईं और फिर स्पीकर के जगह बदलने पर उसे फिर से दोहराया भी गया.
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शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन में कोई भी अपने कान अपनी मर्जी से नहीं हिला पाया. यानी नतीजों के अध्ययन का किसी के भी कान हिलाने की काबिलियत से कोई लेना देना नहीं था. इसके अलावा अध्ययन छोटा था और उसमें ज्यादा लोगों पर प्रयोग करने की जरूरत थी. फिर भी शोधकर्ताओं का कहना है कि नतीजों ने काफी गहरी जानकारी देने का काम किया.
Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
February 02, 2025, 08:01 IST