जमीं में टूट के कैसे गिरा गुरूर उसका... अरविंद केजरीवाल की हार आम आदमी की जीत

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Agency:News18Hindi

Last Updated:February 08, 2025, 18:30 IST

दिल्ली चुनाव परिणाम विश्लेषण : देश की राजधानी में आम आदमी पार्टी का दबदबा खत्म हो गया है. दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम पीएम नरेंद्र मोदी मार्का पॉलिटिक्स की जीत है. ये आम आदमी की जीत है. अहंकार और गुरूर पर मोदी...और पढ़ें

जमीं में टूट के कैसे गिरा गुरूर उसका... अरविंद केजरीवाल की हार आम आदमी की जीत

अरविंद केजरीवाल नई दिल्‍ली विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं.

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की हार के कारण और राष्ट्रीय राजनीति पर इसके असर की चर्चा की करेंगे. इससे पहले दो शेर शायद निष्कर्ष तक पहुंचने में मदद कर दें. जब दोपहर बाद ये तय हो गया कि आम आदमी पार्टी 25 के नीचे सिमट रही है तो अरविंद केजरीवाल प्रकट हुए. बेहद सादगी से हार स्वीकार की. अपनी आदत के विपरीत ईवीएम या चुनाव आयोग पर कोई प्रहार नहीं किया. तो याद आया ये शेर –

ज़मीं पे टूट के कैसे गिरा ग़ुरूर उस का अभी अभी तो उसे आसमाँ पे देखा था.

ये वही केजरीवाल हैं जिन्होंने मंच से कहा था – मेरे जिंदा रहते भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में कभी चुनाव नहीं जीत सकती. ये अहंकार. वो भी राजनीति में. हालांकि जनता में या कहिए समर्थकों को शुरू-शुरू में ये रास आया. केजरीवाल खुद को आंदोलन से उपजे नेता और कट्टर ईमानदार कहा करते थे. लेकिन अन्ना को दगा, राजनीति में न आने की कसम और मजबूत करीबियों का ‘विश्वास’ तो उन्होंने पहले फुल टर्म में ही खो दिया. इससे पहले सत्ता के लिए कांग्रेस से हाथ मिला ही चुके थे. वो भी तब जब राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार ने कांग्रेस पर लगे दागों की संख्या बढ़ा दी थी. फिर दूसरे टर्म में पानी-बिजली के साथ शराब भी एक पर एक फ्री मिलने लगा. मतलब सस्ता हो गया. लेकिन पता चला इस एक्साइज पॉलिसी में तो अरविंद केजरीवाल और उनके नंबर टू मनीष सिसोदिया खुद फंसे हैं. करोड़ों का वारा न्यारा हुआ है. फिर लो फ्लोर बस, मोहल्ला क्लिनिक, जल बोर्ड के घपले. मतलब वैकल्पिक राजनीति के अगुआ अन्य मामलों में भी अगुआ नजर आने लगे. फिर आम आदमी सोचने लगा – अब क्या फर्क बचा है. तो ये शेर याद आया – बाग़ पर शेर कहने वालों का , एक मिस्रा हरा-भरा नहीं है.

ब्लू वैगन आर, मफलर और हवाई चप्पल से शीश महल तक
मतलब न ईमानदारी बची, न सेवा का भाव बचा. सत्ता के लिए होने वाली राजनीति में केजरीवाल पर खुद ऐसा दाग लगा कि वो जेल से निकल बेल पर प्रचार कर रहे थे. फिर भी खुद को ईमानदार कह रहे थे. दूसरी तरफ मोदी मार्का पॉलिटिक्स आप के हर दावे को झूठ बताकर ताड़-ताड़ कर रही थी. सड़कों हालत, हवा में घुला जहर आम आदमी पर सीधा असर डाल रहा था. उधर बिना रोजगार दिए मुफ्त बिजली-पानी मिडल क्लास और स्लम के युवाओं को भी नागवार गुजरा. भाजपा ने दांव खेला और केजरीवाल की मुफ्त योजनाओं को जारी रखते हुए टॉप अप प्लान पेश कर दिया. हरियाणा और कर्नाटक में कांग्रेस की गारंटी फेल हो चुकी थी. दिल्ली बीजेपी के लिए भी थोड़ा टफ था. जो नेता सत्ता में हो उसी की गारंटी पर भरोसा ज्यादा रहा है. ये झारखंड में भी हुआ जहां हेमंत सोरेन की गारंटी पर ही जनता ने भरोसा जताया. लेकिन अरविंद केजरीवाल के अहंकार, उन पर भ्रष्टाचार के लगे आरोपों के देख कर जनता ने तय कर लिया वो यमुना का ‘जहर’ पी कर भी कमल को चुनेंगे. ब्लू वैगन आर, हवाई चप्पल और कौशांबी वाले फ्लैट से निकलने वाले केजरीवाल जब शीशमहल के मालिक बन गए तो पब्लिक ने मन बना लिया. इस सर्दी में तो उनके एक जैकेट पर भी कैमरे की नजर गई. दोस्तों ने बताया 22 हजार का रहा होगा.

पांच बदलाव दिखने वाला है
दिल्ली की हार पंजाब की जीत के मुकाबले ज्यादा मायने रखती है. अपनी बुनियाद को खो देने जैसा है. अरविंद केजरीवाल ये समझ रहे होंगे. दिल्ली के चुनाव परिणाम अब देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे. अगला चुनावी पड़ाव बिहार होगा जहां तेजस्वी यादव खुद को प्रवेश वर्मा साबित करने की कोशिश करेंगे. आप की हार से पांच असर तो साफ-साफ दिखेगा

  1. केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा  – पंजाब की जीत के बाद आप सातवें आसमान पर थी. गुजरात के स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के बाद केजरीवाल खुद को मोदी विरोध का चेहरा मानने लगे थे. दिल्ली की हार ने ये ख्वाब ध्वस्त कर दिया है.
  2. इंडिया गंठबंधन – रिजल्ट एनालिसिस बता रहा है कि 12 सीटों पर कांग्रेस के वोट आप कैंडिडेट के हार के मार्जिन से ज्यादा है. इसका मतलब ये नहीं है कि दोनों मिलकर लड़ते तो परिणाम बदल जाते लेकिन असर तो होता ही. हार के बाद आप और कांग्रेस के बीच की खाई बढ़ेगी. कांग्रेस इसे दिल्ली में खोई जमीन वापस पाने का मौका समझेगी
  3. केजरीवाल की अपनी निजी छवि धूमिल हुई है. जेपी-लोहिया बनने निकले थे लेकिन आज हारे हुए नेता हैं जिन पर दाग लगा है.
  4. लोकसभा में 240 सीटों पर सिमटने के बाद जिस तरह विपक्ष ने मोदी को कमजोर साबित करने की कोशिश की है उस नैरेटिव को बीजेपी ने फेवर में भुनाया है. वो पब्लिक में ये संदेश देने में कामयाब रही कि कमजोर मोदी देश के लिए नुकसानदेह है. इसलिए हरियाणा और महाराष्ट्र में उदासीन वोटरों ने जम कर वोट किया. यहां तक कि मिल्कीपुर उपचुनाव में प्रचंड जीत साबित करती है कि जनता मोदी को कमजोर नहीं देखना चाहती.
  5. डबल इंजन जरूरी है, ये नैरेटिव मजबूत हो सकता है. इसका सीधा असर बिहार चुनाव में देखने को मिल सकता है.

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Delhi,Delhi,Delhi

First Published :

February 08, 2025, 18:30 IST

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