हमारे नर्मदापुरम के चावल की डिमांड अरब देशों तक
नर्मदापुरम: इस वर्ष नवरात्र के बाद नर्मदापुरम जिले में बासमती धान की कटाई शुरू होने जा रही है. क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किसान पूसा बासमती धान की विभिन्न हाइब्रिड वैरायटियों की खेती करते हैं, जो रोग प्रतिरोधी और उच्च उत्पादन वाली किस्में हैं. इन किस्मों की खुशबूदार बालियां खेतों में निकल चुकी हैं, जिससे पूरा क्षेत्र महक उठा है. किसानों का कहना है कि इस वर्ष फसल में रोग कम हैं, और पैदावार अच्छी होने की उम्मीद है.
बासमती धान की पी1 और पी6 वैरायटी
बनखेड़ी क्षेत्र के किसान मुख्य रूप से पूसा बासमती धान की पी1 और पी6 वैरायटी उगाना पसंद करते हैं. यह धान न केवल स्वादिष्ट और खुशबूदार है, बल्कि इसका चावल पतला और लंबा होता है, जिसकी देश-विदेश में विशेष मांग है. कृषि विस्तार अधिकारी पीडी जाटव के अनुसार, बनखेड़ी क्षेत्र में पानी की अच्छी उपलब्धता और बासमती धान के अच्छे दामों के चलते किसान इस किस्म की खेती में अधिक रुचि दिखा रहे हैं.
बासमती चावल का निर्यात और कस्टम ड्यूटी पर विचार
इस वर्ष बासमती धान की बेहतर क्वालिटी और बंपर पैदावार के चलते पिपरिया और अन्य प्रमुख चावल उत्पादक कंपनियां इस क्षेत्र से लाखों कुंटल धान की खरीदी करने वाली हैं. हालांकि, पिछले साल कुछ शासकीय प्रतिबंधों के कारण बासमती चावल का निर्यात प्रभावित हुआ, जिससे किसानों को बासमती धान के दाम कम मिले. लेकिन अब कस्टम ड्यूटी और एक्सपोर्ट प्रतिबंध हटाने पर सरकार विचार कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का भरपूर दाम मिलने की उम्मीद है. यदि यह निर्णय किसानों के हित में लिया जाता है, तो बासमती धान के दामों में भी वृद्धि होगी.
देश-विदेश में प्रसिद्ध नर्मदापुरम का चावल
नर्मदापुरम जिले के बनखेड़ी क्षेत्र में पैदा होने वाला बासमती चावल अरब देशों सहित विभिन्न विदेशी बाजारों में निर्यात किया जाता है. यह चावल अपने विशेष स्वाद, पतले आकार और लंबी दानों के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य किस्मों से अलग बनाता है. इस चावल की मांग न केवल भारत के विभिन्न राज्यों में, बल्कि विदेशों में भी काफी है.
90 हजार एकड़ में बासमती धान की खेती
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष बनखेड़ी ब्लॉक में करीब 90,000 एकड़ में धान की खेती की गई है, जिसमें 80 से 85% हिस्सा बासमती धान का है. क्षेत्र के किसान औसतन प्रति एकड़ 20 से 30 कुंटल धान की पैदावार करते हैं. क्षेत्र के किसानों का इस किस्म की खेती में तजुर्बा होने के कारण उत्पादन में हर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है.
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FIRST PUBLISHED :
October 9, 2024, 10:37 IST