गुजरात: हर साल लाखों टूरिस्ट कच्छ के सफेद रेगिस्तान को देखने आते हैं. आमतौर पर टूरिस्ट वॉच टॉवर के जरिए सफेद रेगिस्तान का दीदार करते हैं. हालांकि, इसे देखने का एक बेहतर ऑप्शन है काली पहाड़ी! कच्छ की काली पहाड़ी भुज से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. इसे कच्छ का कैलाश पर्वत कहा जाता है. कच्छ की काली पहाड़ी हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए एक पवित्र तीर्थ भी स्थल है. काली पहाड़ी पर पचमई पीर भी है. साथ ही यहां एक ऐसा मंदिर है, जहां लोमड़ियों प्रसाद खाने आती हैं. पूरी जानकारी के लिए लोकल18 ने इतिहासकार प्रमोदभाई जेठी से खास बातचीत की है.
काली पहाड़ी का दत्तात्रेय मंदिर
काली पहाड़ी पर गुरु दत्तात्रेय का मंदिर है, जो कच्छ का एक फेमस धार्मिक स्थल है. इस मंदिर में भगवान दत्तात्रेय के छठे रूप के दर्शन किए जा सकते हैं. मंदिर का पुनर्निर्माण कच्छ के भूकंप के बाद किया गया था. माना जाता है कि जब गुरु दत्तात्रेय ने बलूचिस्तान में हिंगलाज माताजी के दर्शन किए, तब उनके चरण काली पहाड़ी पर पड़े, जिसके बाद यहां उनकी पादुका स्थापित की गई थी.
काली पहाड़ी और लोमड़ी की कहानी
काली पहाड़ी से जुड़ी एक रोचक कहानी है, जो लाख गुरु कारी से जुड़ी है. लाख गुरु यहां के पुजारी थे, जिन्होंने कई जानवरों को वश में किया था. एक दिन, एक लोमड़ी गुरू के पास आई पर उनके पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था. तब लाख गुरु ने अपना शरीर का एक हिस्सा लोमड़ी को अर्पित किया. लोमड़ी उस अंग को बिना खाए वापस चली गई. तभी गुरू ने कहा, “लो-आंग”. तभी से इस जगह को ‘लॉन्ग ओटलो’ का नाम मिला.
आज भी प्रसाद ग्रहण करती हैं लोमड़ियां
तब से लेकर आज तक, गुरु दत्तात्रेय को नैवेद्य (मीठे चावल का भोग) अर्पित किया जाता है. ठंड के मौसम में काली पहाड़ी के लॉन्ग ओटलो में इस प्रसाद को अर्पित किया जाता है. खास बात ये है कि सर्दी के मौसम में लोमड़ियां भी ये प्रसाद ग्रहण करने आती हैं.
सफेद रेगिस्तान के आसपास काली पहाड़ी सबसे बेहतरीन पर्यटन स्थलों में से एक है. ये पहाड़ी 229 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है. इसकी उंचाई 462 मीटर है. यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद खूबसूरत होता है. अगर आप भी कच्छ जाने का प्लान बना रहे हैं तो इस जगह को विजिट करना ना भूलें!
Tags: Gujarat, Local18, Special Project
FIRST PUBLISHED :
November 21, 2024, 14:45 IST