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बस्ती: यूपी के बस्ती जिले के गौर स्थित कोठवा गांव के एक युवा किसान देवांश पांडेय हैं. उन्होंने 20 माह पहले ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की थी. आज अपने प्रयासों से न सिर्फ अपने परिवार का खर्च उठा रहे हैं, बल्कि क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा श्रोत बन गये हैं. देवांश की कहानी एक संघर्ष और सपनों की मिसाल वाली है.
देवांश पांडेय ने अपनी पढ़ाई बीकॉम और एमकॉम अमेठी-लखनऊ से की और बीएड की पढ़ाई बस्ती से की. जब उनके पिता का निधन हुआ, तो उन पर अपने छोटे भाइयों की पढ़ाई की जिम्मेदारी आ गई. इस कठिन समय में उन्होंने खेती करने का निर्णय लिया और उनके लिए ड्रैगन फ्रूट की खेती एक संभावनाओं से भरा क्षेत्र था.
पिता ने लगाया था इसके पौधे
उनके पिता ने पहले से ही ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए थे, देवांश के पिता का आकस्मिक निधन हो गया. देवांश ने अपने पिता के सपनों को पूरा करने का बीड़ा उठाया. उन्होंने 1.25 एकड़ (4.50 बीघा) में ड्रैगन फ्रूट के 2440 पौधों की रोपाई की. उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप पहली बार जून में 220 पीस ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन हुआ.
जाने कितने रुपए किलो बिक रहा ड्रैगन फ्रूट
ड्रैगन फ्रूट की बिक्री के लिए देवांश ने स्थानीय बाजार में कदम रखा. उन्होंने बताया कि रिटेल में ड्रैगन फ्रूट की कीमत 300 रुपए प्रति किलो थी, जबकि थोक में इसका मूल्य 80 रुपये प्रति पीस था. पहली फसल से ही उनकी आमदनी बढ़ने लगी. उन्होंने बताया कि पहली फ्रूटिंग में 6-7 हजार रुपए की कमाई हुई. जब 1500 फल तैयार हुए, तो कुल मिलाकर 84 हजार रुपए की आमदनी हुई.
अब तक उन्होंने कुल 1,20000 रुपए की आमदनी की है. उनके अनुसार, दिसंबर तक उनकी आमदनी 6-7 लाख रुपए तक पहुंच जाएगी. उन्होंने कहा, कि “बस्ती जिले में ड्रैगन फ्रूट का कोई अन्य सप्लायर नहीं है. इसलिए यह मुनाफे का सौदा साबित होगा.
ऑर्गेनिक तरीके से करते हैं खेती
देवांश ने बताया कि उन्होंने ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने का निर्णय लिया है. वे 90 प्रतिशत केमिकल रहित ऑर्गेनिक खेती करते हैं, जिसमें प्राकृतिक खादों का प्रयोग किया जाता है. जैसे मुर्गी का खाद, नीम की खली, गोमूत्र, गोबर की खाद और कंपोस्ट. कीटनाशक के लिए वे नीम के तेल का इस्तेमाल करते हैं, जो न केवल स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है.
वन टाइम इन्वेस्टमेंट की है यह खेती
ड्रैगन फ्रूट की खेती में लागत केवल एक बार आती है, जो बैरीकेटिंग और पौधों को सहारा देने के लिए ढांचे के निर्माण में लगती है. एक बार पौधे लगाने के बाद, किसी भी प्रकार की अतिरिक्त लागत नहीं आती. देवांश ने बताया कि साल में जुलाई से लेकर चार माह में चार बार फसल आती है, जिससे वे लगातार आमदनी कर सकते हैं.
प्रेरणा का स्रोत बने देवांश
देवांश की कहानी अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा है. उन्होंने यह साबित किया कि कठिनाइयों के बावजूद सही दिशा में प्रयास करने से सफलता प्राप्त की जा सकती है. वह अपने छोटे भाइयों की पढ़ाई और परिवार का खर्च उठाने के साथ-साथ एक सफल किसान बन गए हैं.
देवांश पांडेय ने यह दिखाया है कि अगर मेहनत और समर्पण से काम किया जाए, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं होती. ड्रैगन फ्रूट की खेती ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया है, बल्कि उनके गांव के अन्य किसानों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. वे भी खेती में नए विचारों और तरीकों को अपनाकर बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं.
Tags: Agriculture, Basti news, Local18
FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 10:07 IST