ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के दिलो-दिमाग पर डाल रहा असर, चिड़चिड़े, गुस्सैल और मूडी बना रहा मोबाइल : एक्सपर्ट

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World Mental Health Day: बच्चों के लिए बढ़ता स्क्रीन टाइम आफत का सबब हो सकता है. इससे दिमाग पर ही असर नहीं पड़ता बल्कि बच्चों के बर्ताव पर भी गलत प्रभाव पड़ता है. विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर विशेषज्ञों ने अपनी राय शेयर की. आक्रामकता, क्रोध, डिप्रेशन और चिंता विकारों जैसी व्यवहार संबंधी समस्याओं में हाल के दिनों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. लीलावती अस्पताल मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ. शोरुक मोटवानी ने बताया, "बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम, ट्रॉमा और हिंसा बच्चों में व्यवहार संबंधी बदलाव ला सकते हैं. वे नखरे दिखाएंगे, आक्रामक हो जाएंगे, चिंतित हो जाएंगे, सो नहीं पाएंगे और उदास हो जाएंगे."

पीडियाट्रिशियन और नियोनेटोलॉजिस्ट कंसल्टेंट, डॉ. समीरा एस राव कहती हैं, "हाल के सालों में, बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, जो अक्सर तनाव, बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम और रूटीन में बदलाव जैसे कारकों से जुड़ी होती है."

आम व्यवहार संबंधी समस्याओं में अचानक मूड स्विंग शामिल है, बच्चों के इमोशनस में बहुत ज्यादा बदलाव दिखने लगता है. आक्रामकता बढ़ती है तो बेवजह चिड़चिड़ापन और गुस्सा दिखने लगता है.

ऐसे बच्चों में मूड स्विंग, सिरदर्द या शरीर में दर्द, खुद को नुकसान पहुंचाना, आवेग, अति सक्रियता और असावधानी का अनुभव होने की आशंका होती है. वहीं तो प्रत्यक्ष लक्षण है उसमें खराब अकैडमिक परफॉर्मेंस शामिल है.

बच्चों के बिहेवियर पर नजर रखने की दी सलाह:

विशेषज्ञों ने माता-पिता से व्यवहार में होने वाले बदलावों के शुरुआती संकेतों को पहचानने का आग्रह किया, जो मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का संकेत हो सकते हैं, क्योंकि मैनेज करने के लिए शुरुआती पहचान और समय पर एक्शन जरूरी होता है.

राव ने कहा कि खाने या सोने के पैटर्न में बदलाव, जैसे कि भूख में बदलाव या नींद में खलल, इंटरनल प्रोब्लम्स का संकेत भी हो सकता है. स्कूल जाने या एक्टिविटिज में भाग लेने में अनिच्छा यह संकेत दे सकती है कि कुछ गड़बड़ है.

ये संकेत भी दिख सकते हैं:

इसके अलावा, कुछ बच्चे रिग्रेसिव बिहेवियर भी दिखा सकते हैं जैसे बिस्तर गीला करना या अंगूठा चूसना आदि. ये संकट का संकेत हो सकता है.

ऐसा हो तो माता पिता कैसे निपटें इस सवाल पर मोटवानी की सलाह है कि माता-पिता से धैर्य रखने और चिल्लाने, मारने या अपमानजनक तरीके से बात करने से बचना चाहिए. उनसे बातचीत में ये जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें क्या परेशान कर रहा है.

विशेषज्ञों की राय है कि अगर लक्षण बने रहते हैं या बिगड़ जाते हैं, तो बाल रोग विशेषज्ञ या बाल मनोवैज्ञानिक से सलाह लें.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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