वीरांगना तीलू रौतेली की कहानी का जीवंत मंचन किया जा रहा है
देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड को वीरों की भूमि कहा जाता है. यहां की इकलौती वीरांगना ने 15 साल की उम्र में ही दुश्मनों के खिलाफ तलवार उठाकर उनसे लोहा लिया और अपने साम्राज्य के लिए बलिदान दिया. पहाड़ की लक्ष्मीबाई कहलाने वाली उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली को कौन नहीं जानता. उनकी कहानी का देहरादून के संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में जीवंत मंचन किया जाएगा. इसमें गढ़वाली नाटक के जरिये वीरगाथा बताई जाएगी.
जानिए तीलू रौतेली की कहानी
तीलू रौतेली गढ़वाली नाटक की आयोजक और उनका पात्र निभाने वाली नाट्य कलाकार वसुंधरा नेगी ने कहा कि वे पिछले 18 सालों से थिएटर कर रही हैं और वह देश- विदेश में रंगमंच करती हैं. उन्होंने कहा कि तीलू रौतेली की कहानी आपको इंटरनेट पर सर्च करने पर मिल जाएगी लेकिन उनके संघर्ष की कहानी को रंगमंच के जरिए आप प्रत्यक्ष रूप से महसूस कर पाएंगे. लोग जानेंगे कि उन्होंने कितना संघर्ष और कष्ट झेलने के बावजूद हार नहीं मानी.
जनता के दिलों में उतरने की कोशिश
लोगों के मन को छूने के लिए इसे उनकी अपनी गढ़वाली भाषा में प्रस्तुत किया जा रहा है. इसके अलावा इसमें हमने गीत और नृत्य का समावेश भी किया है ताकि लोग मनोरंजन के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी इससे जुड़ सकें. नाटक के जरिए उनसे जुड़ी विस्तार पूर्वक जानकारी आपको मिल जाएगी. उन्होंने बताया कि पिछले 8 महीने से वे इस नाटक की तैयारी कर रही हैं. आप इस नाटक को 24 नवंबर को शाम 5:30 बजे से देहरादून के आकाशवाणी केंद्र के नजदीक सांस्कृतिक प्रेक्षागृह हरिद्वार बाईपास रोड पर निःशुल्क देख सकते हैं.
गांव जाकर वसुंधरा ने बटोरी हैं जानकारियां
वसुंधरा बताती हैं कि किसी भी कहानी को लिखने के लिए और शोध करने के लिए यात्रा करना जरूरी है. टिंचरी माई के सफल मंचन के बाद उन्होंने उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली पर नाटक बनाने की सोची. इसके लिए वे तीलू रौतेली के गांव बीरोंखाल ब्लॉक अंतर्गत कांडा गई, जहां उन्होंने रिसर्च की. बड़े बुजुर्गों से बातचीत की और उनकी बहादुरी के किस्से सुने. ऐसे उन्होंने तीलू रौतेली के किरदार के लिए तैयारी की.
कौन थी वीरांगना तीलू रौतेली?
उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली का असली नाम तिलोमत्ता देवी था जिनका जन्म 8 अगस्त 1661 में पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट में हुआ था. इनके पिता का नाम भूप सिंह और माता का नाम मैनावती रानी था. भूप सिंह, गढ़वाल के राजा फतेहशाह के दरबार में थोकदार थे, उनके दो भाई भी थे. तिलोमत्ता को बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी का शौक था इसलिए वह इसमें निपुण थी.
15 साल की उम्र में उनकी सगाई चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के बेटे भवानी सिंह के साथ कर दी गई थी. उस काल में गढ़वाल शासकों और कत्यूरियों के बीच संग्राम चल रहा था. कत्यूरियों ने जैसे ही खैरागढ पर हमला किया तो तत्कालिक शासक मानशाह ने इसकी जिम्मेदारी तीलू के पिता भूप सिंह को दी और चांदपुर गढ़ी के लिए पलायन कर गया.
वीरता के किस्से
इस दौरान कई जंग हुईं जिनमें तीलू के मंगेतर समेत भूप सिंह और उनके दो बेटे वीरगति को प्राप्त हुए. अपने गढ़ में बाहरी आक्रमणकारियों के आक्रमण को देख तीलू ने भी तलवार उठा ली और फिर डटकर दुश्मनों का मुकाबला करती रहीं. तीलू ने मासीगढ़, सराईखेत, खैरागढ और भौनखाल सहित 13 किलों पर विजय पताका फहराई थी.
15 मई 1683 को जब तीलू नहाने के लिए उतरी तो पहले से ही घात लगाए शत्रुओं के सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इसके बाद उन्हें वीरांगना तीलू रौतेली के नाम से याद किया जाने लगा. उनकी बहादुरी के किस्से सुनकर लोग उन्हें गढ़वाल की रानी लक्ष्मीबाई भी कहने लगे.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 11:24 IST