त्रेतायुग में पुलस्त्य ऋषि के कुल में रावण का जन्म हुआ था, जिसके दो भाई कुंभकर्ण और विभीषण था. कुंभकर्ण विशाल शरीर और अपार बलशाली था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभकर्ण 6 महीने सोता था, उसके बाद सिर्फ एक दिन के लिए जागता था. फिर वह सो जाता था. रामचरितमानस में तुलसीदास ने लिखा है कि रावण, कुंभकर्ण और विभीषण ने कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप तीनों भाइयों ने अलग-अलग वरदान मांगा था. रावण ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसे मनुष्य और वानर के अलावा कोई न मार सके, वहीं विभीषण ने प्रेम और भक्ति मांगी. कुंभकर्ण ने ऐसा क्या वरदान मांगा था कि वह 6 महीने तक सोता रहता था. उसने ब्रह्म देव से वरदान मांगते समय क्या गलती कर दी थी या उसकी जुबान फिसल गई थी? आइए जानते हैं कुंभकर्ण, रावण और विभीषण को मिले वरदान के बारे में.
देवी सरस्वती ने फेर दी बुद्धि, कुंभकर्ण ने मांगा 6 माह की नीद
करि बिनती पद गहि दससीसा! बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा।।
हम काहू के मरहिं न मारें। बानर मनुज जाति दुइ बारें।।
एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा। मै ब्रह्मा मिलि तेहि बर दीन्हा।।
पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ।।
जौं एहि खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू।।
सारद प्रेरि तासु मति फेरी! मागेसि नीद मास षट केरी।।
गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु।
तेहिं मागेउ भगवंद पर कमल अमल अनुरागु।।
रामचरितमानस के अनुसार, रावण को वरदान देने के बाद ब्रह्मा जी जब कुंभकर्ण के पास आए तो उन्होंने उससे वरदान मांगने को कहा. साथ ही विचार किया कि यह राक्षस प्रतिदिन भोजन करेगा तो सारा संसार ही उजड़ जाएगा. यह सोचकर ब्रह्म देव ने देवी सरस्वती का ध्यान किया. देवी सरस्वती ने उसकी बुद्धि ही फेर दी. कुंभकर्ण ने ब्रह्म देव से 6 महीने की नीद मांग ली. ब्रह्म देव ने उसे वह वरदान दे दिया.
कुंभकर्ण मांगने वाला था इंद्रासन, मिला निद्रासन
काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट का कहना है कि वाल्मीकि रामायण में भी इस घटना का उल्लेख है कि ब्रह्म देव ने कुंभकर्ण को 6 माह तक सोने का वरदान दिया था. दरअसल कुंभकर्ण जब ब्रह्म देव से वरदान मांगने वाला था, तब उसकी जीभ पर देवी सरस्वती विराजमान हो गईं.
इस वजह से वरदान मांगते समय कुंभकर्ण के मुख से इंद्रासन की जगह निद्रासन निकला. ब्रह्म देव उसके मन की बात जानते थे. यदि वह इंद्रासन मांग लेता तो स्वर्ग पर राक्षसों का अधिकार हो जाता. फिर पूरे संसार में अधर्म का बोलबाला हो जाता.
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ऐसे हुआ कुंभकर्ण का अंत
सीता हरण की घटना सुनकर कुंभकर्ण रावण पर पहले क्रोधित हुआ और फिर उसे समझाने की कोशिश की. तूने जगत जननी को हर लाया है. अपना कल्याण चाहता है तो प्रभु श्रीराम को भजो. हनुमान जिसके सेवक हैं, वे क्या मनुष्य हैं? ब्रह्मा, शिव आदि देवता उनके सेवक हैं. लेकिन जब रावण नहीं माना तो कुंभकर्ण रणभूमि में पहुंच गया. उसने हनुमान, सुग्रीव, लक्ष्मण, अंगद समेत अनेक वीरों को परेशान कर दिया, प्रभु श्रीराम की असंख्य सैनिकों को मार डाला. अंत में भगवान राम ने उसका संहार कर दिया, जिससे उसको परमगति मिली.
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 12:36 IST