अशोक सिंह भाटी. अजमेर. अजमेर दरगाह में मंदिर होने का दावा मामले में दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का बयान सामने आया है.उन्होंने कहा कि ‘यह न्यायालय की प्रक्रिया है.न्यायालय में सबको जाने का अधिकार है. जब न्यायालय में कोई वाद प्रस्तुत किया जाता है, तो एक प्रक्रिया के तहत कोर्ट उसकी सुनवाई नियत करता है और संबंधित पार्टियों को नोटिस जारी करता है. इसमें दरगाह कमेटी को पार्टी बनाया गया है. अल्पसंख्यक मंत्रालय और एएसआई को पक्षकार बनाया गया है. हम इस पर नजर लगाकर बैठे हैं. अपने वकीलों के हम संपर्क हैं. हम अपना पक्ष मजबूती के साथ रखेंगे. मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा लेकिन जो परिपाटी डाल दी गई है कि हर दरगाह और मस्जिद में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है, हर इंसान उठकर आ रहा है, और नई नई एप्लिकेशन लगा रहा है, वो परिपाटी हमारे समाज, हिंदुस्तान के लिए सही नहीं है.जो विवाद 150-200 साल पुराने हैं, या 1947 से पहले के हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए. हाल ही संभल में जो हुआ, वह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है.’
चिश्ती ने आगे कहा ‘दरगाह हमेशा अमन शांति सदभाव का स्थान रहा है. यहां सभी की आस्था जुड़ी है. 1236 ईसवी में ख्वाजा साहब का इंतकाल हुआ, तब दरगाह बनी थी. दरगाह में अंग्रेजी हुकूमत के साथ ही हिंदुस्तान के कई राजाओं ने हाजरी दी थी.देश-दुनिया की कई लोगों की आस्था अजमेर दरगाह में है.दरगाह में लगाए गए वाद को लेकर मजबूती से लड़ा जाएगा. सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे वाद किए जाते हैं.’
उधर, अजमेर दरगाह के मामले में अदालत द्वारा याचिका स्वीकार करने मामला में AIMIM प्रवक्ता काशिफ जुबैरी ने देश कई जगह याचिकाएं लगाई जा रही हैं. इस तरह के मामलों से देश आपसी भाईचारा कम होगा.पूरे देश में इस तरह का पेंडोरा बॉक्स खुल गया है. इन मामलों में वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन हो रहा है. अयोध्या और बाबरी मस्जिद मामला केवल शुरुआत थी,अब जगह-जगह याचिकाएं लग रहीं है. इस तरह लोग याचिका लगाते रहेंगे और अदालत स्वीकार करती रहेंगी. केसेज़ बढ़ते जाएंगे. इस तरह की याचिकाएं धर्म विशेष को टारगेट करने के लिए राजनीति से प्रेरित हैं.इस तरह के मामलों को सुप्रीम कोर्ट को गंभीरता से लेना चाहिए.
दरअसल, अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह हिंदू संकट मोचन मंदिर तोड़कर बनाने का दावा अजमेर सिविल न्यायालय पश्चिम ने स्वीकार कर लिया है. कोर्ट ने एएसआई दरगाह कमेटी और अल्पसंख्यक मामला विभाग को नोटिस भेजा है. मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर रखी गई है. दूसरे पक्ष को सुना जाएगा और इस मामले में अग्रिम कार्रवाई की जानी है. हिंदू सेना की राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा 25 सितंबर को अजमेर न्यायालय में अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को शिव मंदिर होने का दावा करते हुए वाद दायर किया था. यह वाद पहले अलग न्यायालय में पेश कर दिया गया जिसके चलते मुख्य न्यायालय में स्थानांतरण अर्जी लगाई गई. अब सिविल न्यायालय पश्चिम में केस ट्रांसफर किया गया.
फाइनली आज इस मामले में वादी विष्णु गुप्ता के वकील रामनिवास विश्नोई और ईश्वर सिंह द्वारा अपना पक्ष रखते हुए तमाम साक्षी और जानकारियां साझा की गई. बताया गया कि दरगाह को बने 800 साल से अधिक हुए हैं. इससे पहले यहां शिव मंदिर था और उसे तोड़कर दरगाह का निर्माण किया गया है. उन्होंने बताया कि हर मंदिर के पास एक कुंड होता है और वह भी वहां मौजूद है.
साथ ही पास में संस्कृत स्कूल भी मौजूद है, ऐसे में इसका सर्वे करवरकर हिंदू समाज को उन्हें मंदिर का निर्माण कर पूजा का अधिकार दिया जाए. उन्होंने 1910 में जारी हुई हर विलास शारदा की बुक का हवाला भी दिया जिसमें मंदिर को लेकर कई जानकारियां साझा की गई हैं. ऐसे ही कई जानकारियां 38 पन्नो के माध्यम से रखी गई हैं. जस्टिस मनमोहन चंदेल ने इस दावे को स्वीकार करते हुए नोटिस जारी करने की आदेश दिए हैं. यह नोटिस अजमेर दरगाह कमेटी के साथ ही अल्पसंख्यक मामला विभाग और एएसआई भारतीय पुरातत्व विभाग के नाम जारी किए गए हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 20:46 IST