गंगा दास की बड़ी शाला यहां पर महारानी लक्ष्मी बाई को बचाने के लिए शहीद साधु हुए
ग्वालियर: जब भी भारत के इतिहास की बात करते हैं तो उसमें महारानी लक्ष्मीबाई का जिक्र जरूर आता है. उनके साहस, पराक्रम और क्रांति की आग ने भारत को एक समृद्ध इतिहास दिया है. ग्वालियर में गंगा दासी बड़ी शाला लक्ष्मीबाई कॉलोनी के अंदर एक मंदिर है, जहां पर एक बहुत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना घटी थी. यह घटना सन 1857 की क्रांति के दौरान हुई, जब महारानी लक्ष्मीबाई के पार्थिव शरीर को बचाने के लिए 745 साधु अंग्रेजी हुकूमत से लड़ गए थे और परम गति को प्राप्त हुए थे.
महारानी लक्ष्मी बाई ने जब स्वामी जी से मार्गदर्शन मांगा था
ग्वालियर में गंगा दास की बड़ी शाला मंदिर में, सन 1857 के पहले जब अंग्रेजों ने अपनी नीतियों से भारतीय जनमानस को परेशान कर दिया था, तब महारानी लक्ष्मीबाई गंगा दास महाराज के पास आईं. आकर उन्होंने बोला, “महाराज, समाज की स्थिति बहुत खराब है और ऐसे में आवश्यक है कि अंग्रेजी सरकार का विरोध हो और भारत को आजादी प्राप्त हो.” इस समय भारत के कई जिलों के राजा जैसे दतिया, हाथरस, देवास आदि जगहों के राजा यहां पर बुलाए गए.
शरीर की रक्षा के लिए न्योछावर किए प्राण
महंत रामसेवक दास ने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि ये आश्रम अकबर के समय का है. 1857 की क्रांति जो शुरू हुई थी वो बड़ी शाला में खत्म हुई. रानी लक्ष्मीबाई के शरीर की रक्षा करने के लिए, तब 745 साधुओं ने खुद की जान गवां दी थी. इस बैठक के दौरान महान क्रांतिकारी तात्या टोपे और अन्य क्रांतिकारी भी शामिल हुए. बैठक में शामिल होने के बाद एक प्रस्ताव रखा गया कि महारानी लक्ष्मीबाई क्रांति की शुरुआत करेंगी और इसके बाद सारे राजा मिलकर इसका समर्थन करेंगे. अंत में, महारानी लक्ष्मीबाई दिल्ली पर विजय प्राप्त कर लेंगी.
जब महारानी लक्ष्मीबाई को चारों तरफ से अंग्रेजों ने घेर लिया था
1857 की क्रांति के दौरान, जब महारानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में थीं, तब अंग्रेजों से युद्ध लड़ने के दौरान ग्वालियर किले पर एक ऐसा समय आया जब वे चारों तरफ से अंग्रेजों द्वारा घेर गई थीं. जब अंग्रेजों ने घेर लिया, तो महारानी लक्ष्मीबाई ने अपना घोड़ा ग्वालियर किले से कूदने के लिए तैयार किया.
जब महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने घोड़े को स्वर्ण रेखा नदी में कूदने के लिए प्रेरित किया, तो घोड़े की दोनों टांगें टूट गईं और महारानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह से घायल हो गईं. इसके बाद, महारानी लक्ष्मीबाई के पार्थिव शरीर को बचाने के लिए 1000 साधुओं ने उनके पार्थिव शरीर को आश्रम के अंदर रख लिया. लेकिन एक समय ऐसा आया जब अंग्रेजों ने मंदिर पर हमला किया, तो साधुओं ने अंग्रेजों से युद्ध लड़ा. युद्ध के दौरान 745 साधु महारानी लक्ष्मीबाई के साथ परम गति को प्राप्त हो गए.
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FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 15:15 IST