छोटा कीट, बड़ा नुकसान! थ्रिप्स का बढ़ता प्रकोप, निपटने के लिए अपनाएं ये उपाय

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काल्पनिक फोटो काल्पनिक फोटो 

समस्तीपुर: बारिश के बाद वातावरण में नमी बढ़ने के कारण थ्रिप्स का प्रकोप बढ़ रहा है. पहले इसे छोटा कीट माना जाता था, लेकिन पिछले दो सालों में बिहार में इसका प्रकोप बढ़ गया है. थ्रिप्स पत्तियों की धुरी में रहते हैं और पत्तियों को खाते हैं, जिससे डंठल की सतह पर गहरे वी-आकार के निशान बन जाते हैं. बता दें कि वैज्ञानिकों का कहना है कि थ्रिप्स के हमले से फसल को बचाने के लिए समय पर इमिडाक्लोप्रिड के छिड़काव, मिट्टी का उपचार और फसलों को पॉलीप्रोपाइलीन से ढकना आवश्यक है. ये उपाय किसानों को फसल की सुरक्षा और गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करेंगे.

वैज्ञानिकों की राय
लोकल 18 से बात करते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर संजय कुमार सिंह ने बताया कि जब केला पूरी तरह से पक जाता है, तब पौधों पर जंग के रूप में थ्रिप्स संक्रमण के लक्षण दिखाई देते हैं. ये कीट पत्तियों, फूलों और फलों को नुकसान पहुंचाते हैं. शुरुआत में, थ्रिप्स (हेलियोथ्रिप्स कैडालिफिलस) के खाने से पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो अंततः भूरे हो जाते हैं. गंभीर मामलों में, प्रभावित पत्तियां मुरझा सकती हैं और सूख सकती हैं. वयस्क थ्रिप्स फलों में अंडे देते हैं और निम्फ फल खाते हैं. अंडे देने और खाने से बने निशान जंग के धब्बे बनाते हैं, जिससे फल टूट सकते हैं. गर्मी के महीनों में संक्रमण अधिक होता है.

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थ्रिप्स के प्रबंधन के उपाय
छिड़काव का समय: फूल निकलने के एक पखवाड़े के भीतर छिड़काव करें. दूसरी ओर, जब फूल सीधी स्थिति में हों, तब 2 मिली इमिडाक्लोप्रिड को 1 लीटर पानी में मिलाकर डंठल में इंजेक्शन लगाना प्रभावी होता है.

मिट्टी में प्यूपा प्रबंधन: मिट्टी में थ्रिप्स के प्यूपा को मारने के लिए 1 मिली ब्यूवेरिया बेसियाना का छिड़काव करें.

गुच्छों की सुरक्षा: किसान विकसित हो रहे गुच्छों को पॉलीप्रोपाइलीन से ढक सकते हैं. इसके साथ ही केला के बंच, आभासी तना और सकर्स पर 2.5 मिली क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी का छिड़काव करें. इन उपायों से थ्रिप्स के आक्रमण से फसल बचाई जा सकती है और गुणवत्ता भी बनी रहती है.

Tags: Bihar News, Local18, Samastipur news, Special Project

FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 11:56 IST

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