मंगल ग्रह पर कभी हालात जीवन के लायक थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. तो फिर ऐसा हो कैसे गया. इतना बड़ा आमूल चूल बदलाव एक दिन या एक सदी में तो नहीं हुआ होगा. नासा के क्यूरियोसिटी रोवर से मिले नए साक्ष्यों से इसी बदलाव के बारे में पता चलता. मंगल पहले जीवन के अनुकूल, जलीय दुनिया के हालत भरा था. ये वहां से आज सूक्ष्मजीवी जीवन को बढ़ावा देने वाले कठोर वातावरण में अत्यधिक तापमान और कठिन वायुमंडलीय स्थितियों तक पहुंच गया है. क्यूरियोसिटी के नतीजे हमें यह समझने में भी मदद करते हैं कि पृथ्वी से परे जीवन कैसा दिख सकता है.
कुछ दिलचस्प तथ्यों की खोज करने वाले नासा के गोडार्ड स्पेस फ़्लाइट सेंटर के शोधकर्ता डेविड बर्ट ने अपनी टीम के साथ मिलकर अपने क्यूरियोसिटी को गेल क्रेटर में खूब दौड़ाया, जो 96 मील तक फैला एक विशाल बेसिन है. एक प्राचीन झील मंगल की हमेशा बदलती जलवायु को बयान करने वाले एक अनोखे टाइम कैप्सूल की तरह काम करता है. परतदार चट्टानों और तलछटों की बदौलत, बर्ट जैसे शोधकर्ता ग्रह के अतीत की बारीकी से जांच कर पाते हैं.
कार्बोनेट और उनके आइसोटोप से मिले सुराग
इस मंगल ग्रह की कहानी में नायक की भूमिका निभाने वाले कार्बन-समृद्ध खनिजों, कार्बोनेट्स के पास कुछ दिलचस्प कहानियां हैं. इनका अध्ययन करके, वैज्ञानिक उन जलवायु और जीवन-सहायक हालात को सामने ला रहे हैं जो इन खनिजों के बनने के समय प्रचलित थीं. इन कार्बोनेट्स के बारे में इतना दिलचस्प क्या है? तत्व विज्ञान के गुमनाम नायक आइसोटोप. द्रव्यमान में अलग ये परमाणु रूप हमें समय के साथ पर्यावरणीय बदलावों की एक झलक देते हैं.
क्यूरोसिटी रोवर के जरिए नासा ने मंगल ग्रह पर वहां के इतिहास के नए सबूत जुटाए हैं. (तस्वीर : NASA)
आइसोटोप ने कैसे बताई कहानी?
जब पानी भाप बन उड़ता है, तो हल्के आइसोटोप अपने भारी साथियों को पीछे छोड़ते हुए वायुमंडल में चले जाते हैं. जैसे-जैसे समय बीतता है, ये भारी आइसोटोप कार्बोनेट्स में अपना घर बना लेते हैं. नासा के वैज्ञानिकों ने इन आइसोटोप के अनुपातों को मापने का शानदार काम किया है, जिससे हमें परमाणुओं की लिखी गई जलवायु डायरी मिली है.
कई तरह के संभावित हालात
साइंटिस्ट ने पाया कि ग्रह के गेल क्रेटर पर कार्बोनेट्स की वजह से दो तरह के हालात हुए होंगे. एक तो क्रेटर के गीले होने और सूखते रहने से पानी उड़ कर कार्बोनेट बार बार जमता रहा होगा. दूसरे नजारे में, कार्बोनेट ने बर्फीले हाताल में अत्यधिक नमकीन पानी में आकार लिया होगा. खनिज वाले नमकीन पानी के पूल बने. पहली स्थिति में अधिक रहने लायक से कम रहने लायक हालात रहे. वहीं दूसरे में ज्यादा संभावना ना रहने लायक हालात बनी जिससे ज्यादा पानी बर्फ में फंस गया.
इसी गाले क्रेटर पर शोधकर्ताओं को मंगल की बदलती तस्वीर की कहानी मिली. (तस्वीर : NASA)
इससे क्या पता चला?
यह प्राचीन मंगल ग्रह पर संभावित जीवन के लिए क्या संकेत देता है? भारी आइसोटोप मान तीव्र वाष्पीकरण प्रक्रियाओं का संकेत देते हैं. यह बिल्कुल “जीवन के अनुकूल” नहीं है, लेकिन यह भूमिगत जीवन या यहां तक कि सतही जीवन की संभावना को बाहर नहीं करता है, जो कार्बोनेट बनने से पहले तक बना रहा होगा. यानी अब साइंटिंस्ट को बेहतर से पता है कि मगंल पर हालात जीवन के इतने प्रतिकूल क्यों होते गए.
मंगल क्यों मायने रखता है
मंगल के जलवायु इतिहास को समझना केवल ब्रह्मांडीय जिज्ञासा का मामला ही नहीं है. यह हमें ग्रहों के विकास और जीवन के लिए ज़रूरी शर्तों के बारे में बताता है. इस लिहाज से मंगल बहुत ही खास ग्रह बना हुआ है. अगर मंगल ग्रह ने ऐसे जलवायु रोलर कोस्टर का अनुभव किया, तो क्या पृथ्वी पर भी ऐसा ही कुछ हो सकता है?
यह भी पढ़ें: चंद्रमा पर कैसे रहेंगे एस्ट्रोनॉट्स, अब पृथ्वी पर हो सकेगी इसकी प्रैक्टिस, ESA का लूना करेगा उनकी मदद
ये नतीजे हमें मंगल की जलवायु पहेली को सुलझाने के और करीब ले आए हैं. जैसे-जैसे हम मंगल के पर्यावरणीय विकास को समझते हैं, हम लाखों के सवाल का जवाब देने के करीब पहुंच रहे हैं: क्या मंगल पर कभी जीवन हो सकता था? हमारी खोज से पता चलता है कि भले ही सतह जीवन के अनुकूल न रही हो, लेकिन भूमिगत या पहले के समय में जीवन के अस्तित्व की संभावना दरवाज़ा खुला रखती है.
Tags: Science, Science facts, Science news, Space knowledge, Space news, Space Science
FIRST PUBLISHED :
October 8, 2024, 16:04 IST