कौन हैं सद्गुरु, क्यों 2 बहनों को संन्यासी बनाने के मामले में उन पर उठे सवाल

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Sadhguru Jaggi Vasudev: सद्गुरु जग्गी वासुदेव को मानने वालों की संख्या लाखों में है. उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी सोच, विचार और व्यक्तित्व लाखों लोगों के भटके जीवन को सकारात्मक दिशा देते हैं. सद्गुरु जग्गी वासुदेव का नाम भारत के 50 सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल हैं. फिलहाल वह अपने ईशा फाउंडेशन के क्रिया कलापों को लेकर सुर्खियों में हैं. 

एक रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें अपने योग केंद्र में बंधक बना रखा है. 42 साल और 39 साल की दो लड़कियों के पिता एस. कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश करने की मांग वाली याचिका दायर की थी. हालांकि दोनों बहनों ने अदालत में बयान दिया कि वे अपनी इच्छा से ईशा फाउंडेशन में रह रही हैं. दोनों बहनों के बयान के बाद हालांकि सद्गुरु जग्गी वासुदेव को काफी राहत मिली. लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने कई तीखे सवाल पूछकर उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है.

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अदालत ने पूछे तीखे सवाल
मद्रास हाईकोर्ट ने सद्गुरु से पूछा है कि आपकी बेटियां तो गृहस्थ जीवन जी रही हैं, लेकिन आप दूसरी लड़कियों को सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यासी बनने के लिए क्यों प्रोत्साहित करते हैं. जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी. शिवगनम की पीठ ने सवाल किया, “एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटियों की शादी कर उन्हें जीवन में अच्छी तरह सेटल करने का काम किया है. वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांत जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है.”  

संस्था ने दिया क्या जवाब
हालांकि ईशा फाउंडेशन ने हाईकोर्ट की इस बात का खंडन किया है. ईशा फाउंडेशन ने दावा किया कि ये दोनों बहनें ही नहीं बल्कि अन्य महिलाएं भी अपनी मर्जी से उनके यहां रहती हैं. फाउंडेशन ने कहा, “हमारा मानना है कि बालिग लोगों को अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता है. हम किसी को शादी करने या संन्यासी बनने के लिए मजबूर नहीं करते हैं. क्योंकि ये उनका व्यक्तिगत फैसला है. योग केंद्र में हजारों ऐसे लोग भी रहते हैं, जिन्होंने संन्यास धारण नहीं किया है. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने ब्रह्मचर्य अपनाकर संन्यासी बनने का विकल्प चुना है.”

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अंग्रेजी में देते हैं प्रवचन
सद्गुरु जग्गी वासुदेव को लोग एक योगी, आत्मज्ञानी, कवि, लेखक और ओजस्वी वक्ता के रूप में जानते हैं. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि वह जीवन और मृत्यु से परे हैं. अपनी तमाम योग्यताओं के दम पर उन्होंने जग्गी वासुदेव से गुरु और फिर सद्गुरु तक का सफर तय किया है. ज्यादातर गुरु या बाबा अपने प्रवचन हिंदी में देते हैं, लेकिन सद्गुरु जग्गी वासुदेव अपने प्रवचन अंग्रेजी में देते हैं. उनके भक्तों में ज्यादातर पढ़े-लिखे और संभ्रांत वर्ग के लोग है. सद्गुरु जग्गी वासुदेव के साथ अमूनन देश के कुलीन वर्ग के लोग दिखते हैं. ईशा फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में एक बार प्रधानमंत्री ने भी शिरकत की थी. 

संपन्न परिवार में हुआ था जन्म
सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म 03 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में एक संपन्न तेलुगु परिवार में हुआ. इनका पूरा नाम जगदीश जग्गी वासुदेव है. उनके पिता का नाम बीवी वासुदेव और माता का नाम सुशीला वासुदेव था. उनके पिता मैसूर रेलवे अस्पताल में आंखों के डॉक्टर थे और उनकी मां एक हाउसमेकर थीं. जग्गी पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. 12वीं पास करने के बाद उन्होंने इंग्लिश लिटरेचर में मैसूर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. पढ़ाई पूरी करने के बाद सद्गुरु ने बिजनेस शुरू किया और सफल भी रहे. उन्होंने पोल्ट्री फार्म, ब्रिकवर्क्स और कंसट्रक्शन बिजनेस में हाथ आजमाया.

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पत्नी की मौत को लेकर विवाद
सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने विजयकुमारी से शादी की थी. विजयकुमारी एक बैंक में काम करती थीं. उन्हें विज्जी के नाम से भी जाना जाता था. दोनों की पहली मुलाकात एक लंच के दौरान हुई थी. विवाह के छह साल बाद 1990 में उनकी एक बेटी हुई, जिसका नाम राधे जग्गी रखा गया. 1997 में विज्जी ने महासमाधि लेकर दुनिया को अलविदा कह दिया. उस समय विजयकुमारी की मौत को लेकर काफी विवाद हुआ था.

जग्गी वासुदेव इस तरह बने सद्गुरु
सद्गुरु जब 25 साल के थे तब उनके जीवन में एक असामान्य घटना घटी. कहा जाता है कि वह एक दिन मैसूर में स्थित चामुंडी हिल पर गए थे. उन्होंने एक ऊंची चट्टान पर ध्यान लगाया और समाधि में चले गए. यह उनके जीवन का ऐसा अनुभव था, जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी. जब सद्गुरु समाधि की अवस्था से बाहर आए तो उन्हें लगा कि दस मिनट बीत चुके हैं. लेकिन उन्होंने इस अवस्था में चार घंटे बिता दिए थे. इसके बाद सद्गुरु एक बार फिर से समाधि अवस्था में गए. जब वह समाधि की अवस्था से बाहर आए, उन्हें पता चलता है कि उन्हें इस अवस्था में पूरे 13 दिन बीत चुके थे. जबकि उन्हें अहसास हुआ कि वह केवल 20-25 मिनट समाधि में रहे. इसके बाद सद्गुरु ने यह तय किया कि वह इस अद्भुत अनुभव से सभी को अवगत कराएंगे. 

क्या करता है ईशा फाउंडेशन
सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक गैर लाभकारी समाजसेवी संगठन है. इसे स्वयंसेवक द्वारा चलाया जाता है. दुनिया भर में ईशा फाउंडेशन के 300 केंद्र हैं और 70 लाख स्वयंसेवक हैं. ईशा फाउंडेशन योग कार्यक्रमों से लेकर समाज, पर्यावरण और शिक्षा के लिए अपनी प्रेरणादायक परियोजनाओं को आयोजित करता है. ईशा की गतिविधियों को एक समावेशी संस्कृति बनाने के लिए डिजाइन किया गया है जो वैश्विक सद्भाव और प्रगति का आधार है. इसके मुख्य केंद्र तमिलनाडु में कोयंबटूर के पास ईशा योग सेंटर और अमेरिका में ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ इन्नेर साइंसेस हैं.

Tags: Madras precocious court, Religion, Religion Guru

FIRST PUBLISHED :

October 6, 2024, 09:31 IST

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