Justice UU Lalit On Biggest Challenges In Criminal Justice: देश के 40वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित ने संविधान@75 के ‘NDTV INDIA संवाद' में कहा कि संविधान ये नहीं मानता कि सरकार का कोई धर्म हो. हर नागरिक अपना धर्म अपना सकता है. ये उसका अधिकार है. हालांकि, इस देश में धर्म के नाम पर हिंसा और दंगे होते आए हैं. 1947 के दंगे भी धर्म के नाम पर हुए. ये हमारे इतिहास का एक जख्म है. पिछले 75 सालों में हम इससे उबरे हैं, लेकिन जब-तब ये सामने आ जाता है. संविधान तो इसको सपोर्ट नहीं करता. एक राष्ट्र का तो कभी ये उद्देश्य नहीं होता कि हिंसा बढ़े. अभी जो तीन नये आपराधिक कानून आए हैं, उसमें आज तक जो नहीं था वो सब कुछ है. मॉब लिंचिंग तक पर कानून हैं. जैसे जैसे राष्ट्र आगे बढ़ता जाता है, वैसे वैसे ये कम होता जाना चाहिए.
छुआछूत पर क्या कहा?
यूयू ललित ने कहा कि 1950 में आर्टिकल 17 के तहत छुआछूत खत्म की गई, लेकिन अभी भी कहीं कहीं ये दिखाई देता है. हालांकि, संविधान उनकी रक्षा करता है. अमेरिका में भी इस तरह का भेदभाव किया जाता है. अमेरिका के सीनेट में आज तक सिर्फ 18 लोग चुनकर आए हैं. भारत में देखें तो हर विधानसभा और लोकसभा में इनका प्रतिनिधित्व बहुत अच्छी संख्या में है. ये हमारे संविधान की खासियत है. जबकि हमारा संविधान अमेरिका के संविधान के सामने बहुत नया है.
बेल पर क्या बोले यूयू ललित?
बेल पर कहा कि जज को भी कानून के दायरे में रहना पड़ता है. हमारा कानून ही ये कहता है कि जिस केस में 7 साल से ज्यादा की सजा हो उसमें बेल इतनी आसानी से नहीं दिया जा सकता. क्यों कि अगर रेप का आरोपी को आप आसानी से बेल दे देंगे तो शायद अन्य लड़कियों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा हो सकता है.अगर जज को पहली नजर में लगे कि मामले में आरोपी गुनहगार नहीं है तभी उसे बेल मिलनी चाहिए. फिर जज आसानी से कैसे बेल दे सकता है. हालांकि, होना तो यही चाहिए कि बेल नॉट जेल मस्ट रूल.
फेमस क्रिकेटर वाला मामला
जस्टिस यूयू ललित ने अपने लंबे न्यायिक कार्य के बारे में बताते हुए एक संस्मरण सुनाया. उन्होंने बताया कि वकालत के दौरान मेरे दो क्लाइंट थे. एक फिल्म एक्टर को काले हिरण को मारने की वजह से पांच साल की सजा हुई थी, और दूसरे एक फेमस क्रिकेटर, जिनको किसी के मर्डर के लिए दोषी मानते हुए तीन साल की सजा हुई थी.इस पर एक मेरे तीसरे क्लाइंट थे, उन्होंने कहा कि सर ये कहां का इंसाफ है कि एक जानवर को मारे तो पांच साल और एक इंसान को मारे तो तीन साल की सजा. ये दुविधा क्रिमनल जस्टिस में हमेशा रहती है. सजा कितनी होनी चाहिए? ये सबसे बड़ा सवाल होता है. कई सारी ऐसी धाराएं, जिनमें सजा माफी से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. तो सजा सुनाते समय इस पर गहराई से विचार किया जाना जरूरी है.क्रिमनल जस्टिस में ट्रायल को जल्द खत्म होनी चाहिए. क्योंकि अगर आप खत्म नहीं करोगे तो जेल में बैठा व्यक्ति बार-बार बेल मांगेगा और अदालत का वक्त खराब होगा. दूसरा जांच करने वाली एजेंसी प्रोफेशनल तरीके से काम करे. इससे सजा में आसानी होती है.प्रोफेशनल तरीके से काम करने के लिए ट्रेनिंग और साइंटिफिक संसाधन बढ़ाने होंगे. अभी 100 में से अभी 80 लोग क्रिमनल केस में बरी होते हैं.