Agency:News18 Uttar Pradesh
Last Updated:January 21, 2025, 12:40 IST
Mahakumbh Mela 2025: महाकुंभ में शामिल अखाड़े दान लेने नहीं, देने आते हैं. प्रतिदिन 25 लाख रुपये खर्च कर अन्न क्षेत्र चलाते हैं और दान करते हैं. खेती, किराये और मंदिरों से होने वाली आय से इनका खर्च चलता है, जि...और पढ़ें
हाइलाइट्स
- कुंभ मेले में अखाड़े दान देने आते हैं
- अखाड़ों का खर्च करोड़ों में, CA करते हैं ऑडिट
- अखाड़े की आय का स्रोत खेती, किराया और दान
महाकुंभ नगर (प्रयागराज). संगम नगरी में आयोजित महाकुंभ मेले में देश के कोने-कोने से साधु-संत और अखाड़े पहुंचे हैं. अखाड़ों के नागा संन्यासी महाकुंभ के मुख्य आकर्षण होते हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अखाड़े महाकुंभ में दान लेने नहीं, बल्कि अन्न और धन का दान करने आते हैं. अखाड़े की ओर से प्रतिदिन अन्न क्षेत्र चलाया जाता है, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं. प्रसाद ग्रहण करने के बाद उन्हें दक्षिणा भी दी जाती है, जिसे अखाड़े की भाषा में ‘दांत घिसाई’ कहा जाता है.
अखाड़ों की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत होती है. जैसे किसी संस्था को चलाने के लिए विभिन्न पद होते हैं, वैसे ही अखाड़े में भी मुंशी, प्रधान, थानापति और कोठार जैसे पद होते हैं. अखाड़े में खर्च का एक-एक पैसे का हिसाब रखा जाता है. खास बात यह है कि अखाड़े में आय और व्यय का चार्टर्ड अकाउंटेंट से ऑडिट कराया जाता है और इनकम टैक्स रिटर्न भी फाइल की जाती है. आमतौर पर अखाड़े में प्रतिदिन अन्न क्षेत्र और दान-दक्षिणा पर 25 लाख रुपए खर्च होते हैं. इस तरह पूरे महाकुंभ के दौरान करीब 10 करोड़ रुपए अखाड़े की ओर से खर्च किए जाते हैं.
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ऐसे रखा जाता है खर्चे का लेखा-जोखा
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी के अनुसार, पंचायती अखाड़ा निरंजनी में गिरी और पुरी दो प्रधान बनाए जाते हैं, जिनके हस्ताक्षर से ही धनराशि खर्च की जाती है. निरंजनी अखाड़े में आठ श्री महंत होते हैं, जिनमें से सात सचिव बनाए जाते हैं. अखाड़े के सचिवों पर ही संचालन का जिम्मा होता है. इसके अलावा, नागा संन्यासियों को उनकी योग्यता और क्षमता के आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्त किया जाता है. महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन में अध्यक्ष भी बनाए जाते हैं. लेकिन अखाड़े में सबसे महत्वपूर्ण पद मुंशी का होता है, जो खर्च का लेखा-जोखा रखते हैं.
अखाड़ों की ऐसे होती है कमाई
महंत रवींद्र पुरी के अनुसार, अखाड़े महाकुंभ मेले में दान लेने नहीं, बल्कि दान करने आते हैं. उनके मुताबिक, अखाड़े के पास अपनी खेती-बाड़ी की जमीनें और अन्य संपत्तियां हैं, जिनसे किराया आता है. इसके अलावा, मठ-मंदिरों से भी आय होती है, जिसे महाकुंभ में अन्न और धन के दान के रूप में खर्च किया जाता है. निरंजनी अखाड़ा प्रतिदिन करीब 25 लाख रुपए खर्च करता है. पूरे महीने में 10 करोड़ से ज्यादा का खर्च अकेले निरंजनी अखाड़े की ओर से महाकुंभ मेले में किया जाता है.
इनकम टैक्स भी भरते हैं अखाड़े
महंत रवींद्र पुरी के अनुसार, अखाड़े की आय और खर्च का पूरा लेखा-जोखा रखा जाता है और इसका ऑडिट चार्टर्ड अकाउंटेंट से कराया जाता है. इसके बाद इनकम टैक्स रिटर्न भी दाखिल किया जाता है. कई बार इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने में एक छोटी सी गलती की वजह से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को पेनल्टी भी देनी पड़ती है. निरंजनी अखाड़े के साथ एक बार ऐसा हो चुका है कि करोड़ों रुपए की पेनल्टी भरनी पड़ी थी.
6 साल की कमाई को कुंभ में करते हैं खर्च
महंत रवींद्र पुरी के अनुसार, तीर्थराज प्रयाग की भूमि पुण्य की भूमि है. इसलिए यहां पर न केवल गृहस्थ बल्कि साधु-संत भी पुण्य कमाने आते हैं. उनके मुताबिक, दानवीर महाराजा हर्षवर्धन की तरह अखाड़े को 6 साल में जो आय होती है, उसे कुंभ और महाकुंभ में आकर दान करते हैं और फिर से धन संग्रह करते हैं, ताकि अगले कुंभ और महाकुंभ में आकर फिर से अन्न और धन का दान कर सकें.
Location :
Allahabad,Uttar Pradesh
First Published :
January 21, 2025, 12:40 IST
अखाड़े की अर्थव्यवस्था! कुंभ में प्रतिदिन का खर्चा 25 लाख, CA करते हैं ऑडिट