Explainer: क्या होता है घाटे का बजट,जो हर बार भारत में पेश होता है,किसका फायदा

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Last Updated:February 01, 2025, 15:06 IST

भारत सरकार का वर्ष 2025-26 का मौजूदा बजट 16.13 लाख करोड़ रुपए के घाटे का पेश किया गया है. आखिर क्या होता है घाटे का बजट, जो हर साल ही पेश होता है. जानते हैं इसके बारे में सबकुछ

 क्या होता है घाटे का बजट,जो हर बार भारत में पेश होता है,किसका फायदा

हाइलाइट्स

  • भारत का बजट 2025-26 में ₹16.13 लाख करोड़ घाटे का है
  • घाटे का बजट खर्च आय से अधिक होने पर होता है
  • घाटे का बजट आर्थिक विकास को गति देता है

भारत सरकार का वर्ष 2025-26 का बजट ₹16.13 लाख करोड़ के राजकोषीय घाटे का पेश किया गया है. ये घाटा सरकार की आय और व्यय के बीच के अंतर को दिखाता है. जिसमें सरकार का खर्च आय से अधिक होता है. वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2025 के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 4.8% रखा है, जबकि अगले वित्त वर्ष 2026 के लिए इसे 4.4% तक लाने की कोशिश होगी. वैसे ज्यादातर देश जब बजट पेश करते हैं तो ये घाटे का ही होता है.क्या होता है इसका मतलब और इससे क्या फायदा-नुकसान है.

घाटे वाला बजट (Deficit Budget) एक ऐसा बजट होता है जिसमें सरकार के कुल खर्चे (Expenditures) उसकी कुल आय (Revenue) से ज्यादा होते हैं. दूसरे शब्दों में सरकार जितना कमाती है उससे ज्यादा खर्च करती है, इसे बजट घाटा (Budget Deficit) कहा जाता है. मान लीजिए एक सरकार की कुल आय ₹10 लाख करोड़ है और उसके कुल खर्चे ₹12 लाख करोड़ हैं तो बजट घाटा ₹2 लाख करोड़ होगा. हालांकि इसका मतलब ये भी है कि सरकार को ₹2 लाख करोड़ का घाटा पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ेगा या अन्य साधन तलाशने होंगे.

घाटे वाले बजट का क्या असर होता है
सकारात्मक प्रभाव
आर्थिक विकास को गति देता है – सरकारें बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास परियोजनाओं में भारी निवेश करती हैं, जो लंबे समय में अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है. बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जिससे उपभोक्ता मांग बढ़ती है.

मंदी के समय मांग को बनाए रखने में मदद करता है
सरकार की आमदनी (जैसे- टैक्स वसूली) सीमित होती है, लेकिन खर्च की ज़रूरतें (जैसे- रक्षा, सब्सिडी, पेंशन) ज्यादा होती हैं. आर्थिक मंदी के समय टैक्स राजस्व घट जाता है, पर सरकार को खर्च कम नहीं कर सकती. मंदी या आर्थिक संकट के दौरान सरकारें अधिक खर्च करती हैं ताकि मांग को बनाए रखा जा सके. इससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता आती है.

कौन सी बातें घाटे को और बढ़ाती हैं
– चुनावी वादों और राजनीतिक दबाव के कारण सरकारें सब्सिडी, मुफ्त योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर अधिक खर्च करती हैं.
यह खर्च अक्सर राजस्व से अधिक होता है, जिससे घाटा बढ़ता है.
– कई देशों को अपने कर्ज के ब्याज और रक्षा पर भारी खर्च करना पड़ता है, जो बजट घाटे को बढ़ाता है.

नकारात्मक प्रभाव
– सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ जाता है.
– ब्याज भुगतान के कारण भविष्य के खर्चे सीमित हो सकते हैं.

दुनिया के कौन से देश घाटे वाला बजट पेश करते हैं
दुनिया के अधिकांश प्रमुख देश नियमित रूप से घाटे वाला बजट (Fiscal Deficit) पेश करते हैं.
1. संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) –2023 में अमेरिका का बजट जीडीपी के 5.8% घाटे का था यानि करीब $1.7 ट्रिलियन डॉलर के घाटे का

2. जापान (Japan) – जापान का 2023 का बजट जीडीपी के 6% घाटे का था. इसकी वजह बुजुर्ग आबादी पर अधिक खर्च (पेंशन, स्वास्थ्य), आर्थिक मंदी से निपटने के लिए मोटा प्रोत्साहन पैकेज रहा.

3. यूनाइटेड किंगडम (UK) – यानि ब्रिटेन का बजट जीडीपी के 5.1फीसदी घाटे का था. ब्रेक्जिट के बाद के आर्थिक झटकों, ऊर्जा संकट, और स्वास्थ्य सेवा (NHS) पर खर्च बढ़ने से ये घाटा बढ़ गया.

4. फ्रांस (France) – फ्रांस का वर्ष 2023 का बजट जीडीपी के 4.9% घाटे का था. घाटे की वजह पेंशन सुधार विरोध, ऊर्जा सब्सिडी, और सामाजिक सुरक्षा व्यय रही

5. ब्राज़ील (Brazil) – ब्राजील का बजट 7% घाटे का था. ये सामाजिक कल्याण योजनाओं (बोल्सा फैमिलिया), राजनीतिक अस्थिरता, और आर्थिक मंदी की वजह से रहा

अगर इन सारे देशों के बजट में देखें तो ये सभी सामाजिक कल्याण योजनाओं पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. सबसे कम घाटे का बजट पिछले साल चीन और जर्मनी का रहा, जो जीडीपी का तीन और 2.5 फीसदी था. हालांकि जर्मनी यूरोप और दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में है.

कौन से देश घाटे वाला बजट पेश नहीं करते
कई देश घाटे वाला बजट नहीं पेश करते (या बहुत कम करते हैं), वे आमतौर पर संतुलित बजट (Balanced Budget) या अधिशेष बजट (Budget Surplus) अपनाते हैं. ये देश आमतौर पर अपनी आय (टैक्स, संसाधनों की बिक्री) से अधिक खर्च नहीं करते.

1. नॉर्वे (Norway) – इस देश को तेल और गैस के विशाल भंडार से जबरदस्त आय होती है. साथ ही उसका सॉवरेन वेल्थ फंड दुनिया का सबसे बड़ा और करीब $1.4 ट्रिलियन फंड है. जिसके निवेश से वह हमेशा लाभ की स्थिति में रहता है और राजस्व हमेशा लबालब रहता है. सरकार खर्च को राजस्व तक सीमित रखती है. हालांकि नॉर्वे जैसे देश भी COVID-19 के दौरान अस्थायी घाटे का बजट पेश कर चुके हैं

2. स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) – यहां पर टैक्स काफी ज्यादा हैं लेकिन लोगों में उन्हें देने की प्रवृत्ति भी खूब है. वित्तीय अनुशासन काफी है. सरकार के खर्च पर जनता की पकड़ रहती. जनता खर्च पर वीटो कर सकती है. यहां 2003 से “Debt Brake” नीति लागू, जो खर्च को आय के 99% तक सीमित करती है.

3. सिंगापुर (Singapore) – सिंगापुर इस मामले में दूसरे एशियाई देशों से अलग है क्योंकि ये घाटे का बजट पेश नहीं करता. इसके पास विशाल विदेशी मुद्रा भंडार, उच्च निवेश आय तो है साथ ही सरकारी कंपनियों लाभ में रहती हैं. यहां 1988 से आमतौर पर ज्यादातर बजट अधिशेष यानि सरप्लस का रहता आया है.

4. बोत्सवाना (Botswana) – आप हैरान हो सकते हैं कि एक अफ्रीकी देश कैसे खुद को घाटे के बजट से अलग रख पाता है. उसकी वजह हीरे के निर्यात से उसकी भारी आय और वित्तीय अनुशासन है. 1980 के दशक से ही ये आमतौर पर यहां बजट सरप्लस वाली स्थिति में रहता है.

5. ऑस्ट्रेलिया – आस्ट्रेलिया में पिछले कुछ सालों में संसाधन निर्यात (कोयला, लौह अयस्क) और कर सुधार होने से मुनाफे का बजट पेश होता है.

घाटे वाला बजट न होने के फायदे
आर्थिक स्थिरता – कर्ज का बोझ कम होने से आर्थिक संकट (जैसे मुद्रास्फीति, ब्याज दरों में वृद्धि) का जोखिम घटता है.
विदेशी निवेशकों का विश्वास – कर्ज-से-GDP अनुपात कम होने से देश की क्रेडिट रेटिंग बेहतर होती है, जिससे उधार लेने की लागत घटती है.
भविष्य के लिए तैयारी – देश की सरप्लस कमाई को भविष्य के संकटों (जैसे प्राकृतिक आपदा, महामारी) या बुनियादी ढांचे के निवेश में इस्तेमाल किया जा सकता है. भविष्य की पीढ़ियों को कर्ज चुकाने का बोझ नहीं उठाना पड़ता.
मुद्रा मजबूती – कर्ज कम होने से देश की मुद्रा स्थिर रहती है, जो आयात-निर्यात को संतुलित करती है.

घाटे वाला बजट न होने के नुकसान
सार्वजनिक निवेश में कमी –स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में खर्च कम हो सकता है, जिससे दीर्घकालिक विकास प्रभावित होता है.
आर्थिक मंदी का जोखिम- मंदी के समय खर्च न बढ़ाने से अर्थव्यवस्था और संकुचित हो सकती है.
राजनीतिक दबाव – सामाजिक कल्याण योजनाओं या चुनावी वादों को पूरा करने के लिए धन की कमी हो सकती है.
नवाचार में कमी –सरकारी खर्च कम होने से तकनीकी शोध और विकास (R&D) जैसे क्षेत्र पिछड़ सकते हैं.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

February 01, 2025, 15:06 IST

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