Last Updated:February 11, 2025, 13:14 IST
Gita Updesh: गीता के उपदेश लोगों को जीवन जीने की कला सिखाते हैं. यह अमूल्य ग्रंथ न केवल अर्जुन के लिए मार्गदर्शक बना, बल्कि आज भी लाखों लोगों को जीवन की सही दिशा और प्रेरणा प्रदान करता है
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अच्छे लोगों को क्यों मिलता है हमेशा दुख!
हाइलाइट्स
- गीता उपदेश जीवन जीने की कला सिखाते हैं.
- श्री कृष्ण ने अर्जुन को कथा के माध्यम से समझाया.
- अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को उचित मार्गदर्शन मिलता है.
श्रीमद्भागवतगीता सभी ग्रथों में से एक श्रेष्ठ मानी गई है. इसमें मनुष्य के जीवन जीने की कला से लेकर उनके मार्गदर्शन के लिए कई विचार व उपदेश स्वयं श्री कृष्ण ने दिये हैं. गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए जो विचार व्यक्त किये हैं उनका अनुसरण आज भी लोग करते हैं. माना जाता है कि इन उपदेशों का जीवन में पालन करने वाले व्यक्ति को कभी निराशा नहीं मिलती और उसे हर परिस्थिति से उभरने के लिए उचित मार्गदर्शन मिलता है.
ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में इस बात का जिक्र भी किया है कि अच्छे लोग हमेशा दुखी क्यों रहते हैं? श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस बात को एक कथा के माध्यम से समझाया और आज कई लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि हम किसी का बुरा नहीं करते और अच्छा आचरण रखते हैं फिर भी हमारे साथ ही बुरा क्यों होता है. तो उन्हें भी इस कथा के माध्यम से इसका उत्तर प्राप्त हो जाएगा. तो आइए श्रीकृष्ण ने कथा में क्या बताया जानते हैं पंडित रमाकांत मिश्रा जी से.
श्रीमद्भगवतगीता श्रीकृष्ण कथा
श्री कृष्ण ने अर्जुन को कथा बताते हुए कहा, एक बार प्राचीनकाल में एक नगर में दो पुरुष रहा करते थे. उसमें एक व्यापारी और दूसरा चोर था. व्यापारी उच्च आचरण वाला व्यक्ति था, प्रतिदिन मंदिर जाना और पूजा-अर्चना करना, लोगों की सेवा, दान-पुण्य आदि किया करता था. लेकिन दूसरा व्यक्ति चोरी करता था, कहीं मंदिर के दानपात्र में से पैसे चुरा लेता था.
एक बार की बात है गांव में एक बार जोर से आंधी-तूफान और बारीश हो गई. बारीश की वजह से उस दिन मंदिर में पुजारी के अलावा कोई भी नहीं था. बारिश होता देख, दूसरा व्यक्ति जो चोर था मंदिर पहुंच गया और पुजारी कुछ देर बाद जब कहीं चले गए तो, चोर ने मंदिर का सारा धन चुरा लिया और वहां से भाग निकला. लेकिन बारिश बंद होने के बाद व्यापारी मंदिर में पहुंचा और उसी समय मंदिर का पुजारी भी वहां पहुंच गया और उसने व्यापारी को चोर समझ लिया.
वह चोर-चोर की आवाज लगाकर शोर मचाने लगा. पुजारी का शोर सुनकर मंदिर के आस-पास के लोग भी मंदिर में पहुंच गए और उसे चोर समझने लगे. यह सब देखकर व्यापारी हैरान हो गया और किसी तरह से मंदिर से निकल गया. मंदिर से निकलते ही वह व्यापारी एक गाड़ी से टकरा गया और घायल अवस्था में वह मन में सोचने लगा कि आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है? मैं तो रोज पूजा भी करता हूं, गरीबों को दान भी देता हूं. श्री कृष्ण कथा को आगे बढ़ाते हुए अर्जुन को बताते हैं कि,
कर्मों का लेखा-जोखा
कुछ ही दिनों के बाद व्यापारी और चोर दोनों की मृत्यु हो गई और दोनों यमराज के पास पहुंचे. जहां
व्यापारी ने चोर को अपने सामने देखकर यमराज से पूछा,- कि हे यमदेव! मैं तो जीवन भर अच्छा कर्म ही करता था. फिर भी मुझे अपमानित होना पड़ा और तो और जीवन भर दुख भोगा. लेकिन इसने जीवन भर चोरी की, लोगों का धन चुराकर खाया इसके बाद भी यह हमेशा सुखी रहा. ऐसा क्यों?
तब यमराज ने कहा पुत्र तुम गलत सोच रहे हो। जिस दिन तुम गाड़ी से टकराए थे वही तुम्हारे जीवन का आखिरी दिन था. लेकिन तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण ही तुम उस दिन बच गए. इस पापी व्यक्ति की कुंडली में राजयोग लिखा था लेकिन बुरे कर्मों के कारण यह भोग नहीं पाया. इसके बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा पार्थ इस कथा के जरिये तुम्हें समझ आ गया होगा कि क्यों हमेशा अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति दुखी रहता है.
First Published :
February 11, 2025, 13:14 IST