फाइनेंशियल कंसल्टिंग कंपनी डेलॉयट की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार का मानना है कि रुपया अब कुछ सुधरेगा और यह आगामी सप्ताहों में 85 से 86 प्रति डॉलर के बीच रहेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार घरेलू मुद्रा को स्थिर रखने पर ध्यान दे रहा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि आरबीआई के हस्तक्षेप और भारतीय मुद्रा के अन्य मुद्राओं की तुलना में अधिक स्थिर होने के बावजूद रुपया अब 83 के स्तर के स्तर पर नहीं आएगा। पिछले सप्ताह रुपया गिरकर 86.70 डॉलर प्रति डॉलर के अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया था। इसकी वजह विदेशी कोषों की निकासी और घरेलू शेयर बाजारों की गिरावट थी जिससे निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई थी।
रुपया 86.70 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया था
गत 13 जनवरी को रुपये में करीब दो साल में एक दिन में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी और सत्र के अंत में रुपया 66 पैसे की गिरावट के साथ अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.70 के अपने ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ था। इससे पहले छह फरवरी, 2023 को रुपये में एक दिन की सबसे बड़ी 68 पैसे की गिरावट आई थी। मजबूत डॉलर और एफआईआई की निकासी के कारण 2024 में रुपये में लगभग तीन प्रतिशत की गिरावट आई है। साल 2025 में अबतक घरेलू मुद्रा में एक प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। शुक्रवार को रुपया 86.60 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। मजूमदार ने कहा कि मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि छह महीने पहले तक रुपया बेशक 83-84 पर था। लेकिन अब यह 85-86 प्रति डॉलर पर ही स्थिर होगा।
रुपये गिरने के पीछे की वजह क्या है?
रुपये में गिरावट का मौजूदा दौर मुख्य रूप से भारत से विदेशी निवेशकों द्वारा पैसा निकलने के कारण हो रहा है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है। वैश्विक निवेशक विभिन्न देशों में अपने निवेश को इधर-उधर कर रहे हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीतियों को अलग-अलग स्तरों पर पुनर्गठित कर रहे हैं। इसके अलावा अमेरिकी डॉलर इंडेक्स लगातार मजबूत हो रहा है। छह मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को मापने वाला डॉलर इंडेक्स बढ़कर 109.01 पर पहुंच गया है। 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड पर भी यील्ड बढ़कर अप्रैल 2024 के स्तर 4.69 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसका असर भी भारतीय रुपये पर देखने को मिल रहा है। इससे रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।
रुपया टूटने का क्या होगा असर?
रुपया टूटने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था, आम जनता और बिजनेस जगत पर होता है। रुपये में कमजोरी आने से विदेशों से आयत करना महंगा हो जाता है। इसके चलते जरूरी वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है। भारत बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करता है। डॉलर की मजबूती से कच्चे तेल का आयात करना महंगा होगा। इससे व्यापार घाटा बढ़ेगा। रुपये के कमजोर होने से विदेशी निवेशक शेयर बाजार से पैसा निकालते हैं। इसका असर अभी दिखाई दे रहा है। रुपया टूटने से विदेश यात्रा या विदेश में पढ़ाई का बजट बढ़ेगा। वहीं, रुपये के कमजोर होने से भारत के निर्यातकों को फायदा होता है, क्योंकि उनके उत्पाद विदेशी बाजार में सस्ते हो जाते हैं।