अमेरिकी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने क्यों दी भारतीय मार्केट से दूर रहने की सलाह

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Last Updated:February 08, 2025, 16:02 IST

प्रोफेसर अस्वथ दामोदरन ने भारतीय शेयर बाजार को रिस्की बताया है. सेंसेक्स पिछले साल में सिर्फ 9% बढ़ा है. दामोदरन ने कहा कि भारतीय बाजार का वैल्यूएशन दुनिया में सबसे ज्यादा है और वैश्विक कारक भी संकट बढ़ा सकते ह...और पढ़ें

अमेरिकी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने क्यों दी भारतीय मार्केट से दूर रहने की सलाह

सेंसेक्स इस साल अभी तक घाटे में ही है.

हाइलाइट्स

  • भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव जारी है.
  • प्रोफेसर अस्वथ दामोदरन ने भारतीय बाजार को रिस्की बताया.
  • वैश्विक कारक भी भारतीय बाजार के संकट को बढ़ा सकते हैं.

नई दिल्ली. भारतीय शेयर बाजार पिछले साल से ही काफी उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है. 2022 में सेंसेक्स के जल्दी ही 1 लाख का आंकड़ा छूने का अनुमान लगाने वाले भी अब हैरानी में हैं और किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा कि बाजार में चल क्या रहा है. सेंसेक्स पिछले 1 साल में मात्र 9 फीसदी बढ़ा है जबकि इस साल अब तक तो यह घाटे में ही रहा है. कई लोगों का कहना है कि यह स्वस्थ गिरावट है और इससे स्टॉक्स अपनी सही वैल्यू पर आ जाएंगे. इसी बीच न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और वैल्यूएशन एक्सपर्ट अस्वथ दामोदरन ने दबी आवाज में भारतीय बाजार को बहुत रिस्की बता दिया है.

दामोदरन का कहना है कि भारतीय स्टॉक मार्केट का वैल्यूएशन अभी भी दुनिया के किसी और मार्केट की तुलना में सबसे ज्यादा है. उन्होंने कहा कि चाहे लोग कितने भी हाथ-पांव चलाएं लेकिन तर्कसंगत तरीके से उनकी इस बात को कोई नहीं झुठला सकता है. बाजार की जानकारी रखने वाले लोग अच्छे से जानते हैं कि अगर किसी स्टॉक की वैल्यूएशन अप्रत्याशित रूप से बहुत ज्यादा हो तो उसमें निवेश करना कितना जोखिम भरा होता है. दामोदरन ने कहा है, “P/E रेशियो के आधार पर, दुनिया के सबसे सस्ते बाजार ज्यादातर अफ्रीका में हैं, जबकि सबसे महंगे बाजारों में भारत और चीन शामिल हैं. अमेरिका भी इस सूची में आता है.”

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भविष्य से प्रभावित होकर कर रहे निवेश
वैल्यूएशन गुरु माने जाने वाले दामोदरन ने भारत की प्राइसिंग मेट्रिक्स की तुलना अन्य बाजारों से की और कहा कि निवेशक देश की दीर्घकालिक वृद्धि क्षमता से प्रभावित हैं, लेकिन मौजूदा वैल्यूएशन बहुत अधिक हो चुके हैं. उन्होंने कहा, “हर बाजार का मूल्यांकन कॉमन फैक्टर्स—राजस्व, लाभ, नकदी प्रवाह और बुक वैल्यू—से स्केल किया जाना चाहिए. लेकिन समय के साथ इन मूल्यों में बदलाव भी होता है, जो निवेशकों के लिए अहम होता है.” हालांकि चीन और अमेरिका भी महंगे बाजारों में गिने जाते हैं, लेकिन दामोदरन के अनुसार भारत का प्रीमियम सबसे ज्यादा दिख रहा है. उन्होंने बताया कि जिन क्षेत्रों में ग्रोथ सबसे ज्यादा होती है, वे अधिक प्रीमियम पर ट्रेड करते हैं, जबकि उच्च जोखिम वाले बाजारों की प्राइसिंग कम होती है. उन्होंने कहा, “अगर सही कीमत पर कोई निवेश करता है, तो उसे जोखिम वाले देशों में भी अवसर मिल सकते हैं, लेकिन गलत कीमत पर निवेश करना सबसे सुरक्षित बाजारों में भी नुकसानदेह साबित हो सकता है.”

ग्लोबल फैक्टर्स भी बढ़ा सकते हैं संकट
दामोदरन ने वैश्विक बाजारों को प्रभावित करने वाले बड़े कारकों पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा, “2025 की शुरुआत व्यापार युद्ध और टैरिफ विवादों के साथ हुई है. ऐसा लग रहा है कि चार दशकों तक बिना रुके बढ़ी ग्लोबलाइजेशन की लहर अब थम रही है और राष्ट्रवाद (nationalism) फिर से बढ़ रहा है.” उन्होंने आगे कहा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती भी बाजार के लिए एक चुनौती बन सकती है. 2024 में डॉलर 9.03% मजबूत हुआ, खासकर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी के मुकाबले. ब्याज दरों और मुद्रास्फीति की अनिश्चितता भी निवेशकों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 08, 2025, 16:02 IST

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