कुबेर के खजाने से कम नहीं यह देशी नस्ल की गाय, साल में 300 दिन देगी दूध

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Agency:News18 Bihar

Last Updated:February 07, 2025, 12:29 IST

विदेशी नस्ल की गायों के पालन में बड़ी परेशानी उस समय आती है, जब मौसम में परिवर्तन को वो झेल नहीं पाती हैं. ठीक इसके उलट देशी नस्ल की गायों के पालन में ये समस्या नहीं देखी जाती है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर 

हाइलाइट्स

  • देशी नस्ल की गायें साल में 300 दिन दूध देती हैं.
  • गिर गाय प्रतिदिन 8-10 लीटर दूध देती है.
  • लाल सिंधी गाय उत्तर भारत में आमदनी का जरिया है.

पश्चिम चम्पारण:- भारत के ज्यादातर किसान गौ पालन के लिए देसी नस्लों को छोड़ विदेशी नस्लों का पालन करने लगे हैं. पालन के शुरुआती दौर में तो इनसे खूब कमाई होती है, लेकिन मौसम में बदलाव के साथ-साथ इनपर होने वाला खर्च एकदम से बढ़ने लगता है. ज़िले के माधोपुर स्थित देशी गौ वंश संरक्षण एवं संवर्धन केंद्र में कार्यरत, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रंजन Local 18 को बताते हैं कि विदेशी नस्ल की गायों के पालन में बड़ी परेशानी उस समय आती है, जब मौसम में परिवर्तन को वो झेल नहीं पाती हैं. ठीक इसके उलट देशी नस्ल की गायों के पालन में ये समस्या नहीं देखी जाती है. हालांकि विदेशी नस्ल की तुलना में देशी नस्ल की गायों की दूध उत्पादकता कम होती है, लेकिन इनका दूध उच्च गुणवत्ता वाला होता है, जिसका उत्पादन साल के 300 दिनों तक उत्पादन होता है.

पालन के लिए उत्तम है गिर नस्ल
डॉ. रंजन बताते हैं कि गुजरात के गिर जंगलों से ताल्लुक रखने वाली गिर गाय की लोकप्रियता दुनियाभर में फैल चुकी है. इसकी लोकप्रियता का सबसे मुख्य कारण यह है कि यह प्रतिदिन 8 से 10 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है. साथ ही इसके दूध की गुणवत्ता इतनी अधिक होती है कि महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में इसे 120 रुपए प्रति लीटर की कीमत तक बेचा जाता है. मध्यम शरीर और लंबी पूंछ वाली इस गाय का माथा पीछे तथा सींग मुडे हुए होते हैं. गिर गाय का शरीर धब्बेदार होता है, जिसकी वजह से इसे पहचानना बेहद आसान हो जाता है.

आमदनी का जरिया लाल सिंधी
पाकिस्तान के सिंध प्रांत से ताल्लुक रखने वाली लाल सिंधी गाय आज उत्तर भारत के पशुपालकों की आमदनी का जरिया बन चुकी है. लाल रंग और चौड़े कपाल वाली यह गाय प्रतिदिन 8 से 10 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है. खास बात यह है कि इनके पालन में भी पालकों को अधिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

थापरकर गाय को बेहतरीन दूध उत्पादन क्षमता के लिए जाना जाता है. कच्छ, जैसलमेर, जोधपुर और सिंध के दक्षिण पश्चिमी रेगिस्तान से संबंध रखने वाली गाय की इस नस्ल का कम देखभाल और कम खुराक में भी पालन किया जा सकता है. थारपारकर गाय दुधारु तो होती ही है, साथ ही इनका खाकी, भूरा, या सफेद रंग इन्हें बाकी गायों से अलग बनाता है.

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10 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है साहीवाल
जानकारों की मानें तो, गाय की यह प्रजाति उत्तर पश्चिमी भारत सहित पाकिस्तान जैसे देशों में खूब पाली जाती है. साहीवाल गाय का रंग लाल और बनावट लंबी होती है. लंबा माथा और छोटे सींग इसे बाकी गायों से अलग बनाते हैं. ढ़ीला-ढ़ाला शरीर और भारी वजन वाली यह प्रजाति भी प्रतिदिन 8 से 10 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं.

Location :

Bettiah,Pashchim Champaran,Bihar

First Published :

February 07, 2025, 12:29 IST

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