Agency:News18 Himachal Pradesh
Last Updated:February 07, 2025, 20:35 IST
मंडी जिले के ये पारंपरिक वाद्य यंत्र न सिर्फ धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि यह हिमाचली संस्कृति का भी प्रतीक हैं. इनके बिना देवी-देवताओं की पूजा अधूरी मानी जाती है. यह अनमोल धरोहर हमारी परंपराओं को जीवित रखने मे...और पढ़ें
वाद्य यंत्रों के साथ देवता का काफिला
हाइलाइट्स
- मंडी जिले के पारंपरिक वाद्य यंत्रों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है.
- देवी-देवताओं की पूजा और यात्राएं इन वाद्य यंत्रों के बिना अधूरी मानी जाती हैं.
- ये वाद्य यंत्र हमारी पारंपरिक धरोहर को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं.
मंडी: मंडी जिला अपनी प्राचीन सभ्यता और पारंपरिक परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां कई लोकल वाद्य यंत्र हैं, जिन्हें लोग सदियों से बजाते आ रहे हैं. ये वाद्य यंत्र विशेष रूप से देवी-देवताओं से जुड़े होते हैं और कई धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों में बजाए जाते हैं.
इन वाद्य यंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें स्थानीय कारीगर अपने हाथों से तैयार करते हैं. इन्हें बनाने में कई दिनों की मेहनत लगती है, जिससे इनकी कीमत भी अधिक होती है. मंडी जिले के पारंपरिक वाद्य यंत्रों में ढोल, बाम, नगाड़े, शहनाई और नरसिंघा प्रमुख रूप से शामिल हैं. ये वाद्य यंत्र देवी- देवताओं के आगे-आगे चलते हैं और उनका विशेष धार्मिक महत्व होता है.
बिना ढोल- नगाड़ों के अधूरा होता है देवी-देवताओं का सफर
मंडी में देवी-देवताओं की आरती और यात्रा में इन पारंपरिक वाद्य यंत्रों का बजना आवश्यक माना जाता है. सुबह-शाम की आरती के दौरान ये वाद्य यंत्र देवी- देवताओं के सम्मान में बजाए जाते हैं. जब देवता अपने रथ में यात्रा करते हैं तो बिना ढोल-नगाड़ों के यह सफर पूरा नहीं होता. जब तक इन वाद्य यंत्रों की थाप नहीं बजती, तब तक देवी-देवताओं की यात्रा शुरू नहीं होती है.
कैसे बनाए जाते हैं ये वाद्य यंत्र?
ये वाद्य यंत्र पुरानी पारंपरिक तकनीकों से बनाए जाते हैं.
1. ढोल और नगाड़ों का बाहरी ढांचा तांबे से तैयार किया जाता है.
2. इसके बाद उस पर बकरे की चमड़ी मढ़ी जाती है.
3. चमड़ी को अच्छी तरह सुखाया जाता है, जिससे वाद्य यंत्र बजाने के लिए तैयार हो सके.
4. सही तरीके से बनने के बाद इन वाद्य यंत्रों से शुद्ध और गूंजती हुई ध्वनि निकलती है.
हर देवी-देवता की होती है अलग धुन
मंडी जिले में हर देवी-देवता की अपनी विशिष्ट धुन होती है, जिससे उनकी पहचान होती है.
– चौहार घाटी के देवी-देवताओं की धुन अलग होती है.
– बदार इलाके के देवी-देवताओं की धुन अलग पहचानी जाती है.
– हर क्षेत्र के देवी-देवताओं की अपनी अलग संस्कृति और देव धुन होती है.
Location :
Mandi,Himachal Pradesh
First Published :
February 07, 2025, 20:35 IST