Agency:News18 Madhya Pradesh
Last Updated:February 11, 2025, 17:50 IST
Farming Tips: छतरपुर जिले के किसान वर्षों से देसी अरहर की पारंपरिक खेती कर रहे हैं, जिसे पानी और खाद की कम जरूरत होती है. यह फसल 10 महीने में तैयार होती है और टूटने पर फिर से हरी हो जाती है. कम लागत में अधिक मु...और पढ़ें
देसी अरहर खेती
हाइलाइट्स
- छतरपुर में देसी अरहर की खेती परंपरागत तरीके से होती है.
- देसी अरहर की फसल में पानी और खाद की जरूरत नहीं होती है.
- देसी अरहर की फसल 10 महीने में तैयार होती है.
छतरपुर. छतरपुर जिले में सालों से किसान भाई देसी अरहर की परंपरागत तरीके से खेती करते आए हैं. इस देसी अरहर की खासियत ये है कि इसमें पानी की जरूरत नहीं होती है और इसका पेड़ भी इतना मजबूत होता है कि टूटने पर फिर से तैयार हो जाता है.
जिले के गहबरा गांव के रहने वाले किसान विनेश पाल लोकल 18 में बताते हैं कि सालों से हमारे यहां देसी अरहर की खेती होती आई है. आज भी यहां के किसान देसी अरहर की खेती करते हैं. जबकि जिले के कुछ जगहों में किसानों ने देसी अरहर की खेती करना बंद कर दिया है. क्योंकि देसी अरहर की फ़सल को तैयार होने में समय ज्यादा लगता है.
इस महीने में करते हैं बुवाई
किसान बताते हैं कि खरीफ फसलों की बुआई जब करते हैं तभी अरहर की बुआई करते हैं. जुलाई माह में तिल की फसल के साथ ही अरहर की फ़सल भी लगाई थी. तिल की फसल तो अक्टूबर माह में काट ली थी, अभी देसी अरहर की फसल लगी है.
इतने महीने में होती है तैयार
किसान बताते हैं कि इस देसी अरहर की पहचान यही है कि इस फसल को तैयार होने में लगभग 10 महीने का समय लगता है. जबकि अरहर की दूसरी वैरायटी को इससे कम समय लगता है. अरहर की कुछ वैरायटी तो ऐसी हैं कि 6 महीने में ही तैयार हो जाती हैं.
मानी जाती है मजबूत फसल
किसान बताते हैं कि इस फ़सल की खासियत ये है कि कितना भी पौधा इसका टूट जाए लेकिन पौधें की जड़ अगर जमीन में फंसी है तो भी पौधा फिर से हरा-भरा होकर खड़ा हो जाता है.
नहीं होती है पानी-खाद की जरूरत
किसान बताते हैं कि देसी अरहर की फ़सल में पानी और खाद की जरूरत कम ही होती है. जैसे जुलाई में इसकी बुवाई की तो लगभग 1 महीने बाद जो बरसात का पानी मिल गया, वही पर्याप्त होता है. सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. अगर किसी के पास पानी का साधन है तो लगा सकता है.
नाम मात्र की लागत, मुनाफा बढ़िया
किसान बताते हैं कि देसी अरहर की खेती में न तो अलग से रासायनिक खाद डालने की जरूरत होती है और न ही सिंचाई की जरूरत होती है. छुट्टा जानवरों से ही फसल को बचाना पड़ता है. अगर जानवरों से बचा लिया तो आराम से 2 क्विंटल का बीघा निकल आता है.
Location :
Chhatarpur,Madhya Pradesh
First Published :
February 11, 2025, 17:49 IST
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