क्या ऑनलाइन पिंडदान से पितरों को मिलेगी शांति,ज्योतिषाचार्य ने बताया सच

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पितृ पक्ष मे ऑनलाइन पिंडदान करना शुभ या अशुभ 

शुभम मरमट / उज्जैन: हिन्दू धर्म मे पितरो को देवताओं के रूप मे पूजा जाता है. श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होते ही उज्जैन के गयाकोठा, रामघाट, सिद्धवट तीर्थ स्थलों पर देशभर के श्रद्धालु अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर्म कराने आ रहे है. कुछ वर्षों से ऑनलाइन श्राद्ध कर्म कराने का रिवाज चलने लगा है. पं.अमर डिब्बावाला ने ऑनलाइन तर्पण, पिंडदान या पूजन कराने को शास्त्र के विरुद्ध बताते हुए ऑनलाइन पूजन कराने का विरोध किया है.उनसे सही विधि जानते है.

भारतीय सनातन धर्म परंपरा में कर्मकांड को लेकर के 18 में से 9 पुराणों में विशेष तौर पर लिखा हुआ है. इसके साथ ही अलग-अलग धर्म ग्रंथो और स्मृति ग्रंथों में भी कर्मकांड की पद्धति को विशेष रूप से बताया गया है. पितरों को देवता से पहले स्थान दिया गया है. परिवार के पितरों की तृप्ति से देवता भी अनुकूल हो जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार तीर्थ का अपना विशेष महत्व है. पितरों से संबंधित जल दान, पिण्डदान जिसके अंतर्गत देव, ऋषि, पितृ, दिव्यमनुष्य तर्पण, तीर्थ श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, अन्वष्टका श्राद्ध यह सभी तीर्थ पर ही संपादित होते हैं. क्योंकि, तीर्थ पर देवताओं का वास होता है. तीर्थ पर नदी में अन्य देवी देवताओं की ऊर्जा मय प्रभाव रहता है. उन्हीं की साक्षी में पितरों की तृप्ति होती है. इस दृष्टि से तीर्थ पर आकर के ही श्राद्ध करें‌.

ऑनलाइन श्राद्ध करने से नहीं मिलती है मुक्ति
पंडित अमर डब्बा वाला ने लोकल 18 से कहा कि ऑनलाइन पद्धति भारतीय सनातन धर्म की संस्कृति का भाग नहीं है. ऑनलाइन पद्धति पर की गई पूजा पाठ का प्रत्यक्ष रूप में वह फल प्राप्त नहीं हो पाता है. जो होना चाहिए. इस दृष्टि से स्वयं को धार्मिक बनाते हुए तीर्थ और देवालयों की ओर गमन करें. इससे मानसिकता में भी अंतर आएगा क्रिया पद्धति भी अनुकूल रहेगी. आपको भी लगेगा कि आपने कोई पूजन पाठ की है.अन्यथा क्रिया करना एक कर्तव्य था इसलिए कर दिया. यह सोच आपको संतुष्ट नहीं कर सकेगी.

प्रतिनिधि भी कर सकता है श्राद्ध
देखा जाता है बहुत से लोगों कोशारीरिक सक्षम नहीं है. वह किसी प्रतिनिधि को नियुक्त करते हुए क्रिया पद्धति को आकार देवें या पूजन पद्धति को संपादित करें. स्वयं नही जा सकते हैं तो प्रतिनिधि के माध्यम से संपादित करवाऐ किंतु पितृ पूजन में स्वयं को ही उपस्थित होना पड़ता है या परिवार का कोई सदस्य आकर के पितरों की पूजा करता है. वह सीधे पितरो को जाता है. इससे पितृ प्रसन्न होते है.

गया श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध करना आवश्यक है
पद्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध नित्य है, नैमितिक है, कामना परक है, श्राद्ध को करने के 96 अवसर शास्त्र और पुराण के माध्यम से बताये जा रहे हैं.यदि गया श्राद्ध किया जा चुका है तो इसका यह अर्थ नहीं की गया में पितरों को छोड़कर के आ गए हो, गया श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध या तीर्थ श्राद्ध, तर्पण श्राद्ध आदि कामना परक किये जा सकते हैं.पौराणिक मान्यताओं में इस संबंध में बहुत कुछ लिखा गया है ब्रह्म कपाली पर किया गया पिण्डदान कुछ सिद्धांतों को निश्चित करता है किंतु वह भी अर्थात ब्रह्मा कपाली पर पिण्डदान करने के बाद भी तर्पण श्राद्ध और बिना पिण्ड के किया गया पितृ याग करना ही चाहिए. यह नित्य है इन्हें करने के साथ-साथ अन्य क्रिया पद्धति पर भी आगे बढ़ना चाहिए यह करने से पितरों की कृपा होती है वंश वृद्धि होती है धन-धान्य, उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घायु की प्राप्ति होती है.

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FIRST PUBLISHED :

September 23, 2024, 12:46 IST

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